ग्रेटर नोएडा। कपिल चौधरी
गौतम बुध नगर में जो गांव प्राधिकरण के एरिया में आ गए हैं उन गांव में प्रधानी काफी पहले खत्म कर दी गई। गांव के लोगों की सुनने वाले काफी जनप्रतिनिधि होते थे। अगर हम नीचे से बात करें बीडीसी, प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और यह लोग गाँव की समस्याओं से भली-भांति परिचित होते थे और उन्हें हल करने का पूरा प्रयास इनके द्वारा किया जाता था। लेकिन अब सबसे पहला जनप्रतिनिधि ही विधायक है जोकि कई लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। उसके लिए हर समस्या को हल करना मुमकिन नहीं है और ना ही सभी लोग विधायक के पास जा सकते हैं।
गांव की समस्याओं को हल करने के लिए ग्राम प्रधान सबसे उपयुक्त सदस्य होता था। किसी भी ग्राम के व्यक्ति को कोई भी समस्या होती थी तो वह तुरंत ग्राम प्रधान से जाकर मिल सकता था और वह उसके गांव का ही अपना व्यक्ति होता था और ग्राम प्रधान हर स्थिति से वाकिफ होता था। लेकिन जब से गांव प्राधिकरण के हाथ में गए हैं गांव अनाथ हो गए हैं और अब उनकी बात कोई सुनने वाला नहीं है गांव की समस्याओं को गांव का व्यक्ति ही समझ सकता है ।चाहे बिजली की समस्या हो, नाली सड़क की समस्या हो पुलिस प्रशासन की समस्या हो, तो प्रधान के साथ दर्जनों लोग इकट्ठा होकर के संबंधित अधिकारी के पास जाते थे और अपनी समस्या को हल करा कर ही आते थे। लेकिन प्रतिनिधि खत्म होने से गांव के लोग जाएं तो किसके पास जाएं।
प्राधिकरण को गांव में नियुक्त करने चाहिए ग्राम प्रतिनिधि
जिस तरह सेक्टरों में रेजिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन होता है उसी की तर्ज पर प्राधिकरण को गांव में भी आरडब्लूए को मान्यता दी जानी चाहिए। जिससे अस्थाई तौर पर एक प्रतिनिधि तो ऐसा हो जो गांव की समस्याओं को गांव के लोगों से जानकर प्राधिकरण के बड़े बड़े अधिकारियों तक पहुंचाएं और उन समस्याओं को हल कराने का प्रयास किया जाए। अभी प्राधिकरण सिर्फ अपनी मर्जी से कार्य कर रहा है। ग्रामीणों की सुनने के लिए उसके पास कोई व्यवस्था नहीं है प्राधिकरण का एक जूनियर इंजीनियर भी ग्रामीणों की नहीं सुनता है। तानाशाही रवैया अपनाते हुए हर कार्य उनके द्वारा अपने मनमर्जी से किया जा रहा है।
विधायक और सांसदों के पास इतनी फुर्सत नहीं कि वह ग्रामीणों के पास जा सके और उनकी समस्याओं को सुनने का काम करें। बल्कि इसके उलट होता है अगर आप अपनी समस्याएं सांसद या विधायक के पास लेकर जाएंगे तो वो आपसे दूर भागेंगे। आप को मिलने का समय नहीं देंगे। अगर आप उन्हें अपनी समस्याएं बताएंगे तो आपको अपना विरोधी मानने लगेंगे। जबकि आपके मत के कारण ही वह विधायक और सांसद है जनप्रतिनिधि का मतलब होता है उनका ज्यादा समय जनता के बीच गुजरे। जनता को उनके द्वार नहीं जाना चाहिए बल्कि प्रतिनिधि को जनता के द्वार पर जाना चाहिए। जिस तरह वह वोट मांगने के लिए जाता है।