Waqf Ammendment 2025: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई आरंभ कर दी है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने दो अहम सवालों पर पक्षकारों से विचार मांगा है. पहला, क्या यह मामला Supreme Court को सुनना चाहिए या हाईकोर्ट के पास भेजा जाए? और दूसरा, याचिकाकर्ता किन कानूनी बिंदुओं पर बहस करना चाहते हैं?
Waqf Ammendment 2025: कपिल सिब्बल ने रखी याचिकाकर्ता की ओर से दलील
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह संशोधन एक धार्मिक आस्था के मूल तत्व में हस्तक्षेप करता है। उन्होंने सवाल उठाया कि वक्फ स्थापित करने के लिए इस्लाम के पांच साल के पालन की शर्त कैसे तय की जा सकती है? क्या राज्य यह तय करेगा कि कोई मुसलमान है या नहीं? उन्होंने कहा कि कलेक्टर द्वारा वक्फ संपत्ति घोषित करने की प्रक्रिया असंवैधानिक है, क्योंकि वह स्वयं सरकार का हिस्सा होते हुए निर्णय करता है। सिब्बल ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुस्लिमों को भी शामिल किया जा सकता है, जो धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने जामा मस्जिद का उदाहरण भी पेश किया।
सरकारी प्रतिक्रिया और याचिकाओं की संख्या
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने Waqf Ammendment 2025 पर सुनवाई से पहले कहा कि न्यायपालिका (Supreme Court) को विधायी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने संविधान में शक्तियों के विभाजन की बात कही। इस कानून को चुनौती देने के लिए अब तक 70 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, आप के अमानतुल्ला खान, जमीयत-ए-उलमा-ए-हिंद समेत कई संगठनों की याचिकाएं शामिल हैं। भाजपा शासित राज्य जैसे राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और असम की सरकारों ने भी याचिका दाखिल की है और सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि निर्णय से पहले उनकी दलीलें भी सुनी जाएं।
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