परदेश (प्रवास) की कमाई से चलते घर

मेरे परबाबा तीन भाई थे। उनमें से एक रंगून (म्यांमार) कमाने गये थे। उन दिनों बर्मा भारत से अलग नहीं था। 1937 से पूर्व किसी समय वह वापस आ गये तो फिर कभी कहीं नहीं गये।

मेरे बाबा चार भाई थे। उनमें से तीन हैदराबाद, सिंध, पाकिस्तान कमाने गये। 1947 के बँटवारे के पूर्व ही सब लौट आये। स्वंतत्रता के पश्चात उनमें से दो चुर्क सीमेंट फैक्ट्री, सोनभद्र में लगे और एक बाबा गाँव में ही रह गये। दोनों की सरकारी नौकरी थी और सेवानिवृत्ति के पश्चात दोनों गाँव आ गये।

मेरे पिताजी चार भाई थे। दो चुर्क सीमेंट फैक्ट्री, सोनभद्र में लगे और दो इधर उधर हाथ पैर मार कर पुनः कृषि कार्य करने लगे। मेरे पिताजी भी चुर्क सीमेंट फैक्ट्री में थे अत: मेरा बचपन भी घुर्मा- मारकुण्डी, सोनभद्र में ही बीता। 1997 में पिताजी की असमय मृत्यु के पश्चात हमारा वह सहारा छूट गया तो गाँव ने ही सहारा दिया।

हमलोग दो भाई हैं, पीढ़ी में चौथे हैं, जो प्रवासी श्रमिक हैं। दोनों ग्रेटर नोएडा में रहते हैं।

इन चार पीढ़ियों ने बहुत अधिक आर्थिक उथल पुथल देखी होगी। सामान्यतया सबने श्रम पर विश्वास किया, कभी श्रेष्ठी नहीं बने तो कभी श्रीहीन भी नहीं रहे और सामान्य जीवन यापन करते चले।

श्रमिकों के बगैर कभी किसी संस्थान का काम चलता नहीं है तो रुकता भी नहीं है कारण कि एक की आवश्यकता होगी, तो हजार खड़े होंगे। अत: दुर्भाग्यपूर्ण है कि श्रम का मूल्य तो मिल जाता है, कभी श्रमिक को सम्मान नहीं मिलता है।

हमारे परिवार के सभी प्रवासियों का सत्य यह है कि अभी तक कोई भी शहर में स्थायी रुप से नहीं टिक पाया है, परिस्थिति वश देर सबेर सबको प्रवास छोड़ना ही पड़ा।

वर्तमान उथल पुथल के कारण गाँव गये बहुत से लोग शहरों का सत्य जान चुके हैं अत: उनमें से कुछ अब कभी वापस नहीं आयेंगे। लेकिन शहर तो नहीं रुकेगा, कारण कि उनकी जगह बहुत से नये लोग शहर की चकाचौंध से प्रभावित होकर उसकी सेवा में उपस्थित हो जायेंगे और आने जाने का यह क्रम पुनः लगातार चलता रहेगा।

हम दो भाईयों के समक्ष भी चुनौती खड़ी है या तो बहुत अधिक परिश्रम कर शहर में अपना स्थायी स्थान बनायें या कभी वापस न आने के लिए गाँव चले जायें। उस गाँव जो बाहें पसार कर प्रत्येक संकट में हमारा स्वागत करने के लिए सदैव खड़ा रहता है। सभी जानते हैं कि एक समय के बाद वापस जाना ही है, लेकिन शहर की चकाचौंध में हमारी दृष्टि कहीं खो जाती है।

अवधेश


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