भारत की स्वतंत्रता संग्राम की शौर्य-गाथा: दुर्गा भाभी का अद्वितीय योगदान

नोएडा। दिव्यांशु ठाकुर

भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा है जितना कि पुरुषों का। दुर्गावती देवी, जिन्हें ‘दुर्गा भाभी’ के नाम से जाना जाता है, इन्हीं महिलाओं में से एक थीं। उनका जन्म 7 अक्तूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर गांव में हुआ था। मात्र 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह भगवती चरण वोहरा से हो गया था, जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे।

दुर्गावती को ‘भाभी’ के नाम से इसलिए जाना जाने लगा क्योंकि एसोसिएशन के सदस्य उन्हें इसी नाम से संबोधित करते थे। दुर्गा भाभी ने भारत की आजादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनके साहस से अंग्रेज भी भयभीत रहते थे। इतिहास गवाह है कि जिस पिस्तौल से चंद्र शेखर आजाद ने आत्मबलिदान किया था, उसी पिस्तौल से दुर्गा भाभी ने भी बलिदान दिया था। 1926 में करतार सिंह सराभा की शहादत की 11वीं वर्षगांठ पर लाहौर में दुर्गा भाभी चर्चा में आईं, और जल्द ही वह संग्राम सेनानियों की प्रमुख सहयोगी बन गईं। जब भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद सॉन्डर्स की हत्या की योजना बनाई, तब दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और उनके साथियों को सुरक्षा प्रदान की थी।

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