नोएडा। दिव्यांशु ठाकुर
महिलाओं के खिलाफ अपराध में बीते 10 सालों में 75 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो बेहद चिंताजनक है। समाज में ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ की मानसिकता महिलाओं की स्थिति को और अधिक दयनीय बना रही है। पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएं सदियों से असहाय और पराश्रित छवि में जकड़ी हुई हैं। हालिया घटनाओं में महिलाओं के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता और उनकी सुरक्षा के प्रति समाज की उदासीनता साफ झलकती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, महिला अपराध के मामलों में 23 प्रतिशत को ही सजा मिल पाती है, जो न्याय व्यवस्था की गंभीर कमी को उजागर करती है। घर और समाज को मिलकर लड़कों और लड़कियों में समानता की भावना का विकास करना होगा। बच्चों को बचपन से ही महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक करना आवश्यक है।
सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए, हमें पीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए आगे आना चाहिए। समाज में बदलाव लाने के लिए, महिलाओं को आत्मरक्षा के तरीके सिखाए जाने चाहिए और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत जुटानी होगी। समाज को अपने अंदर परिवर्तन लाना होगा, तभी महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोका जा सकता है।
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