जिम्स निदेशक पर लगा पद के लिए अयोग्य होने का आरोप, जांच शुरू

नोएडा: राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) के निदेशक ब्रिगेडियर डा. राकेश कुमार गुप्ता पर उनके पद के लिए अनिवार्य योग्यता न होने के आरोप लगाते हुए लखनऊ के एक डाक्टर ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को शिकायत दी है। शिकायत पर संज्ञान लेते हुए चिकित्सा शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव ने निदेशक को तत्काल पक्ष रखने को आदेश दिया है।
निदेशक पद के लिए पांच वर्ष का अनुभव जरूरी
लखनऊ के रहने वाले डा. अंकित शर्मा ने अक्टूबर को चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र लिख शिकायत दी थी कि ब्रिगेडियर डा. राकेश कुमार गुप्ता का चयन नियमों की अनदेखी कर किया गया है। निदेशक पद के लिए प्रोफेसर पद का पांच वर्ष का कम से कम अनुभव होना चाहिए, जबकि ब्रिगे़डियर डा. आरके गुप्ता 2016 में प्रोफेसर बने थे। चिकित्सा शिक्षा विभाग की ओर से जिम्स के लिए 27 दिसंबर 2017 कोे निदेशक पद की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गए थे। अप्रैल 2018 में उनकी नियुक्ति हुआ और 21 जुलाई 2018 को उन्होंने निदेशक पद की जिम्मेदारी संभाल ली थी। ऐसे में उन्हें प्रोफेसर पद का सिर्फ डेढ़ वर्ष का ही अनुभव था। यह भी आरोप लगाए कि ब्रिगेडियर गुप्ता ने मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को दिए गए अपने फार्म में बताया है कि उन्हें सात वर्ष और 10 महीने का प्रोफेसर पद का अनुभव है और साथ ही वह जिम्स में प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं, जो फार्म जमा करने के दौरान नहीं था। शिकायतकर्ता ने मुख्य सचिव व जिम्स के गवर्निंग बाडी के चेयरमैन को भी मामले में जांच करने की मांग की है।
संदेह के दायरे में एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट
डा. अंकित ने शिकायत पत्र के साथ ब्रिगेडियर डा. राकेश कुमार गुप्ता की डायरेक्टरेट जनरल मेडिकल सर्विसेज (आर्मी) का सर्विस एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट भी उपलब्ध कराया है। जिसमें बताया है कि ब्रिगेडियर गुप्ता ने 1986 में कमांडेंट अस्पताल लखनऊ से नौकरी की शुरुआत की थी। 17 दिसबंर 2016 तक आर्मी के विभिन्न अस्पतालों में कार्य किया। 17 दिसंबर 2016 तक वह कमांडेंट के पद पर कार्यरत थे। इसके बाद महाराष्ट्र आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ, नासिक में 31 दिसंबर 2016 को प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई। इसके बाद उन्होंने फिर से आर्मी अस्पताल ज्वाइन किया। सर्विस एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट में डा. गुप्ता की आर्मी अस्पताल पुणे में नियुक्ति 17 दिसंबर 2018 लिखी है और आखिरी तिथि 20 जुलाई 2018 लिखी है। सवाल यह उठता है कि उन्होंने ज्वाइन किया दिसंबर में और संस्थान को छोड़ा उसी वर्ष जुलाई में, जो कि संभव नहीं है। जिम्स के निदेशक पद के लिए उन्होंने यही दस्तावेज जमा किया है। यदि उस वक्त दस्तावेजों की जांच चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा ठीक से की गई होती, तो तभी सवाल उठ जाते।

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