नोएडा। दिव्यांशु ठाकुर
कोरोना महामारी के बाद से ऑफिस का काम केवल दफ्तर तक सीमित नहीं रह गया है, जिससे कर्मचारियों पर काम का दबाव और तनाव बढ़ता जा रहा है। पहले ऑफिस का वर्कलोड केवल कार्यस्थल पर ही संभाला जाता था, लेकिन अब यह घर और निजी जीवन तक फैल गया है। इस बदलाव से कर्मचारियों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।
आज के समय में, ऑफिस का तनाव इस हद तक बढ़ गया है कि कर्मचारियों की कार्यक्षमता, रचनात्मकता, और सोचने-समझने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। दफ्तर में नौ घंटे की कठोर समय-सारणी, बॉस का दबाव, और समय सीमा की मांगों के चलते तनाव का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप, लोग शारीरिक और मानसिक समस्याओं जैसे तनाव, अवसाद, ब्लड प्रेशर, और नींद की कमी का सामना कर रहे हैं।
हाल के एक सर्वे में यह पाया गया कि 21 से 30 साल की आयु के कर्मचारी सबसे ज्यादा तनावग्रस्त होते हैं। विशेष रूप से, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जिसमें 72.2 प्रतिशत महिलाओं ने हाई टेंशन की बात कही। तनाव का यह स्तर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकता है।
तनाव से निपटने के लिए, दफ्तर में तनाव के कारणों की पहचान करना और उससे सकारात्मक तरीके से निपटना आवश्यक है। इसके साथ ही, काम और निजी जीवन में संतुलन बनाए रखना, नियमित ब्रेक लेना, और पौष्टिक आहार का सेवन भी जरूरी है। लंबे समय तक तनाव का सामना करना न केवल दिमाग पर असर डालता है बल्कि शरीर को भी नुकसान पहुंचाता है, इसलिए इससे बचने के उपाय अपनाने चाहिए।