यज्ञ से रोगों के नाश की कार्यप्रणाली. अर्थात यज्ञ से गंभीर संक्रामक रोगों की चिकित्सा
यज्ञ से रोगों के नाश की क्रिया प्रणाली को समझने से पहले हमें रोग और रोग के कारणों को समझना होगा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने रोग को दो वर्गों में विभाजित किया है संचारी रोग व गैर संचारी रोग |
80 प्रतिशत रोग संचारी रोग होते हैं जो जीवाणु, विषाणु प्रोटोजोआ जैसे सुक्ष्म जटिल संरचना वाले मानव आंखों से दिखाई ना देने वाले सूक्ष्म जीवों से फैलते हैं| यह विषाणु जीवाणु इतने चालाक होते हैं जो रूप बदल बदल कर मानव शरीर व वनस्पति जंतु जगत पर हमला कर रहे हैं| एक जमाना था जब पूरी दुनिया में एंटीबायोटिक दवाओं का तेजी से विकास हुआ 1950 के दशक से तो अमेरिका के प्रसिद्ध सर्जन जनरल डॉक्टरों ने इतरा कर कहा था अब हमें संक्रामक रोगों की किताब को बंद कर देना चाहिए अब दुनिया में कोई संक्रमक रोग जनित बीमारियां की समस्या नहीं रहेगी|
नतीजा आज दुनिया में Ebola #स्वाइनफ्लू #जीका जैसे वायरस तबाही मचा रहे हैं| मलेरिया डेंगू व टाइफाइड के जीवाणु विषाणु करोड़ों मौत का कारण आज भी दुनिया में बन रहे हैं| आखिर रासायनिक एंटीबायोटिक ड्रग्स असफल क्यों हो रही है?
जितनी भी एंटीबायोटिक दवाई होती है यह कार्बन नाइट्रोजन ऑक्सीजन हाइड्रोजन व सल्फर के परमाणुओं की विभिन्न संरचनाओं से मिलकर बनी होती है| आणविक संरचना का तोड़ जीवाणु विषाणु ने निकाल लिया है| दवाई अब इनके खोल को भेद नहीं पा रही हैं|
अर्थववेद वेद में मानव स्वास्थ्य के शत्रु इन जीवाणु विषाणु को #सहपत्ना #यातुधान आदि नामों से उल्लेखित किया गया है| ऋषि महर्षि जानते थे यदि इन सूक्ष्मजीवों को नष्ट करना है तो मानव शरीर से बाहर ही इन्हें ठिकाने लगाना होगा अर्थात जहां यह पनपते हैं जहां यह प्रथम निष्क्रिय अवस्था में ही रहते हैं| वह भली भांति जानते थे शरीर में घुसकर यह तेजी से अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं 10 गुना प्रयास करना होगा| दिन प्रतिदिन इनके नाश के लिए उन्होंने जो हो विकसित कि वह है केवल और केवल #यज्ञ| वेद मैं परमपिता परमात्मा कहते हैं #स्वर्ग_कामो_यज्ञगेत अर्थात सुख के अभिलाषी को यज्ञ करना चाहिए सुख_ जीवन में तभी रह सकता है जब हम निरोगी रहेंगे|
यज्ञ की अग्नि में जब गिलोय जावित्री जायफल लौंग इलायची केसर व अन्य असंख्य जड़ी बूटियां डाली जाती है तब यज्ञ की अग्नि उन्हें सुचारु रुप से विभाजित कर #जैविक_एंटीबायोटिक अणु का निर्माण करती है| यज निर्मित यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक तेजी से वातावरण स्थानीय परिवेश में जाकर जल वृक्ष वनस्पति मनुष्य से अलग जीव-जंतुओं जो बूढ़े बीमार हो गए हैं जहां यह जीवाणु विषाणु आश्रय पाते हैं तेजी से उनको जीवाणु विषाणु सक्षम रोगाणुओं को नष्ट करते हैं| अरबो वर्ष पहले हमारे पूर्वज वह जान गए थे कि यह रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव अकेले कुछ नहीं करते यह माध्यम तलाशते हैं इनका माध्यम अक्सर कीट पतंगे कुत्ता सूअर बिल्ली चूहा आदि जंतु होते हैं कुछ वनस्पतियां होती हैं जिनके संपर्क में आकर मानव संक्रमित होता है| आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इन्हें रोगों के संवाहक कहा जाता है #carrier_of_deasese|
यज्ञ से निर्मित यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक चुन-चुनकर जीवाणु विषाणु के ठिकानों पर हमला करते हैं| अधिकांश यह रोगाणु वायु जल में मिश्रित रहते हैं| यज्ञ में जो गाय का घी, मीठी सामग्री गुड़ शक्कर मुनक्का डाली जाती है वह जलकर Fateyy Acid गुलकोज की विभिन्न प्राकृतिक यौगिको में रूपांतरित होकर भूमंडल की समस्त वनस्पतियों को पोषित करती है वनस्पति जगत पुष्पित-पल्लवित होकर उसकी रोगनाशक क्षमता बढ़ जाती है किसी खरपतवार नाशक वृक्ष कीटनाशक की आवश्यकता नहीं पड़ती | इसके ठीक विपरीत आधुनिक चिकित्सा पद्धति में रोगों की चिकित्सा तब की जाती है जब रोग शरीर में प्रवेश कर जाते हैं| महंगी से महंगी एंटीबायोटिक दवाइयां फाइजर रैनबैक्सी नोवार्टिस कंपनियों की असफल हो रही हैं कभी-कभी तो साथ 7000 -8000की एंटीबायोटिक दवाइयां चढ़ाई जाती है| यज्ञ के माध्यम से हम बहुत कम खर्च कर एक पूरे गांव के लिए उस में निवास करने वाले समस्त जीव धारियों वनस्पति जगत की चिकित्सा कर सकते है| जबकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अलग-अलग प्रणालियां है मनुष्य वनस्पति एवं पशु रोगों की चिकित्सा की| पेड़ पौधे भी रोगी होते हैं पेड़ पौधों के स्वास्थ्य या बीमार होने पर मानव का स्वास्थ्य या बीमार होना निर्भर करता है |
जब से हमने यज्ञ करना कराना छोड़ा है तब से विविध बीमारियों की भरमार हमारे देश सहित इस पूरी दुनिया में हो गई है सृष्टि के आदि से महाभारत काल पर्यंत तक इस देश में बड़े-बड़े यज्ञ जो आयोजित किए जाते थे विशेषकर वर्षा ऋतु [इस मौसम में रोगों के रोगाणुओं के पनपने की आदर्श अवस्था होती है) के अवसर पर आयोजित किए जाते थे|
प्रत्येक घर रोगों के नाश के लिए प्रातः शाम हवन होता था| हवन की सुगंध से इस देश की दिशाएं महक उठती थी | संक्रामक रोगों से कोई मौत नहीं होती थी प्राकृतिक मौतें स्वाभाविक मृत्युहोती थी |
अब आप भली-भांति समझ गए होंगे यज्ञ से से समस्त विश्व का सब प्राणियों का कल्याण कैसे होता है जबकि अंग्रेजी दवाइयों से केवल मानव शरीर व वातावरण में जहर फैलता है| ना उसमें क्षमता है वह सारी प्रकृति का एक साथ इलाज कर सके|
जबकि सौ ग्राम घी व प्राकृतिक जड़ी बूटियों से हजारों वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले हुए विशाल #जीवाणु #समूह को खात्मा किया जा सकता है|
आप केवल एक इंजेक्शन के माध्यम से एक रोगी की चिकित्सा कर सकते हैं जबकि यदि यज्ञ वह माध्यम है जहां उससे भी कम समय में हजारों लाखों जीव धारियों को उपचारित किया जा| उपचार ही नहीं अन्य प्राणियों वनस्पति जगत को पोषण भी प्रदान किया जा सकता है|
जब यूरोप में #प्लेग की बीमारी फैली थी तो साधारण से मसाले जायफल ने ही जो यज्ञ में डाला जाता है करोड़ों मनुष्य को बचा लिया था | इसी बात से प्रभावित होकर यूरोप के लोग भारत देश को ढूंढने के लिए व्याकुल हो गए थे|