नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत हुआ 7 दिवसीय शिक्षक क्षमता वर्धन कार्यक्रम।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत 7 दिवसीय शिक्षक क्षमता वर्धन कार्यक्रम के समापन सत्र में हंसराज सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति एक अच्छी नीति है क्योंकि इसका उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को समग्र, लचीला, बहु-विषयक बनाना है। जिसमे नीति का आशय कई मायनों में आदर्श प्रतीत होता है लेकिन यह वह कार्यान्वयन है जहां सफलता की कुंजी निहित है।

शिक्षा नीति कई उपक्रमों के साथ रखी गई है जो वास्तव में वर्तमान परिदृश्य की जरूरत है। नीति का संबंध अध्ययन पाठ्यक्रम के साथ कौशल विकास पर ध्यान देना है। किसी भी चीज के सपने देखने से वह काम नहीं करेगा, क्योंकि उचित योजना और उसके अनुसार काम करने से केवल उद्देश्य पूरा करने में मदद मिलेगी। दूसरे वक्ता डॉ देवेंद्र नागर ने कहा कि जितनी जल्दी एनईपी के उद्देश्य प्राप्त होंगे, उतना ही जल्दी हमारा राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर करेगा।

यह हम सब के लिए बड़ी खुशी की बात यह हैं कि पहली बार हमारे देश की शिक्षा नीति “भारत केंद्रित” बनी है। भारत सरकार ने पुरानी शिक्षा नीति को बदल कर “नई शिक्षा नीति 2020” को लागू करने का फैसला किया है जो सही अर्थों में सच्ची शिक्षा होगी। तीसरे वक्त के रूप में कश्मीर से जुड़े प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ जावेद राही ने कहा कि “इसका महत्व तब और भी बढ़ जाता हैं जब नई शिक्षा नीति 2020 को पूरी तरह से “भारत केंद्रित शिक्षा” बनाया जा रहा हैं।”

इसमें मातृ भाषा , स्थानीय भाषा पर जोर दिया जायेगा। और विषयों का चयन विद्यार्थियों पर छोड़ दिया जायेगा। अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी। भारतीय विद्याओं को शिक्षा के केंद्र में लाया जायेगा और संस्कृत भाषा व भारतीय संस्कृति संबंधित ज्ञान को बढ़ावा दिया जाएगा। लचीलापन इस शिक्षा नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में दिल्ली से जुड़े युवा समाजशास्त्री डॉ राकेश राणा ने कहा कि “भारत केंद्रित शिक्षा से ही हम भारतीय मूल्यों को पुन: स्थापित कर सकते हैं। और आत्मनिर्भर भारत का सपना भी पूरा कर सकते हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमें अपनी जड़ों से दुबारा जुड़ने और फलने फूलने के ढेर सारे अवसर प्रदान करेगी । भारत की शिक्षा भारत केन्द्रित ही होनी चाहिए।”

नई शिक्षा नीति 2020 में “मानव संसाधन विकास मंत्रालय” का नाम बदल कर “शिक्षा मंत्रालय” कर दिया गया है।और वर्तमान में रमेश पोखरियाल निशंक शिक्षा मंत्री हैं। 34 साल पहले यानि सन 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई थी। तीन दशक से इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ।इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% भाग खर्च किया जायेगा।

नई शिक्षा नीति में समग्र शिक्षा को खास महत्व दिया गया है। समग्र यानी संपूर्ण या समस्त। सभी शिक्षक अपने विषयों और उनके पाठ्यक्रमों के बारे में छात्रों के हित ध्यान में रखकर खुद निर्णय ले सकेंगे। भाषा की बाध्यताओं भी दूर होगी।

आज तक की शिक्षा व्यवस्था में इंटरमीडिएट पास करने के बाद ही टेक्निकल शिक्षा या व्यवसायिक शिक्षा में प्रवेश लिया जा सकता था। लेकिन अब स्कूल से ही छात्र अपनी रुचि के विषयों में प्रवेश लेकर उनकी पढ़ाई कर सकेंगे। अब इसे पाठ्यक्रम का अंग बना दिया गया है।

छटी (6) कक्षा के बाद छात्र व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं। और 8वीं से 11वीं तक के छात्र अपनी पसंद के विषय भी चुन सकते हैं। अब किसी भी स्ट्रीम का छात्र कोई भी विषय ले सकता है यानी विज्ञान के छात्र संगीत या कोई अन्य विषय भी ले सकते हैं।

त्रिभाषा फार्मूला लागू होगा और उच्च शिक्षा तक संस्कृत को विकल्प के रूप में दिया जाएगा। सभी राज्य बिना किसी दबाव के अपनी पसंद की भाषा चुनने के लिए स्वतंत्र होंगे।
कॉलेज या उच्च शिक्षा में प्रवेश और निकासी , दोनों में ही लचीलापन होगा। भारत में यह सुविधा बिलकुल नई है।अगर कोई विद्यार्थी किसी कारण वश अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देता हैं। तो वह कुछ समय बाद अपनी पढ़ाई दुबारा शुरू कर सकता है। उसका पुराना क्रेडिट कायम रहेगा। कार्यक्रम में कार्यक्रम निदेशक के रूप में जिला विद्यालय निरीक्षक गजेन्द्र कुमार ने कहा कि “नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। न सिर्फ शिक्षा बल्कि विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता और उनको बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। क्योंकि अगर शिक्षा में गुणवत्ता होगी तो , वह रोजगार के द्वार भी खोलेगी और व्यक्ति व राष्ट्र के विकास में भी सहायक होगी।यानि एक ऐसी शिक्षा है जो हर बच्चे के सम्पूर्ण जीवन के हर पहलू का विकास करें और उसके साथ ही बच्चे की क्षमताओं का भी संपूर्ण विकास करे।”

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के द्वारा शिक्षा का स्तर सुधारने और शिक्षा में तकनीकी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जायेगा । इसमें विद्यार्थी और शिक्षकों को अधिक सशक्त बनाया जायेगा। पहली कक्षा से कक्षा 12वीं तक के विद्यार्थीयो पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।
अब छठी कक्षा से ही बच्चे को व्यवसायिक व कौशलपूर्ण शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी।

सिर्फ डिग्री लेने वाली शिक्षा के बजाय रचनात्मकता , तार्किकता , तकनीकी और रोजगार परक शिक्षा पर बल दिया जाएगा। ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक “राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF)” बनाया जायेगा , जहाँ वर्चुअल लैब विकसित की जाएंगी।
शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए नई शिक्षा नीति को बनाने से पहले देश की लगभग 2.5 लाख ग्राम पंचायतें , 6600 ब्लॉक और 650 जिलों के शिक्षाविदों, अध्यापकों, अभिभावकों, जनप्रतिनिधियों एवं व्यापक स्तर पर छात्रों से भी सुझाव लिए गए थे ।उसके बाद नई शिक्षा नीति सामने आयी।

अब सभी विश्वविद्यालयों पर एक समान नियम लागू होंगे। यानि अब डीम्ड यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी आदि का अस्तित्व खत्म हो जायेगा। अब सभी विश्वविद्यालय ही कहलाएंगे। सभी महाविद्यालयों को निश्चित समय-सीमा में स्वायत्त बनना पड़ेगा। महाविद्यालय या तो स्वायत्त होंगे या फिर किसी विश्वविद्यालय का हिस्सा होंगे।
महाविद्यालय तीन प्रकार के होंगे। पहले प्रकार के वो विश्वविद्यालय होंगे जो शोध पर जोर देंगे। दूसरे शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करेंगे और तीसरे महाविद्यालय बिना किसी के दबाव के स्वायत्त ढंग से अपने फैसले ले सकेंगे। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित संयुक्त शिक्षा निदेशक सहारनपुर मण्डल ने कहा कि “एफफिल और पीएचडी के कोर्स लगभग एक जैसे ही थे। इसलिए अब एमफिल को खत्म कर दिया गया है। किसी भी समाज , राष्ट्र और उसके नागरिकों के सर्वागीण विकास के लिए सिर्फ कालेज या विश्वविद्यालय की डिग्री आधारित समाज की नहीं , बल्कि ज्ञान आधारित समाज की अत्यंत आवश्यकता होती है।”

वर्तमान समय में एक ऐसे समाज की बहुत आवश्यकता है। जिसमें सभी कामों को ज्ञान के आधार पर किया जाय। ज्ञान आधारित समाज की नींव दूरसंचार तंकनीक के विस्तार से पड़ी हैं । ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में ज्ञान के केन्द्र मानी जाने वाली शिक्षण संस्थायें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

शिक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन है जिससे किसी भी व्यक्ति , समाज व राष्ट्र को ताकतवर बनाया जा सकता है और जब वह शिक्षा अपनी जड़ों से जुड़ी हुई हो या अपनी संस्कृति से जुड़ी हुई हो तो , वह चहँमुखी विकास करती है। रोजगार के नए अवसरों को पैदा करती है।

कार्यक्रम संयोजक डॉ रणवीर सिंह ने समापन सत्र के अवसर पर कहा कि,
शिक्षा व्यक्ति व समाज को विनम्र , सहनशील , सभ्य और शिष्ट बनाती हैं। नई शिक्षा नीति इन सभी मापदंडों में खरी उतरती हैं जो भविष्य में छात्रों को एक नई दिशा प्रदान करेगी। यह शिक्षा नीति भारत की प्रतिभाओं को और निखारने व तराशने का काम करेगी। भारत की यह नई शिक्षा व्यवस्था भविष्य में मील का पत्थर साबित होगी।

कार्यक्रम संयोजक डॉ रणवीर सिंह ने कहा कि इस 7 दिवसीय कार्यक्रम में प्रो बीरपाल सिंह, डॉ तन्वी भाटी, डॉ किशोर कुमार,डॉ सौरभ कुमार,डॉ निधि जैन,डॉ कुलदीप पँवार, डॉ विनोद कुमार शनवाल,डॉ सुभाष कुमार विकल,डॉ देवेंद्र नागर,हंसराज सिंह,डॉ जगराम सिंह डॉ जावेद राही नें विभिन्न विषयों पर अपना महत्वपूर्ण वैचारिक योगदान दिया।

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