ग्रेटर नोएडा (कपिल कुमार)
सर्दियों की शुरुआत के साथ ही नोएडा और ग्रेटर नोएडा में वायु प्रदूषण की समस्या कई गुना बढ़ जाती है। प्रदूषण में होने वाली इस वृद्धि के कारण हर वर्ष लाखों लोग श्वास संबंधी गंभीर बीमारियों के साथ मधुमेह और कैंसर के शिकार होते हैं। हाल के वर्षों में प्रदूषण में होने वाली वृद्धि के प्रति लोगों में जागरूकता बड़ी है और इससे निपटने के लिये सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा कई बड़े प्रयास भी किये गए है। हालाँकि इस मामले में अधिकांशतः लोगों का ध्यान पराली जलाने की चुनौती तक सीमित रहता है, जबकि यह संकट एक अत्यधिक जटिल, बहु-अनुशासनात्मक मुद्दा है जिसमें उद्योग, बिजली उत्पादन, निर्माण, पराली जलाना और परिवहन सहित कई बड़े कारक शामिल हैं। इस समस्या से निपटने के लिये कई बड़े नियम, कानून और विशिष्ट एजेंसियाँ सक्रिय हैं, जो सैधांतिक रूप से बहुत प्रभावशाली लगते हैं परंतु ये प्रदूषण की समस्या से निपटने में उतने सफल नहीं दिखाई देते।
एनसीआर में हवा की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है ग्रेटर नोएडा सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में होता है उसके बावजूद भी ग्रेटर नोएडा की फैक्ट्री में खुलेआम कोयला जलाया जा रहा है जो कि प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है पूर्व में कई बार फैक्ट्री में कोयला जलाने पर पाबंदी लगाई गई है लेकिन इसका असर ग्राउंड पर कम ही दिख रहा है जिम्मेदार अधिकारी भी अभी नींद से जागे नहीं है वह इंतजार कर रहे हैं कि जितना कहां जाएगा उतना ही काम करेंगे।
प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी इंतजार कर रहे हैं प्रदूषण जब भयंकर रूप ले लेगा तब कुछ कार्रवाई करेंगे।
ग्रेटर नोएडा के प्रदूषण कंट्रोल अधिकारियों का कहना है कि 1 अक्टूबर के बाद कोयला जलना फैक्ट्री में बिल्कुल बंद हो जाएगा। लेकिन अभी तक कोई भी ट्रायल कोयला बंद करने का अधिकारियों के द्वारा नहीं किया गया है। अधिकारी अभी इंतजार कर रहे हैं प्रदूषण की स्थिति भयानक होगी तभी कोई कदम उठाए जाएंगे, उस समय सिर्फ दिखावे के लिए कार्रवाई की जाती है।
अगर समय रहते हुए प्रदूषण नियंत्रण करने के लिए कार्यवाही नहीं की गई, तो आने वाले दिनों में प्रदूषण की स्थिति बहुत भयंकर होने वाली अधिकारियों को कुंभकरण नींद से जागना होगा। प्रभावी कदम उठाने होंगे। जिससे कि समय रहते प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सके।
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