नोएडा | आर्य सागर खारी :
सभी को सादर नमस्ते।
आज कोविड-19 सेकंड वेव के लंबे अंतराल पश्चात ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण जाना हुआ। 400 करोड़ की लागत से बनी फाइव स्टार बिल्डिंग में घुसते ही जगह-जगह किसान सेवा केंद्र के डिस्प्ले लगे हुए थे। प्राधिकरण की गिद्ध दृष्टि अब ग्रेटर नोएडा के 13 गांवों की जमीन पर पड़ी है जिनकी जमीन कथित औद्योगिक विकास के नाम पर सीधी सहमति से ली जा रही है (यह पता नहीं सहमति अभी तक कितने किसानों ने दी है और कितने किसानों ने अपनी जमीन बेची है)। 13 गांव में इमलिया, दादूपुर, अटाई, मुरादपुर, लड़पुरा, पोवारी, खेड़ी, भनौता, वैदपुरा, जॉन सिवाना, सुनपुरा, भोला रावल, खोदना खुर्द गांव शामिल है। जन सेवा केंद्र अर्थात लूट केंद्र पर लिखा हुआ था इन गांवों के किसान कभी भी आकर फला फला दस्तावेजों को पेश कर अपनी जमीन की रजिस्ट्री हमको कर सकते हैं “सर्किल रेट से 4 गुना कम से रकम लीजिए रोजगार पुनर्वास किसान कोटे को भूल जाइए”। भारत एशिया का एकमात्र ऐसा देश है जिस देश की संसद भूमि अधिग्रहण को लेकर अंग्रेजों के 1894 के औपनिवेशिक कालीन कानून को खत्म कर 2013 में नया कानून बनाती है। लेकिन उसी संसद की नाक के नीचे ग्रेटर नोएडा जैसा प्राधिकरण जो अभी ग्रेटर नोएडा को विश्व पटल पर तो छोड़िए देश के पटल पर भी स्थापित नहीं कर पाया है। संसद के कानून को बाईपास कर औने पौने दामों पर आपसी सहमति जैसे काले करार से जमीन ले रहे है और भोला भाला किसान इस षड्यंत्र में फस रहा है।
किसान सेवा केंद्र पर सेवा तो किसानों की आबादी प्लॉट, रोजगार, पुनर्वास को लेकर मिलनी चाहिए थी लेकिन हो रही प्रॉपर्टी डीलिंग है। 12 साल हो गए हाईकोर्ट के आदेश जो किसान आबादी प्लॉट को लेकर है आज तक आदेश का अनुपालन नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं, कोरोना काल मे जिन किसानों को गलती से प्राधिकरण ने प्लॉट आवंटित किए हैं उनको रजिस्ट्री के लिए नोटिस जारी कर दिए गए और पेनल्टी के साथ दी गई नोटिस के लिए कोई टाइम एक्सटेंशन नहीं मिला।
यहां किसान नेता जब चुनाव लड़ते हैं तो यही भोले-भाले किसान उनकी जमानत जप्त करा देते हैं। एक बड़े स्थानीय पत्रकार किसान हितेषी बनने का प्रदर्शन करते हैं मैं जब भी प्राधिकरण जाता हूं उनके भतीजे प्राधिकरण के कार्यालयों में सौदे बाजी करते हुए नजर आते हैं। उन पत्रकार साहब में राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी कूट-कूट कर भरी हुई है। ऐसे ही लोग किसान आंदोलन में मुख् बरी करते हैं किसान आंदोलनों की हवा निकालते हैं।
आज एक और अजीबोगरीब घटनाक्रम हमने देखा प्राधिकरण की सोच पर हंसना व रोना दोनों ही आ रहा है। प्राधिकरण ने अपनी भव्य बिल्डिंग के पास साइड में खाली जगह पर धरना स्थल पार्क विकसित कर दिया है। बकायदा इस नाम से उसका नामकरण किया है बोर्ड लगा दिया है यह दुनिया का इकलौता प्राधिकरण है जिसने धरने के लिए पार्क बना दिया। इसका अर्थात प्राधिकरण जानता है वह कभी किसानों, स्थानीय लोगों की समस्या का समाधान नहीं करेगा
बल्कि समस्याओं को उलझा कर रखेगा। स्थानीय लोग आए अब प्राधिकरण के गेट पर ना बैठे । साइड में पार्क बन गया है बैठिए 2 ,3 महीने नही सालों साल बैठिए । जंतर मंतर पार्ट 2 बनाकर दे दिया है किसानों को। कथित नौजवान किसान नेता युवा नेता अपना गला साफ करें।
आज कोविड-19 सेकंड वेव के लंबे अंतराल पश्चात ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण जाना हुआ। 400 करोड़ की लागत से बनी फाइव स्टार बिल्डिंग में घुसते ही जगह-जगह किसान सेवा केंद्र के डिस्प्ले लगे हुए थे। प्राधिकरण की गिद्ध दृष्टि अब ग्रेटर नोएडा के 13 गांवों की जमीन पर पड़ी है जिनकी जमीन कथित औद्योगिक विकास के नाम पर सीधी सहमति से ली जा रही है (यह पता नहीं सहमति अभी तक कितने किसानों ने दी है और कितने किसानों ने अपनी जमीन बेची है)। 13 गांव में इमलिया, दादूपुर, अटाई, मुरादपुर, लड़पुरा, पोवारी, खेड़ी, भनौता, वैदपुरा, जॉन सिवाना, सुनपुरा, भोला रावल, खोदना खुर्द गांव शामिल है। जन सेवा केंद्र अर्थात लूट केंद्र पर लिखा हुआ था इन गांवों के किसान कभी भी आकर फला फला दस्तावेजों को पेश कर अपनी जमीन की रजिस्ट्री हमको कर सकते हैं “सर्किल रेट से 4 गुना कम से रकम लीजिए रोजगार पुनर्वास किसान कोटे को भूल जाइए”। भारत एशिया का एकमात्र ऐसा देश है जिस देश की संसद भूमि अधिग्रहण को लेकर अंग्रेजों के 1894 के औपनिवेशिक कालीन कानून को खत्म कर 2013 में नया कानून बनाती है। लेकिन उसी संसद की नाक के नीचे ग्रेटर नोएडा जैसा प्राधिकरण जो अभी ग्रेटर नोएडा को विश्व पटल पर तो छोड़िए देश के पटल पर भी स्थापित नहीं कर पाया है। संसद के कानून को बाईपास कर औने पौने दामों पर आपसी सहमति जैसे काले करार से जमीन ले रहे है और भोला भाला किसान इस षड्यंत्र में फस रहा है।
किसान सेवा केंद्र पर सेवा तो किसानों की आबादी प्लॉट, रोजगार, पुनर्वास को लेकर मिलनी चाहिए थी लेकिन हो रही प्रॉपर्टी डीलिंग है। 12 साल हो गए हाईकोर्ट के आदेश जो किसान आबादी प्लॉट को लेकर है आज तक आदेश का अनुपालन नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं, कोरोना काल मे जिन किसानों को गलती से प्राधिकरण ने प्लॉट आवंटित किए हैं उनको रजिस्ट्री के लिए नोटिस जारी कर दिए गए और पेनल्टी के साथ दी गई नोटिस के लिए कोई टाइम एक्सटेंशन नहीं मिला।
यहां किसान नेता जब चुनाव लड़ते हैं तो यही भोले-भाले किसान उनकी जमानत जप्त करा देते हैं। एक बड़े स्थानीय पत्रकार किसान हितेषी बनने का प्रदर्शन करते हैं मैं जब भी प्राधिकरण जाता हूं उनके भतीजे प्राधिकरण के कार्यालयों में सौदे बाजी करते हुए नजर आते हैं। उन पत्रकार साहब में राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी कूट-कूट कर भरी हुई है। ऐसे ही लोग किसान आंदोलन में मुख् बरी करते हैं किसान आंदोलनों की हवा निकालते हैं।
आज एक और अजीबोगरीब घटनाक्रम हमने देखा प्राधिकरण की सोच पर हंसना व रोना दोनों ही आ रहा है। प्राधिकरण ने अपनी भव्य बिल्डिंग के पास साइड में खाली जगह पर धरना स्थल पार्क विकसित कर दिया है। बकायदा इस नाम से उसका नामकरण किया है बोर्ड लगा दिया है यह दुनिया का इकलौता प्राधिकरण है जिसने धरने के लिए पार्क बना दिया। इसका अर्थात प्राधिकरण जानता है वह कभी किसानों, स्थानीय लोगों की समस्या का समाधान नहीं करेगा
बल्कि समस्याओं को उलझा कर रखेगा। स्थानीय लोग आए अब प्राधिकरण के गेट पर ना बैठे । साइड में पार्क बन गया है बैठिए 2 ,3 महीने नही सालों साल बैठिए । जंतर मंतर पार्ट 2 बनाकर दे दिया है किसानों को। कथित नौजवान किसान नेता युवा नेता अपना गला साफ करें।
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