राजनीति और सत्ता की दुनिया में निजी सहायक (पीए) की भूमिका अक्सर अनदेखी रह जाती है, लेकिन यह पद जितना मामूली दिखता है, उतना ही प्रभावशाली भी होता है। हाल ही में एक मंत्री के पीए द्वारा लिखे गए लेख में कुछ वाक्य सरकार की नीतियों के खिलाफ चले गए, जिसके चलते मंत्री को पद से हाथ धोना पड़ा। कहा भी जाता है कि “पीए ही पुजवाता है और पीए ही पिटवाता है।” यह घटना सत्ता और प्रशासन में पीए की ताकत और उसकी अहम भूमिका को उजागर करती है। मंत्री का सचिवालय केवल घरेलू कामकाज तक सीमित था, मगर बाहर की दुनिया में उनका बड़ा रुतबा था। हालांकि, सत्ता के खेल में कब पासा पलट जाए, कोई नहीं जानता।
सरकारी कार्यालयों में राजनीतिक नियुक्तियों और प्रशासनिक अफसरों के बीच खींचतान आम बात है। मंत्री के ओएसडी और सचिवों को बाहरी दुनिया में बहुत प्रभावशाली माना जाता था, लेकिन उनकी असल जिम्मेदारी मंत्री के निजी कार्यों तक सीमित थी। उनके पास किसी को धमकाने, जिलाधिकारी को नौकर समझने और डाक बंगलों पर मौज-मस्ती करने की पूरी छूट थी। मंत्री की कुर्सी बचाने की चिंता में ये मातहत अपने व्यक्तिगत हितों को साध रहे थे। मगर सत्ता के गलियारों में अनिश्चितता का माहौल हमेशा बना रहता है। जैसे ही एक वीडियो वायरल हुआ और सरकार संकट में आई, कई पीए और सचिवों ने पाला बदल लिया, जिससे मंत्री का राजनीतिक भविष्य डगमगा गया।
आखिरकार, मंत्री ने अपनी छवि सुधारने के लिए अखबार में लेख छपवाने की योजना बनाई। उन्होंने अपने पीए को लेख लिखने का निर्देश दिया, लेकिन पीए ने चतुराई से कुछ ऐसे वाक्य जोड़ दिए, जो सरकार की नीतियों के विपरीत थे। हाईकमान को जब इस गलती का एहसास हुआ, तो मंत्री को तुरंत पद से हटा दिया गया। यह घटना दर्शाती है कि सत्ता के गलियारों में पीए की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। सही मौके पर लिया गया निर्णय किसी को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है, तो एक मामूली गलती पूरे करियर को दांव पर लगा सकती है।
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