इलेक्ट्रिक वाहन

भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा कार बाज़ार है और निकट भविष्य में शीर्ष तीन देशों में से एक बनने की क्षमता रखता है, जहाँ वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ ग्राहकों को मोबिलिटी समाधान की आवश्यकता होगी।

हालाँकि, पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, ऑटोमोबाइल ग्राहकों की बढ़ती संख्या का परिणाम पारंपरिक ईंधन की खपत में वृद्धि के रूप में सामने नहीं आना चाहिये।

वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्ति की दिशा में सकारात्मक विकास दर सुनिश्चित करने के लिये भारत में एक परिवहन क्रांति की आवश्यकता है, जो बेहतर ‘वाकेबिलिटी’ बेहतर रेलवे एवं सड़कों के साथ बेहतर सार्वजनिक परिवहन और बेहतर कारों की ओर ले जाएगी। इन ‘बेहतर कारों’ में से कई के इलेक्ट्रिक होने की संभावना है।

हाल में, ऑटोमोटिव पेशेवरों और लोगों के बीच एकसमान रूप से सहमति बढ़ी है कि वाहनों का भविष्य इलेक्ट्रिक होने में ही निहित है। हालाँकि, इस परिप्रेक्ष्य में, भारत द्वारा अभी बैटरी निर्माण, चार्जिंग अवसंरचना की स्थापना आदि कई विषयों में वृहत कार्य करना शेष है।

इलेक्ट्रिक वाहन और भारत
उत्पत्ति और बढ़ता दायरा: इलेक्ट्रिक वाहनों पर अधिकाधिक बल देना वैश्विक जलवायु एजेंडे से प्रेरित है। ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिये कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु पेरिस समझौते के तहत इस एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है।  
वैश्विक इलेक्ट्रिक मोबिलिटी क्रांति वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों के तेज़ विकास के संदर्भ में परिभाषित की जाती है।
वर्तमान में बिक्री की जा रही प्रत्येक सौ कारों में से दो इलेक्ट्रिक हैं और वर्ष 2020 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 2.1 मिलियन तक पहुँच चुकी थी।
वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 8 मिलियन थी, जो वैश्विक वाहन स्टॉक के 1% और वैश्विक कार बिक्री के 2.6% का प्रतिनिधित्व करती है।  
बैटरी लागत में आ रही गिरावट और प्रदर्शन क्षमता में वृद्धि भी वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग को बढ़ा रही है।
इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता: भारत को एक परिवहन क्रांति की आवश्यकता है।
महँगे आयातित ईंधन से संचालित कारों की संख्या को और बढ़ाया जाना और अवसंरचनात्मक बाधाओं एवं तीव्र वायु प्रदूषण से पहले से ही पीड़ित अत्यधिक भीड़भाड़ वाले शहरों को और अव्यवस्थित किया जाना संवहनीय या व्यावहारिक नहीं है।
परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिये इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर ट्रांजीशन वर्तमान युग की आशावादी वैश्विक रणनीति है।
इलेक्ट्रिक वाहनों को भारत का समर्थन: भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो वैश्विक ‘EV30@30 अभियान’ का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को कम-से-कम 30% करना है।
ग्लासगो में आयोजित COP26 में जलवायु परिवर्तन शमन के लिये भारत द्वारा पाँच तत्वों (जिसे ‘पंचामृत’ कहा गया है) की वकालत इसी दिशा में जताई गई प्रतिबद्धता है।  
ग्लासगो शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा कई प्रतिबद्धताएँ जताई गई, जिनमें भारत की 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को अक्षय ऊर्जा से पूरा करना, वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करना और वर्ष 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ लक्ष्य प्राप्त करना शामिल है।    
भारत सरकार ने देश में ईवी पारितंत्र के विकास और प्रोत्साहन के लिये कई उपाय किये हैं, जैसे:
पुनर्गठित फेम II योजना
आपूर्तिकर्त्ता पक्ष के समर्थन हेतु, उन्नत रसायन विज्ञान सेल के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना
इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं के लिये हाल ही में शुरू की गई ‘ऑटो और ऑटोमोटिव घटकों के लिये पीएलआई योजना’।
संबद्ध चुनौतियाँ
बैटरी निर्माण: आकलन किया गया है कि वर्ष 2020-30 तक भारत की बैटरी की संचयी मांग लगभग 900-1100 GWh होगी।
किंतु भारत में बैटरियों के लिये एक विनिर्माण आधार की अनुपस्थिति चिंता का विषय है, क्योंकि बढ़ती मांग की पूर्ति के लिये पूर्णतः आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।  
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत ने वर्ष 2021 में 1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के लिथियम-आयन सेल का आयात किया, जबकि अभी पावर सेक्टर में इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी भंडारण की पैठ नगण्य ही है।
उपभोक्ता संबंधी मुद्दे: वर्ष 2018 में भारत में केवल 650 चार्जिंग स्टेशन ही उपलब्ध थे, जो पड़ोसी समकक्ष देशों की तुलना में पर्याप्त कम है, जहाँ 5 मिलियन से अधिक चार्जिंग स्टेशन संचालित थे।
चार्जिंग स्टेशनों की कमी के कारण उपभोक्ताओं के लिये लंबी दूरी की यात्रा करना अव्यावहारिक हो जाता है।
इसके अलावा, एक निजी लाइट-ड्यूटी स्लो चार्जर का उपयोग कर घर पर वाहन को फुल चार्ज करने में 12 घंटे तक का समय लग जाता है।  
इसके साथ ही, एक बेसिक इलेक्ट्रिक कार की लागत पारंपरिक ईंधन से संचालित कार की औसत लागत से बहुत अधिक है।  
नीतिगत चुनौतियाँ:  उत्पादन एक पूंजी गहन क्षेत्र है जहाँ ‘ब्रेक ईवन’ स्थिति और लाभ प्राप्ति के लिये एक दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता होती है, जबकि EV उत्पादन से संबंधित सरकारी नीतियों की अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है।    
प्रौद्योगिकी और कुशल श्रम की कमी: भारत बैटरी, सेमीकंडक्टर्स, कंट्रोलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन में प्रौद्योगिकीय रूप से पिछड़ा हुआ है जबकि यह क्षेत्र EV उद्योग की रीढ़ है।  
इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विसिंग लागत अधिक होती है जिसके लिये उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है। भारत में ऐसे कौशल विकास के लिये समर्पित प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का अभाव है।
घरेलू उत्पादन के लिये सामग्री की अनुपलब्धता: बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है।
भारत में लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है जो बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है।  
लिथियम-आयन बैटरी के आयात के लिये अन्य देशों पर निर्भरता बैटरी निर्माण क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने में एक बाधा है ।  
आगे की राह
भविष्य के उपाय के रूप में इलेक्ट्रिक वाहन: EVs समग्र ऊर्जा सुरक्षा स्थिति में सुधार लाने में योगदान देगा, क्योंकि देश अपने कच्चे तेल की कुल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, जो लगभग 100 बिलियन डॉलर मूल्य का है।  
अपेक्षा है कि EVs को बढ़ावा देना स्थानीय EVs विनिर्माण उद्योग में रोज़गार सृजन के मामले में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाएगा।  
इसके अतिरिक्त, विभिन्न ग्रिड समर्थन सेवाओं के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहन ग्रिड को सुदृढ़ करने और सुरक्षित एवं स्थिर ग्रिड संचालन को बनाए रखते हुए उच्च नवीकरणीय ऊर्जा प्रवेश को समायोजित करने में भी मदद कर सकेंगे।  
बैटरी निर्माण और भंडारण के अवसर: ई-मोबिलिटी और नवीकरणीय ऊर्जा (वर्ष 2030 तक 450 GW ऊर्जा क्षमता लक्ष्य) को बढ़ावा देने के सरकारी पहलों को देखते हुए, नवीनतम प्रौद्योगिकी व्यवधानों के साथ देश में सतत् विकास को बढ़ावा देने में  बैटरी भंडारण वृहत अवसर प्रदान कर सकता है।    
प्रति व्यक्ति आय के बढ़ते स्तरों के साथ मोबाइल फोन, यूपीएस, लैपटॉप, पावर बैंक जैसे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, जिनमें उन्नत रसायन बैटरी की आवश्यकता होती है।  
यह उन्नत बैटरी विनिर्माण को 21वीं सदी के सबसे बड़े आर्थिक अवसरों में से एक बनाता है।  
EV चार्जिंग अवसंरचना: EV चार्जिंग अवसंरचना (जो स्थानीय बिजली आपूर्ति से ऊर्जा प्राप्त करेगी) निजी आवासों, पेट्रोल एवं सीएनजी पंपों जैसे जनोपयोगी सेवाओं और मॉल, रेलवे स्टेशनों एवं बस डिपो जैसे वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों की पार्किंग सुविधाओं में स्थापित की जा सकती है।    
ऊर्जा मंत्रालय ने प्रत्येक 3X3 ग्रिड के लिये और राजमार्ग के दोनों किनारों पर प्रत्येक 25 किलोमीटर पर एक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।  
आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने मॉडल बिल्डिंग बाय-लॉज, 2016 (MBBL) के तहत आवासीय और वाणिज्यिक भवनों में EV चार्जिंग सुविधाओं के लिये 20% पार्किंग स्थान को अलग रखने का आदेश दिया है।    
MBBL को प्रभावी बनाने के लिये राज्य सरकारों को अपने संबंधित भवन उप-नियमों में आवश्यक संशोधन करने की भी आवश्यकता होगी।  
EVs में R&D बढ़ाना: भारतीय बाज़ार को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहन की आवश्यकता है जो भारत के लिये रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अनुकूल होंगे।  
चूँकि कीमतों को कम करने के लिये स्थानीय अनुसंधान और विकास में निवेश आवश्यक है, इसलिये स्थानीय विश्वविद्यालयों और मौजूदा औद्योगिक केंद्रों का लाभ उठाना विवेकपूर्ण होगा।


Discover more from Noida Views

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Related posts

Leave a Comment