वो सुबह कभी तो आएगी

तू होती तो ऐसा होता तू होती तो वैसा होता| मैं और मेरा घर तुझको याद करता है| तेरे बिना मेरा घर अब सूना लगता है | जब तू आती थी मन खिल उठता था| जब तू छुट्टी की बात करती थी मेरे दिल को चोट लगती थी|याद है मुझे तेरा वो देर से आना और मेरा नाराज़ हो जाना| खुद काम करके अब अहसास होता है कि तू भी मेरी तरह थक जाती होगी इसलिए हर माह दो छुट्टी लेती होगी | मैं इन विचारो में डूबी हुई थी कि अचानक व्हाट्सप पर एक विडिओ देख कर हतप्रभ हो गई कैसे एक परिवार के सभी लोगो को क्वारंटाइन के लिए ले जाया जा रहा था क्योकि ये परिवार रोज अपनी कामवाली बाई को प्रतिदिन लेने और छोड़ने जाते थे | यह देखकर मै बहुत डर गयी और सोचने लगी कि नहीं अब काम वाली बाई को रखना सुरक्षित नहीं होगा |परन्तु शाम को मैं फिर शांत मन से बैठ कर सोचने लगी कि क्या काम वाली बाई को नहीं रखने वाल फैसला उचित होगा ? वो काम वाली बाई जो इतने वर्षो से हमारे लिए कार्य कर रही थी जो हमारे परिवार का हिस्सा बन गई थी अब कैसे वो अपने परिवार का पेट पालेगी ?कब तक वो हमसे मदद मांगती रहेंगी ? फिर मैंने फैसला किया कि मैं किसी भी ऐसे वीडियो को देखकर या मैसेज पढ़ कर अपना मन नहीं बदलूंगी और सुरक्षा के सभी नियमो का पालन करते हुए अपनी काम वाली बाई को वापस काम पर रखूंगी ऐसा करने से न केवल मेरी समस्या का समाधान होगा अपितु मेरी काम वाली को भी रोजगार मिलेगा और हमारे देश की अर्थववस्था को भी गति मिलेंगी | मैं इस सोच के साथ निश्चिन्त होकर सो गई और अगले दिन प्रातःकाल अपने काम पर व्यस्त हो गई तभी अचानक मेरे पास एक फ़ोन आता है यह कोई और नहीं बल्कि काम करने वाली बाई थी जो कभी हमारी सोसाइटी में काम करती थी और कार्य न होने के कारण बहुत दुखी थी | वो मुझसे जानकारी लेना चाहती थी कि उनको कब से कार्य करने की अनुमति मिलेगी ? परन्तु जब मैंने बताया की यहाँ जल्दी ही निर्णय लिया जायेगा लेकिन यहाँ कुछ लोग डरे हुए है की भगवान् ना करे अगर किसी में कोरोना वायरस के लक्षण मिले तब क्या होगा ? परन्तु उसने जवाब दिया कि मैडम डरना तो हम काम वाली बाइयो को चाहिए क्योकि ये कोरोना वायरस हम से नहीं आप जैसे बड़े लोगो से आया है परन्तु हम लोगो की मज़बूरी है कि हमे कार्य करना पड़ेगा वरना हम भूखे मर जाएंगे | उसका ये जवाब सुनकर मैं सोच मैं पड़ गयी कि यह सत्य तो कह रही है आज हम कुछ लोगो के कारण ही तो ये सभी कष्ट उठा रहे है इनका क्या दोष है ?
हमारे देश में कितने ही ऐसे परिवार है जो यक्तिगत रूप से इन काम वाली बाइयो की ड्राई राशन,और पैसो से मदद कर रहे है परन्तु अब हमे कार्य करने कीअनुमति दे कर इनकी मदद करनी होगी | हमारे देश में कितनी ही महिलाये ऐसी है जो व्रद्धावस्था मे अकेले घर का कार्य करती हैं, कुछ महिलाये घर के साथ साथ कार्यालय का भी कार्य करती है और कुछ स्वस्थ न होने के कारण मज़बूरी मे घर के कार्य कर रही हैं| जीवन मे अगर समस्याएं है तो उनका समाधान भी है|हमे समस्या नहीं अपितु समाधान पर विचार करना होगा|जब हम समाचारों में देखते है कि कैसे ये मजदूर भूखे,प्यासे,पैदल अपने गाँव जा रहे है तब इनके पैरो के छाले देख कर,छोटे बच्चों को भूख से बिलखते देखकर और औरतो की बेबसी देख कर आँखो में आँसू तो आते है परन्तु कभी सोचा है की इनके गुनहगार भी हममे से ही कुछ लोग है हमारे लिए बहुत आसान होता है कि हम हर बात के लिए सरकार को दोष देते है परन्तु क्या हम कसूरवार नहीं है ? जो इनको काम देने से डरते है | जरा सोचिये अगर हम लोगो से भी हमारा कार्य छीन लिया जाये तब हमारे परिवार की क्या दशा होगी ? वायरस कभी भी अमीर और गरीब देख कर प्रवेश नहीं करता अपितु सावधानी ना रखने पर ही हम संक्रमित होते है हममे सिर्फ निन्म जाति के लोगो को जागरूक करना होगा और मिलकर सभी सावधानियों का पालन करना होगा |अगर हम सभी नियमो का सावधानी पूर्वक ध्यान रखेंगे तो इस कोरोना वायरस से हम सुरक्षित रह सकेगें | आओ हम अपने इस डर को भगाये और इन काम वाली बाइयो को आत्मनिर्भर बनायें |
मै दावे के साथ कह सकती हूँ कि एक दिन वो सुबह अवश्य आएगी जब ना ये महामारी होगी ना चेहरे पर नकाब होगा बस हम होंगे और ये नीला गगन होगा |

लेखिका: मीनाक्षी त्यागी


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