नई दिल्ली । श्रीलंका की माली हालत बेहद खराब हो चुकी है। देश में लगातार हिंसा और आगजनी की घटनाएं हो रही हैं। सरकार और उसकी गलत नीतियों की वजह से देश की बदतर होती हालत के खिलाफ सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने कई नेताओं समेत पीएम का घर भी फूंक दिया था। इसके बाद श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मार देने के आदेश दे दिए गए हैं। श्रीलंका का इस स्थिति से बाहर निकलने का फिलहाल कोई जरिया दिखाई भी नहीं दे रहा है। श्रीलंका के ऊपर 56 अरब डालर का विदेशी कर्ज है। इसका दस फीसद कर्ज अकेले चीन का ही है। उसके लिए ये रकम इस कदर बड़ी है जिसको उतारने का फिलहाल उसको कोई जरिया भी दिखाई नहीं दे रहा है। श्रीलंका को दो अरब डालर केवल इस कर्ज के ब्याज के रूप में चुकाने हैं।
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार भी काफी कम
श्रीलंका के जानकार इस स्थिति के लिए वहां की सरकार को ही दोषी ठहरा रहे हैं। लेकिन हकीकत ये भी है कि इस स्थिति का सबसे बुरा असर वहां की आम जनता पर पड़ रहा है। देश में खाने-पीने के सामान की भारी किल्लत है। इसके अलावा दवाओं की भी भारी कमी है। जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। विदेशी कर्ज को चुकाने की ही बात करें तो श्रीलंका के पास मुश्किल से ही 50 अरब डालर का विदेशी मुद्रा भंडार शेष है। ऐसे में इस बात की आशंका काफी अधिक है कि विभिन्न वित्तीय एजेंसियां श्रीलंका को जुलाई में डिफाल्टर घोषित कर दें।
इस वर्ष भारत दे चुका है साढ़े तीन अरब डॉलर की मदद
भारत की बात करें तो वो इस वर्ष जनवरी से अब तक श्रीलंका को 3.5 अरब डॉलर की मदद दे चुका है। भारत के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि जितना कर्ज श्रीलंका को चुकाना है उसकी भरपाई अकेला भारत भी नहीं कर सकता है। इसमें कई तरह का रिस्क फेक्टर भी जुड़ा है। ये भी सही है कि भारत चाहता है कि श्रीलंका जल्द से जल्द इस स्थिति से उबर जाए। ऐसा इसलिए है क्योंकि श्रीलंका की बदहाली भारत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। भारत के पड़ोसी देश होने के नाते भी ये हमारे हित में नहीं है कि वो इस तरह की बदहाली, जो बाद में भयानक अराजकता और गृहयुद्ध को जन्म दे सकती है, वो लंबे समय तक बरकरार रहे।
नेबर फर्स्ट की नीति पर भारत
विदेश नीति की ही बात करें तो भारत हमेशा से ही नेबर फर्स्ट की पॉलिसी पर काम करता रहा है। पीएम नरेन्द्र मोदी ने कई बार इस बात को अलग-अलग मंचों से कहा भी है। लेकिन यहां पर स्थिति पर काबू पाना अकेले भारत के बस की बात नहीं है। भारत ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए श्रीलंका को दवाइयों व अनाजों की भी मदद भेजी है।
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