Tibet Map : आर्यों की आदि भूमि तिब्बत आर्यव्रत की सीमाओं का पूर्वी बिंदु था। जिसे दुनिया की छत ,पश्चिम जिसे फोर्बिडन कंट्री कहता था। बर्मा का प्राचीन नाम ब्रह्मर्षि देश था, तो तिब्बत का भी प्राचीन नाम बहुत ही खूबसूरत त्रिविष्टप था। अग्नि वायु आदित्य जैसे ऋषियों ने ईश्वर की वाणी वेद का डम डम घोष हिमालय के इसी पठार पर किया था। योगी महात्मा ,मंत्र दृष्टा ऋषियों की सुरक्षित पनाहगाह कैलाश मानसरोवर झील तथा कैलाश पर्वत आदि योगी शिव की भी यही स्थली है, यह सभी तिब्बत में ही शामिल है।
तिब्बत के गुमनामी में जाने की यात्रा उसकी पटकथा तो तब ही लिख गई थी, जब पूरे भारत में सनातन वैदिक धर्म महाभारत काल के पश्चात छीन होने लगा अंधविश्वास पाखंड जातिवाद का बोलबाला हो गया श्रेष्ठ वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था में परिणित हो गई | सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर नास्तिक बौद्ध मत का प्रचार प्रसार शुरू हुआ।
उत्तर से लेकर पूर्व, पूर्व से लेकर पश्चिम भारत में बौद्धों का तांडव शुरू हुआ इस्लाम का तो उदय भी नहीं हुआ था तब तक | (Tibet Map) तिब्बत की सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही चली आ रही सांस्कृतिक धार्मिक पहचान नष्ट कर दी गई बड़े-बड़े बौद्ध विहार , मॉनेस्ट्री वहां खड़ी हो गई।

Tibet Map: बौद्धों की हठधर्मिता, नास्तिकता के कारण भारत का अभिन्न अंग भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया से कट गया
इस दौरान भारत भी विदेशी शक्तियों से पादआक्रांत पराधीन होता रहा। 1863 ईसवी के आसपास अंग्रेज भारत का मानचित्र तैयार कर रहे थे… भारत की समुद्री मैदान सीमाओं का तो उन्होंने मानचित्र बना दिया लेकिन जब वह हिमालई राज्यों की ओर गए तो तिब्बत जो भारत का अभिन्न अंग था उसके विषय में उन्हें कोई विशेष जानकारी नहीं थी ऐसे में संपूर्ण भारत का नक्शा (Tibet Map) कैसे तैयार हो? यह समस्या आई। क्योंकि तिब्बती लोग किसी भी बाहरी व्यक्ति को तिब्बत में घुसने नहीं देते थे उसकी निर्मम हत्या कर डालते थे जासूसी के आरोप में। शातिर बुद्धिस्ट गुरु तिब्बत के ग्रामीण भोले भाले चरवाह वर्ग को भड़काते।
भारत का मानचित्र तैयार करने की जिम्मेदारी भूगोल शास्त्री कैंपटन माउंट गुमरी के पास थी| उस अंग्रेज को किसी ने बताया कि इस मामले में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के गांव मिलन निवासी एक छोटी सी पहाड़ी पाठशाला का अध्यापक आपकी मदद कर सकता है।
उस अध्यापक का नाम था पंडित नैन सिंह रावत जिसने आगे चलकर तिब्बत ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया का नक्शा तैयार करने में पश्चिमी जगत के भूगोल शास्त्रियों की मदद की। उनका जन्म 21 अक्टूबर 1830 तथा 1 फरवरी 1882 को उनका निधन हुआ।
पंडित नैन सिंह रावत के भूगोल संबंधित आधुनिक जान को देखकर अंग्रेज अधिकारी भूगोलवेता भी दंग रह गए उन्होंने पूछा आपने भूगोल का अध्ययन कहां पर किया तो उन्होंने कहा कि मुझे उत्तरकाशी के एक वृद्ध योगी से यह ज्ञान मिला… मैंने केवल 2 वर्ष उनकी सेवा की बदले में मुझे उन्होंने भूगोल शास्त्र पढ़ाया। (Tibet Map)
अंग्रेज जान गए यह व्यक्ति ही हमारी मदद कर सकता है। हजारों वर्षों से उत्तराखंड वासी नेपाल के रास्ते तिब्बत से व्यापारिक यात्रा करते आ रहे थे।

₹20 मासिक पर अंग्रेजों ने पंडित नैन सिंह रावत को राजी कर लिया। पंडित नैन सिंह रावत 18 65 में काठमांडू के रास्ते तिब्बत कैलाश मानसरोवर गए| बड़े ही अनूठे तरीके से उन्होंने तिब्बत का मानचित्र तैयार किया। ऊंचे ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों को पैदल ही नापते उन्होंने बड़ी खूबसूरती से अपने कार्य को अंजाम दिया। वह दिन में तिब्बत के बाजारों में टहलते रात में चांदनी रात में तारों की गणना कर स्थान की गणना करते कविता के रूप में गणना को याद रखते। वह अपने साथ केवल एक रस्सी, थर्मामीटर तापमान मापने के लिए, दिशा बोध के लिए एक छोटा सा कंपास लेकर गए। स्थान को नापने के लिए उन्होंने अपने पैर को 33.5 इंच की रस्सी से बांध लिया | पैरों की डिग्ग को वह 100मनको की माला से याद रखते थे। (Tibet Map)
लद्दाख की राजधानी ल्हासा की समुद्र तल से ऊंचाई बताने वाले वह दुनिया के प्रथम व्यक्ति थे। सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम स्रोत तक पहुंचने वाले वह दुनिया के प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने ही दुनिया को बताया सांगपो नदी ही ब्रह्मपुत्र नदी है तिब्बत में इसको सांगपो कहते हैं।
वह यहीं नहीं ठहरे पहले नेपाल के रास्ते तिब्बत का नक्शा बनाया फिर हिमाचल प्रदेश के रास्ते लेह लद्दाख की तरफ से दूसरा तिब्बत का नक्शा उन्होंने बनाया।
उनके बनाए नक्शे (Tibet Map) को देखकर पूरा इंग्लैंड पश्चिमी जगत हतप्रभ रह गया… उसकी सटीकता प्रमाणिकता प्रायोगिक परीक्षण में त्रुटि रहित पाई गई। यह नक्शा इतना सटीक था आज भी सेटेलाइट के युग में इसमें कोई संशोधन करने की जरूरत नहीं पड़ी है। अपनी जान पर खेलकर उन्होंने यह नक्शा बनाया।
उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ समय वर्ष पूर्व अक्षांश दर्शन नामक मानचित्र भूगोल से संबंधित महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी।
दुर्भाग्य देखिए देश आजाद होता है| इतने बड़े भूगर्भ शास्त्री भूगोलवेत्ता के परिजनों की कोई सुध तक नहीं लेता। यह नियति का क्रूर मजाक की है भारतवर्ष के साथ एक पंडित नेहरु जिन्होंने थाली में सजाकर भारत के अभिन्न अंग को 1950-51 में तिब्बत को चीन को भेंट कर दिया।
आज हमें अपनी ही जमीन पर जाने के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए वीजा लेना पड़ता है दुष्ट चीन से चीनियों को सामरिक बढ़त मिली है।
एक पंडित नैन सिंह रावत जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर अपनी बुद्धि कौशल से तिब्बत का नक्शा (Tibet Map) तैयार किया… जिससे हिमालय के अध्ययन की नई दिशा खुली।
बहुत कम लोगों को जानकारी होगी प्रत्येक वर्ष गूगल उनकी स्मृति में डूडल बनाकर समर्पित करता है| अंग्रेजों ने क्राउन ऑफ एंपायर अवार्ड भी इन्हें दिया।
वर्ष 2004 में वाजपेई सरकार ने 139 साल बाद उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया। पंडित जी किसी यूनिवर्सिटी में नहीं गए। शिक्षा के लिए वह भारत के सनातन वैदिक आर्य ज्ञान परंपरा के ही संवाहक थे। पंडित जी हिंदी तिब्बती अंग्रेजी फारसी के भी ज्ञाता थे।
Watch This Video
नमन है, ऐसी महा मनस्वी आत्मा को।
चैनल सब्सक्राइब करें : Youtube
ट्विटर पर फॉलो करें : Twitter
Discover more from Noida Views
Subscribe to get the latest posts sent to your email.