माँ तुम धरती की भगवान हो

शैलेन्द्र कुमार भाटिया
तुम
हर पल
रचती हो मुझे
भ्रूण से लेकर आज तक
सँभालती रही हो तुम
तुम्हारा चित,
तुम्हारी चिंता,
तुम्हारा चिन्तन,
तुम्हारी चाहत,
तुम्हारा चूल्हा चौकी
मैं हूँ
तुम्हारी
पूजा,
मनौती
और
व्रत भी
मैं हूँ
मैं जब एक कदम बढ़ता हूँ
तुम दस कदम बढ़ती हो
मेरी एक सफलता पर
घर के देवी – देवता से लेकर
ब्रम्हांड तक पूजती हो
मेरी असफलता पर
हिमालय सा सहस देती हो
तुम्हारे लिए हर दिन बल दिवस है |
मेरी अपूर्णता
तुम्हे बचपना लगती है
तुम हमेशा क्षमा करती हो
बार बार
क्यूँ
क्या तुम धरती की भगवन हो