गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में क्या खोया क्या पाया और इसका भविष्य क्या होगा

श्रुति नेगी :

राजस्थान का गुर्जर आरक्षण आन्दोलन आजादी के बाद भारत का सबसे उग्र और लम्बा चलने वाला आन्दोलन है। गुर्जर समुदाय ने अपनी इस मांग के लिए कीमत भी बहुत चुकायी है। इस आंदोलन की शुरुआत वर्ष 2006 में हुई। जब यह पहली बार सुर्खियों में मीडिया की खबरे बना। हालाकि सामाजिक चेतना के तौर पर गुर्जर समुदाय के नेता गार्ड साहब आरक्षण की मांग को लेकर समाज को लम्बे समय से तैयार कर रहे थे।

इस बड़े आंदोलन ने प्रदेश और देश दोनो स्तर पर भाजपा व कांग्रेस की सरकारें देखी है सभी के साथ संघर्ष और समझौते होते रहे। मगर किसी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पाया है। आरक्षण की मांग को लेकर सामाजिक न्याय की इस लडाई का भविष्य क्या होगा इस पर युवा समाजशास्त्री डॉ0 राकेश राणा से वरिष्ट पत्रकार राकेश छोकर की एक बातचीत हुई है।

साक्षात्कार में पत्रकार ने डॉ0 राणा से काफी सवाल पूछे जैसेकि वहे आन्दोलन को किस तरह से देखते है, आन्दोलन की सफलता/विफलता का मूल्यांकन कैसे करते है, कैसे आंदोलन को एक सफल आन्दोलन मान रहे है जबकि इतने लम्बे समय से मांग नहीं मानी जा रही है, आन्दोलन के शैली और सवाल पर बेबाक राय और आरक्षण आन्दोलन का भविष्य वहे क्या देखते है जैसे सवाल पूछे।

सभी प्रशनो का उत्तर डॉ0 राणा ने बड़ी विनम्रता पूर्वक दिए। उन्होंने आंदोलन में आ रही और आने वाली कठनाईयो के बारे में बताया इसी के साथ अभी तक की सफलताओ के बारे में भी बताया। डॉ0 राणा ने कहा की ” कुल मिलाकर इस गुर्जर संघर्ष को नयी नीतियों व रणनीतियों के साथ अपने ही हौसलों की उडान से आन्दोलन को वैचारिक धार देनी होगी तभी कोई बात बनेगी।”

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