ग्रेटर नोएडा।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के जल और सीवर विभाग के अंतर्गत जल निगम के जरिए कराए जा रहे कार्यों में गहराई से जांच करने पर कई गंभीर चुनौतियां और नुकसान सामने आ रहे हैं। इन अनियमितताओं का असर न सिर्फ परियोजनाओं की गुणवत्ता पर पड़ रहा है, बल्कि प्राधिकरण की प्रतिष्ठा, आर्थिक स्थिति, और प्रशासनिक कार्यक्षमता पर भी हो रहा है। इन नुकसानों का आकलन करें तो कई गंभीर बिंदु उभर कर सामने आते हैं, जो भविष्य में प्राधिकरण के लिए चुनौती बन सकते हैं।
भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता का गहराता साया
जल निगम के जरिए कार्य करवाने के पीछे बड़ी परियोजनाओं का हित साधन है, लेकिन इसमें भ्रष्टाचार की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जिन कार्यों के लिए जल निगम को बड़ी रकम एडवांस में दे दी जाती है, उन कार्यों में ठेकेदारों की मिलीभगत और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामलों की आशंका अधिक रहती है। अक्सर देखा गया है कि बिना निरीक्षण के पेमेंट कर दिया जाता है, जिससे सीधे तौर पर प्राधिकरण के धन का दुरुपयोग होता है। यह प्रक्रिया प्राधिकरण को कमजोर बनाती है और इसकी पारदर्शिता पर गहरे सवाल उठाती है।
जल निगम के माध्यम से कराए जा रहे कार्यों की गुणवत्ता में निरंतर कमी देखी जा रही है। यदि परियोजनाओं में अनियमितताओं का यह सिलसिला जारी रहा, तो प्राधिकरण की सार्वजनिक छवि को गहरा नुकसान होगा। लोगों का विश्वास प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर से उठ सकता है।
प्राधिकरण के फंड और अन्य संसाधन बड़ी मात्रा में जल निगम के जरिए कार्यों के लिए जुटाए जाते हैं। परंतु जल निगम की अनियमितताओं के चलते इन संसाधनों का गलत उपयोग हो रहा है। खासकर, परियोजनाओं की देरी से अन्य विभागों के कार्यों पर भी असर पड़ता है, जिससे प्राधिकरण का कार्यभार बढ़ जाता है। एडवांस भुगतान का सदुपयोग न होने से प्राधिकरण को आर्थिक रूप से नुकसान झेलना पड़ता है, और उसे अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए आवश्यक बजट का भी अभाव हो सकता है।
असंतुष्ट उपभोक्ता और उनकी शिकायतें
जल और सीवर संबंधी सेवाएं बुनियादी आवश्यकताओं में आती हैं, लेकिन जल निगम की धीमी और काम को रोक कर रखने की कार्यप्रणाली से उपभोक्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है। इन परियोजनाओं में देरी या घटिया निर्माण के कारण जनता में रोष उत्पन्न हो रहा है। जल निगम के कार्यों में बार-बार सुधार की आवश्यकता पड़ती है, जिससे आम जनता की समस्याओं का समाधान समय पर नहीं हो पाता है और वे लगातार शिकायत करते रहते हैं।
प्राधिकरण की आत्मनिर्भरता में कमी
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण जल निगम पर अत्यधिक निर्भरता दिखा रहा है, जिससे वह अपनी आत्मनिर्भरता खोता जा रहा है। यदि प्राधिकरण अपने तकनीकी और प्रशासनिक संसाधनों का विकास करके इन परियोजनाओं को स्वयं संभालने का प्रयास करे, तो जल निगम पर निर्भरता कम की जा सकती है। प्राधिकरण की अपनी टीमों को प्रशिक्षित करके अधिक कार्यक्षमता और पारदर्शिता लाई जा सकती है। लेकिन फिलहाल यह निर्भरता एक बड़ी कमजोरी बनकर उभर रही है, जिससे प्राधिकरण की क्षमता और कार्य कुशलता पर गलत प्रभाव पड़ रहा है।
विकास की धीमी गति और अनावश्यक लागत
जल निगम के जरिए कार्यों में देरी होने के कारण परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है, जिससे अतिरिक्त बजट आवंटन की आवश्यकता होती है। इस तरह की परियोजनाओं में देरी से संबंधित विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाती है, और नई परियोजनाओं के लिए धन और संसाधनों की कमी हो जाती है। नतीजतन, क्षेत्र के अधोसंरचना विकास में रुकावटें आ सकती हैं और प्राधिकरण का विकास का उद्देश्य अधूरा रह सकता है।
जल निगम के माध्यम से कार्य कराने में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को कई गंभीर नुकसान हो रहे हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, देरी, वित्तीय दुरुपयोग, उपभोक्ता असंतोष और कानूनी समस्याएं शामिल हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्राधिकरण को जल निगम पर निर्भरता कम करनी होगी और अपने संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना होगा। अन्यथा, प्राधिकरण का विकास और उसकी छवि दोनों पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जिससे भविष्य में विकास कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करना कठिन हो सकता है।
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