गाजियाबाद। अंकित की हत्या की साजिश उमेश ने उसकी बागपत में जमीन बिकते ही रच ली थी। जमीन भी उमेश ने ही दबाव बनाकर बिकवाई थी। दरअसल अंकित के माता पिता व अन्य स्वजन की मौत के बाद अंकित अकेला था, उसने उमेश को ही सबसे गहरा दोस्त व जीजा मानने लगा था। वह उमेश की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं करता था।
उमेश ने अंकित के मन में डर पैदा कर दिया था कि परिवार के लोग उसकी हत्या कर देंगे और उसकी संपत्ति हड़प लेंगे। इससे वह काफी परेशान रहता था। इस बारे में उसने अपने लखनऊ के दोस्तों को भी बताया था। इस डर का फायदा उठाकर उमेश ने अंकित की महंगी भूमि सस्ते दामों में बिकवाई थी और उससे पैसे ऐंठ लिए। बाकी रकम हड़पने और उसे रास्ते से हटाने के लिए प्लाट बिकते ही उसने हत्या की साजिश रची।
शातिर बनने की कोशिश में करता चला गया गलती
कहते हैं कि अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, गलती जरूर करता है। शातिर बनने की कोशिश में अंकित हत्याकांड में आरोपित उमेश भी गलती-दर-गलती करता चला गया। अंकित के लखनऊ में रहने वाले दोस्तों राजीव, प्रशांत, विक्रांत व रूपेश शर्मा को शक हुआ तो वे दोस्ती का फर्ज निभाने लखनऊ से मोदीनगर पहुंच गए। दोस्तों के शक के आधार पर ही पुलिस ने पूरी जांच की। यदि अंकित के दोस्त पुलिस तक न पहुंचते तो उसकी हत्या का पता ही नहीं चलता।
मोबाइल की लोकेशन से उमेश पर गहराया शक
अंकित की हत्या से पहले ही उमेश ने शव ठिकाने लगाने और पुलिस को चकमा देने की तैयारी कर ली थी। रुपये मिलने के बाद उसने हड्डी रोग विशेषज्ञ के यहां से नौकरी छोड़ दी। वारदात के बाद अंकित का मोबाइल फोन इस्तेमाल करता रहा और दोस्तों को मैसेज भेजता रहा। दोस्त जब काल करते थे तो वह रिसीव नहीं करता था। साथी प्रवेश को डेबिट कार्ड से पैसे निकालने के लिए अंकित का मोबाइल फोन देकर हरिद्वार, रुड़की व ऋषिकेश भेजा और वहां की लोकेशन दिखाने के लिए अंकित का मोबाइल आन कराया। दो माह तक अंकित से संपर्क न होने पर दोस्तों को अनहोनी का शक हुआ था।
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