ग्रेटर नोएडा। कपिल चौधरी
नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना औद्योगिक प्राधिकरणों की स्थापना नियोजित शहर बनाने के लिए की गई थी। प्राधिकरणों ने अपने नियम कायदे कानून बनाएं। अपने मास्टर प्लान में प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग जगह नियोजित करी। जैसे आवासीय सेक्टर अलग है, इंडस्ट्रियल सेक्टर अलग है, संस्थागत अलग है। सभी के लिए उनकी उपयोगिता के अनुसार जगह निर्धारित की गई है और उनके लिए प्राधिकरण ने नियम निर्धारित किए है। उन्हीं के अनुसार निर्माण करना होता है और कार्य करना होता है लेकिन प्राधिकरणों के लोग ही अपने नियम कायदे कानून को भूल गए हैं और उन्हें इस बात से कोई परवाह नहीं है किस शहर में क्या हो रहा है।
आवासीय सेक्टर में कमर्शियल गतिविधियां बड़े स्तर पर चल रही हैं। जैसे पेइंग गेस्ट (PG), डॉक्टर की क्लीनिक, क्लाउड किचन आदि गतिविधियां सेक्टरों के अंदर की जा रही है और सेक्टरवासी लगातार इसकी शिकायत प्राधिकरण में करते भी है लेकिन अधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं होता है। इसी तरह हॉस्पिटलों में बेसमेंट एरिया में ओपीडी चल रही है सर्विस फ्लोर पर मरीजों के लिए बेड लगाए गए हैं अगर कोई हादसा हो जाता है तो इसमें जिम्मेदारी किसकी होगी। क्या प्राधिकरण के अधिकारी हादसे की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है? इंडस्ट्रियल सेक्टर में कमर्शियल कार्य किया जा रहे हैं उसकी तरफ भी प्राधिकरण के अधिकारियों का कोई भी ध्यान नहीं है। आईटी प्लाट पर होटल।
आखिरकार नियम कायदे कानून क्यों बनाए गए थे। लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सभी के लिए कुछ नियम निर्धारित किए गए थे। लेकिन प्राधिकरणों के अधिकारी भ्रष्टाचार में इतने लिप्त हो गए अपने ही बनाए नियमों को अनदेखा करके हादसों का इंतजार कर रहे हैं। हादसा होने पर ही क्यों जागते हैं यह लोग, पहले कार्रवाई नहीं हो सकती क्या? आम आदमी की जिंदगी की कोई परवाह ही नहीं है
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