जाह्नवी श्रीवास्तव :
डूबती अर्थव्यवस्था, कारोबार में घाटा, बढ़ती गरीबी और चुप्पी साधे बैठी सरकार, विकास ठप का प्रमाण है। पूर्णता विकसित होने की कामना रखता, फलदायक बदलाव को प्रस्तावित करता भारत देश उन देशों में से एक है जो सरकारी और गैर–सरकारी दोनों क्षेत्रों को विकास करने और कराने की पूरी स्वतंत्रता देता है, बावजूद इसके विकास दर बढ़ने के बजाए घटता ही नज़र आता है। खैर बीते साल के हालातों को नज़र में रखते हुए विकास में बढ़ोतरी की कामना रखना भी मूर्खता ही है। हालाकि विश्व बैंक ने दुनिया की आर्थिक स्थिति के बारे में अपने ताजा आकलन में कहा है की इस वित्त वर्ष 2021-22 में दुनियां की अर्थव्यवस्था में 5.6 प्रतिशत की गति से बढ़ोतरी होगी और ये बढ़ोतरी अस्सी साल पहले हुई विराट मंदी के बाद अब तक की सबसे तेज़ बढ़ोतरी होगी।
अब सवाल ये उठता है कि जहां दुनियां की ज्यादातर उभरती हुई और कम आय वाली अर्थव्यवस्था अब भी कोरोना के प्रभाव से ग्रसित है अपने विकास स्तर में बढ़ोतरी की उम्मीद कैसे कर पाएंगी? उत्तर साफ है विश्व बैंक के अनुसार ऐसे कई देश हैं जहां टीका–कारण अब भी नहीं पहुंच पाया है जिसके चलते कोरोना का साया अभी भी बना हुआ है। ऐसे देशों में गरीबी से लोगों को उबरने में बीते वर्ष जो सफलता मिली थी उसपर भी कोरोना महामारी ने पानी फेर दिया है इसलिए कम से कम इस वित्त वर्ष में तो इस नुकसान की भरपाई होना और विकास स्तर में बढ़ोतरी होना लगभग नामुमकिन है, लेकिन अर्थव्यवस्था में यह बढ़ोतरी कुछ बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में देखने को मिलेगी।
अब बात करते हैं भारत के विकास स्तर की तो विश्व बैंक की माने तो भारत का विकास स्तर 11.2 से घटकर 8.3 प्रतिशत हो गया है, तमाम जानकारों और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बुनियादी ढांचे और ग्रामीड क्षेत्रों में निवेश, स्वास्थ तंत्र पर खर्च के कारण विकास तो होगा लेकिन पहले के आकलन से काफी कम होने की आशंका है रिजर्व बैंक ने भी भारत के विकास दर को 10.5 से 9.5 प्रतिशत घटा दिया है उनका भी कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर ने भारत को काफी नुकसान पहुंचाया है।
अब चाहे हम भारतीय रिजर्व बैंक का आकलन मानें या हम विश्व बैंक का, यह स्वीकार करना होगा की हम अर्थव्यवस्था के स्तर पर बहुत कठिन दौर से गुज़र रहे हैं और यह दौर इतनी आसानी से समाप्त होने वाला नहीं है, ऐसे में सरकार को सबसे पहले गरीबी हटाने, उद्योग धंधे बढ़ाने और रोज़गार देने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि आर्थिक असुरक्षा की भावना मात्र की लोगों को पैसे बचाने पर मजबूर कर देती है जिसे आर्थिक गतिविधियां और भी धीमी हो जाती हैं। ऐसे में भारत के लिए ये एक कठिन दौर है और विकास एक सवाल है?
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