ईश्वर की कर्म फल व्यवस्था में दखल है यह
21वी सदी के आरंभ से ही जैव विविधता पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं तेजी से पशु पक्षियों सहित कीटों की दर्जनों प्रजातियां विलुप्त हो गई है ,तो कुछ विलुप्ति की कगार पर हैं| विधाता की कोई रचना निष्प्रयोज्य नहीं है, जब उसने रचा है कीड़े मकोड़े पतंगों को तो कोई सार्थक उद्देश्य ही होगा वह सर्व शक्तिमान ईश्वर मनुष्य की तरह निरर्थक रचना नहीं करता |यह बात अलग है हम अपनी अल्पज्ञान से उसकी रचना के प्रयोजन को समझ नहीं पाते | आज हम देखते हैं गोरैया, मैना, कठफोड़वा, नीलकंठ मोर जैसे पक्षी दिखाई नहीं देते| जीव-जंतुओं पक्षियों के बगैर यह दुनिया बदरंगी हो रही है|
जहां रचना के प्रयोजन को ठीक-ठीक समझ जाते हैं वहां उसका अलग ही अनुप्रयोग कर डालते हैं जैसे पक्षियों से प्रेरणा लेकर विमान तथा मछलियों से प्रेरणा लेकर नाव की रचना| ईश्वर ने विभिन्न जंतुओं की रचना मनुष्य को उसके कर्मों का फल पुण्य और पाप रूप दंड या पुरस्कार स्वरूप देने के लिए किया है| सभी जीव जंतुओं मनुष्यों में एक समान जीवात्मा निवास करती है| हम जीव आत्मा असंख्य अच्छे बुरे कर्म करते हैं तो उन्हें भोगने के लिए जन्म-जन्मांतर में असंख्य शरीरों की आवश्यकता पड़ती है| इन अनेक जीव जंतुओं की की रचना के पीछे ईश्वर के असंख्य जीवात्माओं को उनके कर्मों का फल भोगवाना जिसे ईश्वर का न्यायकारी स्वरूप प्रकट हो सके ,दूसरा मनुष्य जीव जंतुओं से प्रेरणा लेकर उपयोगी पदार्थों को रचे, इनका आवश्यकता अनुकूल उचित प्रयोग कृषि पशुपालन आदि अनेक मैं करें |लेकिन इन को हानि ना पहुंचाएं अपने जीवन को सुखमय बनाएं तथा रंग बिरंगी पक्षियों कीट-पतंगों को देख कर मन मनोरंजन करें|
लेकिन हम अपने अनुचित क्रियाकलापों उपभोग से विधाता की रचना जैव विविधता को नष्ट कर रहे हैं| क्या यह विधाता के खेल में दखल नहीं है? ईश्वर इस क्षति की पूर्ति कैसे करेगा ? जब हम आदर्श वातावरण को नष्ट कर डालेंगे विभिन्न योनियों के शरीर निर्माण के लिए आप इसे ऐसे समझ सकते हैं यदि किसी व्यक्ति के कर्म चींटी बनने लायक हैं अगले जन्म में और यहां इस पृथ्वी पर हमने चीटियां को विलुप्त कर दिया है पर्यावरण प्रदूषण व उसके अनुकूल मौसमी दशाओं को प्रभावित कर ईश्वर कैसे फल देगा? यह गंभीर दार्शनिक चिंतन व अध्यात्म का विषय है
आर्य सागर खारी
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