नोएडा। निवेश को धरातल पर उतारने के लिए नोएडा में जमीन की उपलब्धता चाहिए, जो वर्तमान में प्राधिकरण के पास नहीं है। बिना जमीन निवेश को धरातल पर उतारा नहीं जा सकता है। जबरन किसान की जमीन का अधिग्रहण हो नहीं सकता है, सहमति से किसान जमीन देने को तैयार नहीं है, क्योंकि जमीन अधिग्रहण के एवज में प्राधिकरण की ओर से किसानों को दिया जाने वाला मुआवजे की दर कम है।
25 से 30 हजार में जमीन बेच रहे किसान
ऐसे में किसान डेवलपर्स को 25 से 30 हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से जमीन बेच रहे हैं। इससे प्राधिकरण अधिकारियों के सामने जमीन अधिग्रहण करने की चुनौती खड़ी हो गई है। किसान की जमीन पर अवैध निर्माण का हवाला देकर जब भूलेख अधिकारी दल बल के साथ तोड़फोड़ की कार्रवाई करने पहुंचते हैं तो उन्हें मौके पर पता चलता है कि जमीन पर किसान ने स्टे ले रखा है, जिसकी तारीख कोर्ट ने तीन से चार माह आगे दे रखी है।
जब तक प्राधिकरण अधिकारी स्टे की कार्रवाई से निपटने की तैयारी में जुटते है, कोर्ट की शरण में पहुंचते है, तब तक जमीन पर निर्माण पूरा हो चुका होता है। इससे अधिकारी जमीन अधिग्रहण कर पाने में बेबस हो रहे है। ऐसे तमाम प्रकरण इस समय नोएडा प्राधिकरण कार्यालय में आ चुके है, जिन पर डेवलपर्स के साथ अधिकारियों की वार्ता चल रही है। इसमें अब महर्षि आश्रम की जमीन का प्रकरण भी शामिल हो चुका है।
सहमति से जमीन लेने में अधिकारियों को नाकामी लग रही हाथ
ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में नोएडा प्राधिकरण ने करीब 90 हजार करोड़ रुपये के नए निवेश का एमओयू साइन गया है। इसमें से 60 हजार करोड़ के निवेश को छह माह में धरातल पर उतारने का लक्ष्य अधिकारियों को मिला है। निवेश के लिए पर्याप्त जमीन की उपलब्धता हो।
इसके लिए किसानों से सहमति के आधार पर जमीन अधिग्रहण करने की चरणबद्ध तरीके से योजना भूलेख विभाग ने तैयार की, जिसको लेकर कई गांव में लगातार किसानों के लिए शिविर भी लगाया जा रहा है, लेकिन किसानों से सहमति के आधार पर जमीन लेने में नाकामी मिल रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में किसानों से सिर्फ 3.66 हेक्टेयर एकड़ जमीन ही अधिग्रहित की जा सकी है। इस वित्तीय वर्ष में 50 एकड़ जमीन का लक्ष्य जुटा पाना अधिकारियों को संभव दिखाई नहीं दे रहा है।
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