क्या अर्थ डे मनाने से पर्यावरण संरक्षण हो पायेगा ?
हमारे अस्तित्व का निर्माण पंच महाभूतों से मिलकर हुआ है। जिन्हे हम भगवान कहते हैं।
भ से भूमि,ग से गगन,व से वायु,अ से आग और न से नीर। यही हमारे पंचतत्व हैं,हमारे भगवान है। भारतवासी सदियों से प्रकृति को भगवान मानकर पूजते रहे और उसका संरक्षण व संवर्द्धन करते रहे लेकिन जब से मैकाले की शिक्षा पद्धति भारतवर्ष में लागू की गयी और यहाँ के लोगो ने उसे आत्मसात करना शुरु किया तो प्रकृति के प्रति प्यार और सम्मान घट गया। हम विकास के नाम पर लगातार पर्यावरण का नाश करने लगे। हमे ये पता ही नही कि हम जिन उद्योग धन्धो व कारखानों को मानव सभ्यता के विकास की निशानी मान रहे हैं ,वास्तव में वो ही मानव सभ्यता को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। अभी हाल ही में अमेरिका की हेल्थ इफैक्ट्स इंस्टीटयूट (एचईआई) ने स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की जो रिपोर्ट जारी की है उसके मुताबिक भारत में पिछले साल करीब 12 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से हुई है।वायु प्रदूषण के कारण स्ट्रोक,मधुमेह,दिल का दौरा,फेफडे के कैंसर या फेफडे की पुरानी बिमारियों से पूरी दुनिया में करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई।इनमें से 30 लाख मौंते सीधे तौर पर पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (पीएम 2.5) से जुडी हैं।इनमें से भी तकरीबन आधे लोगों की मौत भारत और चीन में हुई हैं।वायु प्रदूषण पर अमेरिकी रिपोर्ट के यह आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं ।इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्य संबंधी खतरों से होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है।रिपोर्ट के मुताबिक इस वजह से दक्षिण एशिया में मौजूदा हालात में जन्म लेने वाले बच्चों की जिंदगी ढाई साल कम हो जाएगी। वही पूरे विश्व में पैदा होने वाले बच्चों की जिंदगी मे 20 महीने की कमी आएगी ।इस रिपोर्ट में दक्षिण एशिया को सबसे प्रदूषित क्षेत्र माना गया है। जिसमें भारत पाकिस्तान बांग्लादेश और नेपाल सबसे ज्यादा खतरनाक स्थिति में है । इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण दल संस्था की के प्रतिउत्तर में भेजी गयी सूचना में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि वर्ष 2017 में
“नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेन्शन एंड कंट्रोल ऑफ कैंसर,डायब्टीज, कार्डियोवास्कुलर डिसीज एंड स्ट्रोक” के तहत जो लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित थे उनमें से तकरीबन 20% लोग सीधे तौर पर गंदी हवा के प्रभाव से बिमार हुए थे। 22 अप्रैल को पूरे विश्व ने पृथ्वी दिवस (अर्थ-डे) मनाया और कुछ पेड लगाकर व कुछ सम्मेलन करके पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली। इस प्रकार के आयोजन महज कर्मकांड है और वे वास्तविकता से कोसों दूर है। वहां केवल राजनीति होती है,पर्यावरण संरक्षण नहीं। मजेदार बात यह है कि इनमें से ज्यादातर आयोजन वातानुकुलित भवनों में होते हैं, जिनमे पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाले ऐसी लगे होते है। इनसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) गैसों का उत्सर्जन होता है जोकि बेहद खतरनाक है और जिससे ओज़ोन परत को तेजी से नुकसान पहुँच रहा है। ज़मीन से 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन की परत मनुष्यों और जानवरों को हानिकारक अल्ट्रावायलट (यूवी) किरणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | यूवी किरणों से मनुष्यों में कैंसर होता है | प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है | भारत में सन 1972 से लेकर अभी तक 26 पृथ्वी दिवस मनाये जा चुके हैं । इन सम्मेलनों में जो बातें होती हैं वो सारी इन पृथ्वी दिवसों में हो चुकी हैं लेकिन हम इनको कितना व्यवहार में जीते हैं, यह एक बड़ा सवाल दुनिया के सामने होना चाहिए। हमारा पृथ्वी के साथ रिश्ता कैसा है ,जीना कैसा है? जब हम पृथ्वी को केवल भोग की वस्तु मानते हैं तो प्रकृति के साथ हमारा शोषण का रिश्ता हो जाता है । भारत प्रकृति के साथ शोषण के लिए नहीं बल्कि पोषण के रिश्तो पर जीता रहा है लेकिन प्रकृति के साथ रिश्ते को व्यवहार में जीने वाले ज्यादातर भारतवासियों का व्यवहार अब बदल गया है।जहाँ एक ओर प्रकृति कष्ट सहकर भी हमे पोषण दे रही है ,वहीं दूसरी ओर हम लोग प्रकृति नियंता बनकर प्रदूषण फैलाने,शोषण व अतिक्रमण करने में लगे हैं। क्या एक दिन में पर्यावरण का संरक्षण संभव है ? बिलकुल नही। यह एक सतत प्रक्रिया है जो ठीक उसी प्रकार चलेगी जैसे कि हम हर रोज पानी पीते हैं ,सांस लेते हैं और भोजन करते हैं। किसी एक दिन कुछ पेड़ लगा देने से या कार्यक्रम आयोजित करके पर्यावरण संरक्षण का दिखावा तो जरूर किया जा सकता है परंतु वास्तव में पर्यावरण का संरक्षण नहीं किया जा सकता। अगर हम अपना और अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाना चाहते हैं तो हमे तुरन्त प्रकृति का शोषण रोककर उसका पोषण करना पड़ेगा।हमे गाडी,एसी,फ्रिज,माइक्रोवेव ऑवन जैसे उपकरणों (जोकि क्लोरोफ्लोरोकार्बन नामक जहरीली गैस का उत्सर्जन करते हैं) का प्रयोग तुरन्त प्रभाव से बन्द करना पडेगा।हर रोज पेड लगाकर उनका संरक्षण करना होगा ,जल का बेवजह दोहन बन्द करना होगा।इसके अलावा नदियों, तालाबों और पोखरों की सफाई करके वर्षा के जल का संचय करना होगा क्योंकि प्रकृति ही हमारा भगवान है और भगवान संरक्षित तो हम सुरक्षित।
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