भूजल दोहन की बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अपने बिल्डिंग बायलॉज में बदलाव करने की योजना बना रहा है। अब नक्शा पास करने से लेकर निर्माण की अनुमति तक के लिए केंद्रीय भूजल आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा और उसी आधार पर खोदाई की अनुमति दी जाएगी। इस प्रस्ताव को बोर्ड बैठक में भी मंजूरी दिलाई जाएगी।
हाल ही में जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण को पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि बेसमेंट की अनुमति जारी करने से पहले नियमों में बदलाव किया जाए। उनके पत्र में कहा गया था कि किसी भी प्रोजेक्ट में बेसमेंट की अनुमति देने से पहले वहां के भूजल स्तर का अध्ययन कराया जाए। अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर ही बेसमेंट की गहराई तय की जाए। यदि किसी प्रोजेक्ट के लिए बेसमेंट की अनुमति जारी की जा चुकी है, लेकिन वहां काम शुरू नहीं हुआ है तो अध्ययन के बाद अनुमति में बदलाव किया जाए।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण जिलाधिकारी के इस सुझाव को अपने बिल्डिंग बायलॉज में शामिल करने की तैयारी में है। प्राधिकरण अब किसी भी निर्माण और बेसमेंट निर्माण की अनुमति देने से पहले केंद्रीय भूजल आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन कराएगा और उसी आधार पर निर्माण के नियम और शर्तें तय की जाएंगी।
बेसमेंट निर्माण पर रोक लगाना प्राधिकरण के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि वर्तमान यूपी बिल्डिंग बायलॉज में बेसमेंट किसी भी बिल्डिंग निर्माण के एफएआर का हिस्सा नहीं होता है। डबल या उससे ज्यादा बेसमेंट की खोदाई के जरिए ज्यादातर बिल्डिंग में पार्किंग की सुविधा मिल जाती है। अगर बेसमेंट की खोदाई में कमी आई तो बिल्डरों को परेशानी हो सकती है।
नोएडा एयरपोर्ट ने इस मामले में एक नजीर पेश की थी। यहां बेसमेंट की खुदाई में बड़ी मात्रा में भूजल निकला था, लेकिन एयरपोर्ट परिसर में ही बोरवेल के जरिए भूजल को फिर से जमीन में डाल दिया गया था। जबकि गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद में बिल्डर भूजल निकालने के लिए मोटरों का सहारा लेते हैं, जिससे भूजल प्रभावित हो रहा है।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ रवि एनजी ने कहा कि जिलाधिकारी के सुझाव पर प्राधिकरण विचार कर रहा है और केंद्रीय भूजल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर बेसमेंट की अनुमति का प्रस्ताव बोर्ड से स्वीकृत कराया जाएगा।
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