ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी कार्यालय पर किसानों का प्रदर्शन, इन मांगों को लेकर लंबे वक्त से नाराज हैं अन्नदाता

ग्रेटर नोएडा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से प्रभावित किसानों की समस्याएं लंबे अरसे से लंबित चली आ रही है। इससे किसानों में आक्रोश बढ़ रहा है। आबादी नियमावली में शिफ्टिंग के संबंध में पहले से प्रविधान होने के बावजूद मामलों को लंबित करने से किसानों में नाराजगी बढ़ रही है। किसान सभा के नेतृत्व में किसानों ने 14 मार्च को प्राधिकरण कार्यालय पर प्रदर्शन का ऐलान किया है। इसे सफल बनाने के लिए किसान लगातार गांवों में जनसंपर्क कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि शिफ्टिंग होने वाली आबादियों को रकबे को आधा करने का प्रस्ताव बेवजह शासन को भेजा गया है। इसका मकसद शिफ्टिंग के प्रकरणों को लंबा खींचना है। आबादी नियमावली के अंतर्गत 533 आबादी प्रकरण एवं बादलपुर के 208 प्रकरणों में शासन स्तर पर मंजूरी के लिए प्राधिकरण कोई प्रयास नहीं कर रहा है। पतवाड़ी गांव का जमीन अधिग्रहण के रद्द होने के बाद प्राधिकरण की अपील पर किसानों ने उदारता दिखाते हुए उसके साथ समझौता किया।
इसके तहत 10 प्रतिशत आबादी भूखंड और 64 प्रतिशत मुआवजा का फैसला किया गया था, परंतु प्राधिकरण ने 10 प्रतिशत आबादी भूखंड देने से इंकार कर दिया है। 17000 प्रकरणों में लगभग 40 हजार किसान 10 प्रतिशत आबादी भूखंड से वंचित हो गए हैं प्राधिकरण की इस अन्याय पूर्ण कार्रवाई के कारण किसानों में भारी रोष है। तीन सितंबर 2010 के शासनादेश के अनुसार अधिग्रहण से प्रभावित किसानों एवं अन्य भूमिहीन परिवारों को क्षेत्र में लग रहे कारखानों में अनिवार्य रोजगार देने का प्रविधान किया गया है, प्राधिकरण ने जानबूझकर इसे लागू नहीं किया है।
भूमि अधिग्रहण से पैदा हुई बेरोजगारी
भूमि के अधिग्रहण से किसानों में बड़ी संख्या में बेरोजगारी पैदा हुई है। सात फरवरी को प्राधिकरण अधिकारियों से बातचीत में मामलों का परीक्षण कर आगे कार्रवाई का आश्वासन दिया गया था, लेकिन अब अधिकारियों ने इस मामलों पर बातचीत करने से इंकार कर दिया है। किसान सभा के संयोजक वीर सिंह नागर ने कहा कि क्षेत्र के किसान और अधिक अन्याय सहने को तैयार नहीं हैं। समस्याओं के निस्तारण तक किसान आंदोलन लगातार चलते रहेंगे। किसान सभा के ब्रह्मपाल सूबेदार ने प्राधिकरण के अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्राधिकरण के अधिकारी किसानों की समस्याओं की घोर उपेक्षा करने पर आमादा हैं। किसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं ।


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