हम सभी जानते हैं की हमारा जीवन कितना बहुमूल्य है इसको सुखमय बनाने के लिए हम सभी प्रयत्न करते हैं और सभी अपने अपने तरीकों से इसको सुखमय बनाने का प्रयास करते हैं जैसे कोई मंदिर, मस्जिद और गुरुदवारा जाकर प्रार्थना और दुआएं करते हैं वहीँ कुछ लोग धन अर्जित करने की होड़ में लग जाते हैं क्यूंकि उनका मानना होता है के धन से ही सुख प्राप्त किया जा सकता है। कुछ लोग सुख पाने लिए अक्सर पार्टियों में व्यस्त रहते हैं वहीँ कुछ लोग दुःख भुलाने लिए नशे का सहारा लेकर कुछ समय के लिए सुखी महसूस करते हैं। परन्तु क्या सही मायने में इसी को सुख कहते हैं ?
यह प्रश्न हमेशा मेरे मन में आता रहा और काफी सोचने के बाद मुझे इसका जवाब मिला, नहीं हम इसको सच्चा सुख नहीं कह सकतेI अगर हम ध्यान दे और विचार करे तब हमे ज्ञात होगा कि सच्चा सुख तो हमारे विचारों से ही जुड़ा है। हमारी सकारत्मक सोच ही हमारे जीवन को सुखमय बनाती है।अगर हम सही मायने में इसको समझ गए तो हमारा ये जीवन सफल हो जायेगा। आजकल यही समझाने के लिए कई महापुरुष सत्संग के माध्यम से हमे ये ज्ञात कराते हैं परन्तु हम लोग सुनकर कुछ पल के लिए सकारात्मक तो हो जाते हैं परन्तु बाद में फिर वही सब करते हैं जिससे हम खुद को और दूसरों को दुखी करते हैं। ये क्रम ऐसे ही चलता रहता है जब तक हम ज़िंदगी के उस पड़ाव पर नहीं पहुँच जाते जहाँ हमारे पास पश्चाताप के अलावा इतना समय भी शेष नहीं रहता के हम पुनः अपनी ज़िन्दगी को सकारात्मक सोच के साथ जीवन का सही सुख भोग सकें। जीवन का कटु सत्य यह है की हम सभी यहाँ मुसाफिर हैं और यहाँ अपना कर्म करने आये हैं। हमे यह निश्चित करना है कि हमारा कर्म कैसा हो? अच्छा या बुरा? जिसका परिणाम हमे इसी जीवन में मिलता है। मुझे आशा है की हम अपनी सकारात्मक सोच से अपने जीवन को सफल एवं सुखी बनाएंगे।
लेखिका – मीनाक्षी त्यागी
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