क्या ये दुःख उचित है?


सब की खुशहाली और प्रसन्नता का संदेश देने वाले हमारे सनातन धर्म में मानवता ही सर्वोपरि
हम उस धर्म के अनुयायी हैं जहां रियल लाइफ के चरित्र को महत्व दिया जाता है ना कि रील लाइफ चलचित्र में अभिनय को.

बीते कल इरफान खान का निधन हुआ,
करोड़ों हिन्दूओं ने दुख जताय मैंने भी उनके अच्छे जीवन को देखते हुए अंतः करण से श्रद्धांजलि दी

एक मुसलमान के घर में जन्म लेने के बाद भी इस्लामिक कुरीतियों पर प्रहार , निरपराध जानवरों की कुर्बानी का निर्भयता से खुलेआम विरोध करना, आदि कई सद्गुण विशेष थे

वहीं दूसरी ओर आज ऋषि कपूर का निधन हुआ, हां वही ऋषि कपूर, जो खुलेआम कहते थे मैं गौ मांस खाता हूं,

जो खुलेआम कहते थे कि गौ मांस खाना अधिकार है और इसे किसी धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए . गौमांस पर बैन लगने से सबसे ज्यादा दुखी ऋषि कपूर हुए थे, यह उनके द्वारा किये ट्वीट में भी आप देख सकते हैं.

महाराष्ट्र में गौ मांस पर रोक लगने पर सबसे ज्यादा क्रोध में आने वाले और गला फाड़कर जोर जोर से चिल्लाने वाले कि.

“मैं गुस्से में हूँ कोई क्या खाता है, इससे उसके धर्म को क्यों जोड़ा जा रहा , मैं हिंदू हूं और बीफ़ खाता हूं, क्या ऐसा करने से मैं कम धार्मिक हो जाता हूं?”

ऐसा कहने वाले ऋषि कपूर ही थे यह इस देश का दूर्भाग्य है कि ऋषि नाम रखने से पहले ऋषि शब्द का अर्थ जानने का प्रयास भी नहीं किया जाता। कन्हैया नाम रखने से पहले कन्हैया के उज्जवल चरित्र को नहीं पढा जाता..

ऋषि कपूर स्वयं को हिंदू कहते थे किंतु इन्हें तो मानवता की परिभाषा भी पता नहीं थी, हिंदुत्व और सनातन धर्म तो इनसे बहुत दूर था.
सनातन संस्कृति में तो किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करने का संदेश दिया गया है और गौ माता की तो पूजन किया जाता है

आचार्य चाणक्य कहते हैं…

मांसभक्षै: सुरापानै: मूर्खेश्चाऽक्षरवर्जिते:।
पशुभि: पुरुषाकारैर्भाराक्रान्ताऽस्ति मेदिनी।।

अर्थात् मांस खाने वाले (निर्दयी ), शराबी और मूर्ख लोग पुरुष के शरीर में पशु हैं और वो इस धरती पर भार ही हैं,….

महर्षि मनु ने मनुस्मृति में मांस भक्षण आदि निंदनीय कर्म करने वालों को अत्यंत नीच कहा है

ऋग्वेद के दसवें मण्डल के सूक्त ८७ के सोलहवें मंत्र में राजा को निर्देश दिया गया है कि

यः पौरुषेयेण करविषा समङकते यो अश्वेयेन पशुयातुधानः।
यो अघ्न्याया भरति कषीरमग्ने तेषांशीर्षाणि हरसापि वर्श्च॥-

अर्थात- जो मनुष्य नर, अश्व अथवा किसी अन्य पशु का मांस सेवन कर उसको अपने शरीर का भाग बनाता है, गौ की हत्या कर अन्य जनों को दूध आदि से वंचित रखता है,

हे अग्निस्वरूप राजा, अगर वह दुष्ट व्यक्ति समझाने के पश्चात किसी और प्रकार से न सुने तो आप उसका मस्तिष्क शरीर से विदारित करने के लिए संकोच मत कीजिए।

हमारा सनातन वैदिक धर्म सब के कल्याण की कामना करने वाला धर्म है

हम सनातन धर्म मे गाय को मां का स्थान देते हैं,,
क्योंकि आजीवन वह अपने दूध धृत आदि से एक मां की तरह हमारी सेवा करती है और उसके बछडे बैल बनकर धरती का सीना चीरकर हल चलाते हुए हमारा पालन-पोषण करते है आतंकियों व पाकिस्तान का समर्थन करने वाले, गौ माता आदि अनेकों निरपराध पशुओं को खाने वाले और खाने के पश्चात् भी सीना चौड़ा करके बोलने वाले कि

“हाँ मैंने खाया,, और इसमें कुछ गलत नहीं है “

ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर दुःखी होना क्या उचित है?
विचार करें .
हमारे इतिहास में सबसे ज्यादा दुष्ट दुर्योधन व रावण को माना जाता है लेकिन उन्होंने भी गाय का दूध पिया, रक्त मांस नहीं

यह तो खुलेआम गौमांस खाता था.. व खाने का समर्थन करता था।

यह बात ठीक है कि किसी की मृत्यु के उपरांत उसके दोष नहीं देखने चाहिए लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि उसका महिमामंडन करके उसे आने वाली पीढीयों का आइकान बना दिया जाये। जैसे सत्य को छिपाकर गौमांस समर्थक चैन स्मोकर वेश्यागामी नेहरू को भारत के बच्चों का चाचा नेहरू बना दिया गया था

पर्दे पर नचनिया गवनिया बनकर कलाकार नही कहलाया जा सकता..
कलाकार कौन है? जो जीने की कला जानता है

हृदय से जो चाहे प्राणी मात्र का भला।
बस वही जानता है जीने की कला।

✍️आचार्य लोकेन्द्र:

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