दादरी विधानसभा चुनाव डायरी – आर्य सागर खारी

आर्य सागर खारी

भट्टा पारसौल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी भजन उपदेशक वीर रस के कवि स्वर्गीय चौधरी तेज सिंह मलिक जी द्वारा रचित इस तराने के साथ हम अपने चुनावी विश्लेषण डायरी की शुरुआत करते हैं।

वह दरिया ही नहीं जिसमें नही रवानी ।
जब जोशी ही नहीं तो किस काम की जवानी।।

इस बार पश्चिम उत्तर प्रदेश की दादरी विधानसभा के चुनावी दरिया में रवानी भी है और नौजवानों में जोश भी है। दादरी विधानसभा पूरी तरह ग्रामीण आंशिक तौर पर शहरी सबसे बड़ी विधानसभा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मानी जाती है इसका कारण यह है इस वर्ष विधानसभा चुनावों में 605431 मतदाता 203 मतदान केंद्र 665 पोलिंग बूथ पर 10 फरवरी को अपने विधायक का चयन करेंगे। फरवरी के पहले सप्ताह आते आते सपा आर एल डी गठबंधन व भाजपा के बीच घटित हो रहे द्विपक्षीय मुकाबले में भाजपा ने मामूली सी बढ़त बना ली है गठबंधन के लिए यह चिंता का विषय इसलिए नहीं है यह बढ़त निर्णायक नहीं है गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने यदि अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव नहीं किया तो यह चिंता का विषय हो सकता है मतदान की तिथि आते आते । फिर भी भाजपा की बढ़त का कारण यह है भाजपा प्रत्येक बूथ से वोट ले रही है। दूसरा भाजपा का चुनावी प्रबंधन उसका टीम वर्क भाजपा का कार्यकर्ता प्रशिक्षित है जो 5 वर्ष से चुनावों का प्रशिक्षण ले रहा था बसपा का कार्यकर्ता खामोश है जबकि समाजवादी का कार्यकर्ता जो भाजपा कार्यकर्ता को उत्साह कर्मठता में तो मात दे रहा है लेकिन समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता विधानसभा के शहरी क्षेत्रों में मध्यमवर्ग प्रवासी लोगों के महंगाई जैसे मुद्दे कोविड से उत्पन्न हालात बिल्डर्स बायर विवाद पर भाजपा की उदासीनता आक्रोश को वोटों अपने पक्ष में बहुलता से रूपांतरित नहीं कर पा रहे है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में तथा ग्रेटर नोएडा के शहरी क्षेत्र में भाजपा के प्रति शहरी वोटरों में नाराजगी के बावजूद बीजेपी के कार्यकर्ता और विशेष तौर पर बीजेपी के प्रवासी शहरी नेता सोसायटीयो में यह नेरेटिव सेट कर रहे हैं कि कानून व्यवस्था के मामले में आप भाजपा को वोट दें कुछ ने तो अति उत्साह में आकर यह तक कह दिया है कि स्थानीय लोगों से आपकी सुरक्षा भाजपा की पुलिस ही कर रही है( मानो की स्थानीय लोग पेशेवर अपराधी है) बाकी आपकी जो समस्या है जिन पर 5 वर्षों में काम नहीं हुआ आगे उन्हें शॉट आउट कर दिया जाएगा। भाजपा यह प्रचारित कर रही है कि शहरी वोटर पूरी तरह उसके साथ है।

गठबंधन के स्थानीय नेता यहां हम नाम उलेख नहीं करेंगे भाजपा के इस प्रायोजित नैरेटिव में फंस गए उन्होंने राजकुमार भाटी की एक चुनावी सभा में यह कह दिया कि शहरी वोटर कोरोना से भयभीत है वह वोट डालने नहीं जाएगा ग्रामीण वोटर ही निर्णायक है अब उस वीडियो को ही भाजपा द्वारा शहरी वोटरों के समक्ष गठबंधन के नेताओं की शहरी वोटरों को लेकर क्या मानसिकता है उसे नकारात्मक अर्थो में पेश किया जा रहा है लेकिन गठबंधन के प्रत्याशी राजकुमार भाटी जी मंझे हुए राजनेता है वह शुरू से ही अपने चुनावी यात्रा में कह रहे हैं पूरा का पूरा शहरी वोटर भाजपा के साथ नहीं है जो लोग मुद्दों पर वोट करते हैं शिक्षित लोग हैं वह गठबंधन को भी वोट कर रहे हैं जो वर्ग बीजेपी से त्रस्त है शहरी वोटर जाति पंथ के आधार पर नहीं मुद्दों के आधार पर वोट करेगा समीकरण शहरी क्षेत्र में हमारे पक्ष में भी है लेकिन दादरी विधानसभा में समाजवादी पार्टी के शहरी प्रवासी नेताओं के ना होने से राजकुमार भाटी का यह संदेश शहरी मतदाताओं तक सही अर्थों में नहीं पहुंच रहा है ऐसे में सपा को सोसायटीओं के लिए रणनीति बनानी चाहिए इन आखरी चार-पांच दिनों में। भाजपा के नेता अपनी सोची समझी रणनीति के तहत इस तथ्य को प्रचारित कर रहे हैं कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट की अकेली गौर सिटी में 90000 वोट हैं जो हमारे पक्ष में है इस दावे में कितनी सच्चाई है इसकी हम पुष्टि नहीं कर सकते लेकिन यह जग जाहिर है कि इस बार दादरी विधानसभा में 170000 वोटों का इजाफा हुआ है जिला निर्वाचन विभाग द्वारा की पुष्टि की गई है। अब बढ़ी हुई इन वोटों में ग्रामीण वोटर कितने बढे शहरी वोटर कितने बढे यह आंकड़ा फिलहाल किसी भी दल के पास नहीं है भाजपा के पास यदि है आंकड़ा है जातिगत आंकड़ा उस के पक्ष में होता तो अब तक प्रदर्शित कर देती जिस आक्रमक राजनीति के लिए भाजपा जानी जाती है इससे निष्कर्ष यह निकलता है वोटरों की संख्या में वृद्धि ग्रामीण क्षेत्र में घटित हुई है विशेषकर दादरी विधानसभा की ओबीसी गुर्जर बहुल मतदाताओं या अल्पसंख्यकों या दलित वोटों में यह तीनों ही मतदाता वर्ग दादरी सीट पर भाजपा को लेकर उदार और सहज नहीं है दलितों मुस्लिमों की भाजपा से दूरी जगजाहिर है दलितों में भी विशेषकर जाटव समाज लेकिन इस बार एक बड़ा मतदाता वर्ग अर्थात दादरी पर निर्णायक ग्रामीण क्षेत्रों में बहुसंख्यक गुर्जर मतदाता भी भाजपा से असंतुष्ट आक्रोशित है। इसका कारण 22 सितंबर 2021 को मिहिर भोज पीजी कॉलेज में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की की प्रतिमा शिलापट से गुर्जर शब्द को हटाए जाने विषयक सत्ता पक्ष के आपत्तिजनक निर्देशों व भाजपा कि स्थानीय गुर्जर समाज के नेताओं की उदासीनता इसमें एक बड़ा प्रमुख कारण है। लेकिन उसके बावजूद भी भाजपा की बेहतर चुनावी रणनीति प्रबंधन के कारण 35 से 40 फ़ीसदी मत भाजपा गुर्जरों के हासिल कर रही है यह गठबंधन के लिए चिंता का विषय है। क्योंकि दादरी सीट पर मुसलमानों को छोड़कर गठबंधन का कोई स्थानीय कोर वोटर नही है लेकिन इस बार उसे अपेक्षा से अधिक 60 फ़ीसदी गुर्जर वोट मिल रहा है जो दादरी विधानसभा के 15 वर्षों के इतिहास में 10 साल बसपा के साथ रहा 2017 के चुनाव में जो एकमुश्त भाजपा के साथ रहा है इस आंकड़े से आगे बढ़कर यदि अंतिम चार-पांच दिनों में गठबंधन के लोग यदि गुर्जर मतदाताओं के आक्रोश को वोट में ट्रांसफर कर लेते हैं अर्थात 60 प्रतिशत के आंकड़े को 70 फ़ीसदी के आसपास ले आते हैं तो वह मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। सच्चाई तो यह है दादरी विधानसभा में मतदाताओं की संख्या के आंकड़े तो सभी प्रत्याशियों दलो के पास है लेकिन प्रमाणित जातिय आकडे किसी के पास भी नहीं है यही स्थिति शहरी व ग्रामीण वोटों की संख्या को लेकर है एक आशंका यह व्यक्त की जा रही है कि दादरी विधानसभा अपने पड़ोसी विधानसभा नोएडा की तरह शहरी वोटरों की बहुलता प्रभाव के तौर पर पर स्थापित हो रही है मैं समझता हूं यह भी एक सोची-समझी रणनीति के तहत नैरेटिव सेट किया जा रहा है। लेकिन स्थिति कुछ भी हो दादरी विधानसभा सीट पर गुर्जरों के समानांतर दलित मतदाता आज भी निर्णायक है। अल्पसंख्यक मतदाता पूरी तरह गठबंधन के साथ है लेकिन दलित मतदाता अभी पशोपेश में है हालांकि गठबंधन के प्रत्याशी राजकुमार भाटी यह दावा कर रहे हैं अपनी चुनावी सभाओं में इस बार दलित मतदाता विशेष तौर पर जाटव मतदाता उनके साथ हैं उन्हें भारी संख्या में वोट जाटवो का मिल रहा है।

उनके दावे में यदि सच्चाई है तो निसंदेह समाजवादी पार्टी इस बार दादरी विधानसभा सीट पर इतिहास रच सकती है बसपा का 20% परंपरागत वोटर यदि गठबंधन प्रत्याशी राजकुमार भाटी जी के लिए शिफ्ट होता है तो यह मुकाबले में निर्णायक बढ़त होगी जो उनकी विजय को सुनिश्चित करेगी इस तथ्य को वह भी भली-भांति जानते हैं। वाल्मीकि प्रजापति नाई रजका समाज अर्थात धोबी जैसी जातियों का वोट भाजपा को मिल रहा है इस पर गठबंधन विशेष तौर पर समाजवादी पार्टी के प्रजापति व सेन समाज के प्रकोष्ठ के नेताओं को विशेष मेहनत इन चार-पांच दिनों में करनी चाहिए जो अभी तक दिखाई नहीं दे रही है। राजकुमार भाटी अपने प्रचार के शुरुआती दिनों से ही कह रहे हैं कि आप समाजवादी के जितने भी स्थानीय नेता है कार्यकर्ता है एक ही जगह एक ही मतदाता वर्ग में प्रचार ना करें 20 -25 टोलियो में प्रचार करें। समाजवादी विचारधारा समाजवादी पार्टी द्वारा पूर्व में किए गए जनकल्याणकारी कार्यों को मतदाताओं के बीच पहुंचाएं अब इस पर समाजवादी के नेताओं कार्यकर्ताओं ने कितना गौर किया है यह तो वही जाने।

रोजगार के मुद्दे पर भी स्थानीय बेरोजगार युवकों का एक बड़ा समूह चाहे वह किसी भी जाति वर्ग से आता हो उसका झुकाव इस बार गठबंधन के प्रत्याशी की ओर है यह गठबंधन के लिए एक सुखद तथ्य है।

विधानसभा का चुनाव दलगत विचारधारा से प्रभावित होता है लेकिन फिर भी मतदाताओं का एक ऐसा ठीक-ठाक संख्या समूह होता है स्थानीय मुद्दों के आधार पर वोट करता है । दूसरा मतदाता समूह ऐसा होता है जो प्रत्याशी जीत रहा होता है उसको वोट करता है बेहतर चुनावी प्रबंधन रणनीति से दोनों ही मतदाता वर्ग को जो दल प्रत्याशी अपने पक्ष में कर लेता है वह अपनी विजय सुनिश्चित कर लेता है।

अंततोगत्वा दादरी विधानसभा सीट पर ओबीसी मतदाता में गुजर प्रथम दर्जे पर निर्णायक है दूसरी स्तर पर दलित वर्ग है। बसपा प्रत्याशी मनवीर भाटी का यह पहला चुनाव है लेकिन वह अपने प्रथम चुनाव में उत्साह ऊर्जा के मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं उनका राजनीतिक भविष्य सुनहरा है उन्हें भी हल्के में नहीं लिया जा सकता ग्रेटर नोएडा वेस्ट के किसानों का भी एक बड़ा वर्ग उनके साथ है विशेषकर गुर्जर समाज का 2017 के चुनावों में ग्रेटर नोएडा वेस्ट के अधिकांश ग्रामीण मतदाताओं ने ने भाजपा के पक्ष में शत-प्रतिशत मतदान किया था यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। फिर भी पूरी विधानसभा वार बसपा के प्रदर्शन को देखें भाजपा के लिए यह उतना ही पक्ष में रहेगा जितना अच्छा प्रदर्शन दादरी सीट पर बसपा करती है और बसपा जितनी कमजोर दादरी सीट पर पड़ती है यह गठबंधन के लिए फायदे का सौदा रहेगा।

शहरी क्षेत्र से भाजपा के लिए कम मतदान प्रतिशत के साथ-साथ एक दूसरी चुनौती यह है जहां तक मैं ठीक हूं ग्रेटर नोएडा वेस्ट के फ्लैट बायर एसोसिएशन के नेता अन्नू खान भी चुनाव लड़ रहे हैं यदि वह 5000 से 10000 तक भी मत हासिल कर लेते हैं तो यह भाजपा के वोटों में सेंधमारी होगी। हालांकि भाजपा के नेताओं ने इस बार शहरी वोटरों के लिए मतदान स्थल की व्यवस्था उनकी सोसाइटी या आसपास शहरी क्षेत्र में ही की है पहले की तरह अब शहरी वोटर ग्रामीण मतदान स्थलों पर वोट नहीं करेगा यह भाजपा का दूरगामी चुनावी रणनीति रही है।

लेकिन कोरोना काल सर्दी का मौसम फरवरी के पहले सप्ताह में आने वाले पश्चिमी विक्षोभ के कारण हल्की से मध्यम बरसात की गतिविधि शहरी मतदान प्रतिशत को अवश्य प्रभावित करेगी ।

अंततोगत्वा पुनः निष्कर्ष यही निकलता है इस बार मुकाबला भाजपा के गठबंधन के बीच बराबरी का होने जा रहा है बसपा के मतदाता किंग मेकर की भूमिका में है बसपा का परंपरागत दलित वोटर यह ठान ले अंतिम चरण में यदि यह निर्णय लें कि जो भाजपा को हरा रहा है वह उसको अपना वोट ट्रांसफर कर दे या गठबंधन के नेता इस रणनीति को क्रियान्वित करने में सफल हो जाते हैं तो विजय गठबंधन प्रत्याशी की शत-प्रतिशत सुनिश्चित हो जाती है। वहीं कांग्रेस का कोर वोटर 5% से भी कम है बहराल वह मुकाबले में कहीं नहीं दिखाई दे रही यही स्थिति आम आदमी पार्टी की है लेकिन आम आदमी पार्टी का अधिकांश वोटर दिल्ली की तर्ज पर शहरी है बहरहाल आम आदमी पार्टी 10000 वोट भी हासिल करती है तो इससे भी छति भाजपा को ही होगी।

जीते हुए दल व हारे हुए दल के बीच मतों का अंतर 5 से 7 फीसदी ही रहेगा अर्थात विनिंग मार्जिन 5 से 7% मतों का ही रहेगा चुनावी दलगत भाषा में ऐसी सीटो को फसी हुई सीट कहा जाता है गठबंधन के पास इस सीट पर खोने पाने के लिए कुछ नहीं है लेकिन भाजपा के लिए बहुत कुछ है।


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