आइये जानते हैं वरिष्ठ सब्जी वैज्ञानिक डाक्टर नरेन्द्र सिंह से आलू उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण जानकारी
तापमान एवं जलवायु
आलू की फसल के लिए माध्यम ठंडा मौसम उपयुक्त रहता है। आलू की वृद्धि एवं विकास के लिए 15-20 डिग्री तापमान उपयुक्त है। इसके अंकुरण के लिए 25 डिग्री सेंटीग्रेड, संवर्धन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड और कंद के विकास के लिए 17-19 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। आलू के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.2 से 6.5 तक उपयुक्त है।
उन्न्त किस्में और उपयुक्त समय
- 20 से 30 सितंबर तक अगेती उगाई जाने वाली उन्न्तशील क़िस्मों में कुफ़री पुखराज, कुफ़री ख्याति, कुफ़री जवाहर व कुफ़री सूर्या आदि शामिल हैं।
- अक्तूबर के पहले सप्ताह से लेकर 20 अक्तूबर तक उगाई जाने वाली क़िस्मों में कुफ़री मोहन, कुफ़री लुम्बी, कुफ़री गंगा, कुफ़री पुष्कर, कुफ़री सतलुज, कुफ़री बादशाह, कुफ़री अशोक, कुफ़री अरुण, कुफ़री जवाहर, कुफ़री ज्योति, कुफ़री बहार, कुफ़री लालिमा, कुफ़री सदा बहार, कुफ़री लवकर आदि हैं।
- कुफ़री सिंदूरी (नवंबर के प्रथम सप्ताह तह उगाई जाने वाली) पछेती क़िस्म है।
आलू की पृस्कृत किस्में
कुफ़री चिपसोना 1, 2, 3, 4 किस्में हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली व हिमाचल प्रदेश में सफलता से उगाई जा सकती हैं।
लेट ब्लाइट अवरोधी किस्में
कुफ़री पुष्कर, कुफ़री अरुण, कुफ़री सूर्या, कुफ़री ख्याति, कुफ़री मोहन, कुफ़री गंगा, कुफ़री हिमसोना लेट ब्लाइट अवरोधी किस्में हैं।
बीज की मात्रा
अच्छी पैदावार के लिए 12-13 क्विंटल कंद (बीज) प्रति एकड़ प्रयाप्त होते हैं।
कंद लगाने की विधि
अगर आलू का आकार/ वजन 100 ग्राम तक हो तो उन्हें बिना काटे खेत में लगाया जा सकता है। यदि इससे बड़ा आकार हो तो काट कर लगाया सकता है। लेकिन कटे हुए कंदों की बीजाई 15 अक्तूबर के बाद ही करें। कटे हुए कंदों के प्रत्येक भाग में 2-3 आँखें जरूर होनी चाहिएं। कटे हुए कंद का वजन 30 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। कटे हुए कंदों को 0.25 प्रतिशत इंडोफिल एम. 45 के घोल में 5-6 मिनट तक डुबोकर जरूर उपचरित करें।
बीज (कंद) उपचार कैसे करें
3% बोरिक एसिड घोल में (3 किलोग्राम बोरिक एसिड को 100 लीटर पानी में घोल कर) 20-30 मिनट तक डुबोकर आलू के बीज को उपचरित करें।
उर्वरकों की मात्रा
हालांकि देखने में आया है कि किसान आलू की फसल में कृषि अनुमोदित मात्रा से अधिक मात्रा में खाद का इस्तेमाल करते हैं, फिर भी जानकारी के लिए बता दें कि खेती की तैयारी के समय 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद, 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन (यूरिया), 20-30 किलोग्राम फासफोरस व 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करनी चाहिए।
खाद का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर किया जाए तो अधिक उपयुक्त रहता है।
आलू की फसल में जल प्रबंधन
यदि आलू की बिजाई खेत में पलेवा करके की गई हो तो बिजाई के बाद पहला पानी 7-10 दिनों के बाद लगाएं। अक्तूबर- नवंबर के महीनों में 7-10 दिनों के अंतर पर तथा दिसंबर- जनवरी के महीनों में 10- 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहें।
आलू में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण के लिए नीचे दिये गए किसी भी एक रसायन (दवाई) को 200-250 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के 10 दिनों के अंदर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें:
एलाक्लोर 1.0-1.2 किलोग्राम (लासो 50%) 2.0-2.4 लीटर प्रति एकड़ या-
एलाक्लोर 0.5 कोलिग्राम (लासो 50% 1 लीटर + 0.05 किलोग्राम टाइफजीव 50% 0.1 किलोग्राम) प्रति एकड़ या-
पैंडामैथलीन 0.480, 0.600 किलोग्राम (स्टांप 30%, 1.6-2.0 लीटर) प्रति एकड़ स्प्रे करें।
आलू की फसल में खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल करते समय खेत में प्रयाप्त नमीं होनी चाहिए।
मुख्य कीट और उनकी रोकथाम
तेला (AmerascaBiguttula):
इस कीट के नियंत्रण के लिए 300 मिलीलीटर डाईमैथाएट (रोगार) 30 ईसी या आसिडेमेदान मिथाइल 25 ईसी को 200-250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से सप्रे करें।
चेपा (Myzus Persicaew): इसके लिए भी उपरोक्त दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम
अगेती अंगमारी: इस बीमारी का अंदेशा होते ही फसल पर जिनेव (इंडोफिल ज़ेड 75) या मेनकोजेब (इंडोफिल एम 45) या मेनकोजेब 600-800 ग्राम दवाई 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करें।
पछेती अंगमारी: बिजाई के लिए इस्तेमाल होने वाले कंद प्रमाणित एवं स्वस्थ निरोग होने चाहिएं।
मेनकोजेब (इंडोफिल एम 45 या मेनकोजेब 600-800 ग्राम दवाई को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ स्प्रे करें। यह स्प्रे 10-15 दिन के अंतराल पर 4-5 बार करें।
सामान्य स्कैब (स्टेप्टोमाइसिस स्कैब): स्कैब रहित प्रमाणित बीज प्रयोग करें। आलू को बीज के लिए कोल्ड स्टोर में भंडारित करने से पहले 3% बोरिक एसिड के घोल में उपचरित करने से काला कोढ़ व स्कैब को भावी फसल में आने से काफी हद तक रोका जा सकता है।
कहां से प्राप्त करें के उन्नत बीज
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, मेरठ व प्रादेशिक कृषि विश्वविद्यालय
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