लेखक आर्य सागर खारी
(लेखक द्वारा 3 वर्ष पूर्व तत्कालीन ज्वलंत परिस्थितियों के लिए लिखा गया लेख जो आज भी प्रासंगिक है)
आज देश में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उपद्रवी मुसलमान युवक देश की संपत्ति को जला रहे हैं पत्थर मारकर राहगीरों को घायल कर रहे हैं … पढ़ा लिखा अनपढ़ मुसलमान समझने को तैयार नहीं है कि नागरिकता संशोधन कानून से भारतीय मुस्लिम नागरिकों के हितों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा उनकी नागरिकता सुरक्षित बनी रहेगी | लेकिन अकेले मुस्लिम संगठनों मुसलमानों को ही दोष क्यों दे? जब कांग्रेस सपा बसपा आप तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल जैसे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय दल फिजा में जहर घोल रहे हैं जिनमें देश विरोधी संगठन भीम आर्मी, टुकड़ा टुकड़ा गैंग ,वामपंथी पत्रकार कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं… कोई जामा मस्जिद तो कोई जंतर मंतर से मां भारती के विरुद्ध हुंकार भर रहा है। जनवरी 2020 तक की योजना बना ली गई है नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में देश को जलाने के लिए।
किसी भी देश की लोकतांत्रिक यात्रा में ऐसी अनेक चुनौतियां आती है स्वाधीनता आंदोलन में भी ऐसी अनेक चुनौतियां आई थी। बात मुसलमानों में व्याप्त असुरक्षा भय को लेकर हो रही है जिसका आधार नागरिकता संशोधन कानून को लेकर एक निराधार भ्रांति है।
आज काकोरी के शहीदों शहीद रामप्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह का शहादत दिवस है अर्थात 19 दिसंबर आज ही के दिन सन 1927 में इन तीनों क्रांतिकारियों को फैजाबाद गोरखपुर अलग-अलग जेलों में जालिम अंग्रेजों ने फांसी दी थी बगैर उचित सुनवाई का अवसर दिए।
यह ऐतिहासिक सच्चाई है काकोरी कांड का फैसला 6 अप्रैल 1926 को सुना दिया गया। लेकिन तब तक शहीद अशफाक उल्ला खां की गिरफ्तारी नहीं हुई थी नतीजा महीने बाद 13 दिसंबर 1926 को शहीद अशफाक उल्ला खान की गिरफ्तारी के साथ पूरक मुकदमा दायर किया गया। अनेक प्रलोभन शहीद अशफाक उल्ला खां को दिए गए।
एक दिन सी०आई०डी० के पुलिस कप्तान खानबहादुर तसद्दुक हुसैन ने जेल में जाकर अशफ़ाक़ से मिले और उन्हें फाँसी की सजा से बचने के लिये सरकारी गवाह बनने की सलाह दी। जब अशफ़ाक़ ने उनकी सलाह को तबज्जो नहीं दी तो उन्होंने एकान्त में जाकर अशफ़ाक़ को समझाया।
“देखो अशफ़ाक़ भाई! तुम भी मुस्लिम हो और अल्लाह के फजल से मैं भी एक मुस्लिम हूँ इस बास्ते तुम्हें आगाह कर रहा हूँ। ये राम प्रसाद बिस्मिल बगैरा सारे लोग हिन्दू हैं। ये यहाँ हिन्दू सल्तनत कायम करना चाहते हैं। तुम कहाँ इन काफिरों के चक्कर में आकर अपनी जिन्दगी जाया करने की जिद पर तुले हुए हो। मैं तुम्हें आखिरी बार समझाता हूँ, मियाँ! मान जाओ; फायदे में रहोगे।”
इतना सुनते ही अशफ़ाक़ की त्योरियाँ चढ गयीं और वे गुस्से में डाँटकर बोले-…
“खबरदार! जुबान सम्हाल कर बात कीजिये। पण्डित जी (राम प्रसाद बिस्मिल) को आपसे ज्यादा मैं जानता हूँ। उनका मकसद यह बिल्कुल नहीं है। और अगर हो भी तो हिन्दू राज्य तुम्हारे इस अंग्रेजी राज्य से बेहतर ही होगा। आपने उन्हें काफिर कहा इसके लिये मैं आपसे यही दरख्वास्त करूँगा कि मेहरबानी करके आप अभी इसी वक्त यहाँ से तशरीफ ले जायें वरना मेरे ऊपर दफा 302 (कत्ल) का एक केस और कायम हो जायेगा।”
इतना सुनते ही बेचारे कप्तान साहब (तसद्दुक हुसैन) की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी और वे अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चुपचाप खिसक लिये। बहरहाल 13 जुलाई 1927 को पूरक मुकदमे (सप्लीमेण्ट्री केस) का फैसला सुना दिया गया – दफा 120 B व 121 Aके अन्तर्गत उम्र-कैद और 396के अन्तर्गत सजाये-मौत अर्थात् फाँसीका दण्ड का फैसला सुनाया गया।
अशफाक उल्ला खान से जुड़ा हुआ यह प्रसंग करारा तमाचा है आज देश के उन गद्दारों के मुंह पर जिनमें नौकरशाह से लेकर बॉलीवुड के कलाकार भी शामिल है कुछ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तो अवार्ड वापसी गैंग की तरह नौकरी से इस्तीफा दे रहे हैं। जो हिंदू राष्ट्र को लेकर अलग तरह की अफवाह एक एजेंडा के तहत प्रचारित कर रहे हैं।
शहीद अशफाक उल्ला खान ने काकोरी कांड के मुकदमे से पूर्व ही कांग्रेस की सच्चाई को भांप लिया था। शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को भी उन्होंने आगाह किया था कांग्रेस को लेकर। पूर्ण स्वराज्य की मांग को लेकर गांधी को बिस्मिल अशफ़ाकउल्ला जैसे नौजवान क्रांतिकारियों ने कांग्रेस के पटना अधिवेशन में लताड़ा था उनकी जबरदस्त Hutting की थी। कांग्रेस की संप्रदायिक बांटने वाली नीतियों से देश को बचाने के लिए मातृ वेदी जैसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की।
शहीद अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल दोनो भली-भांति जानते थे उनकी शहादत को कांग्रेस पार्टी इस्तेमाल करेगी देश बहुत दिन अब गुलाम नहीं रहेगा। बाद में ऐसा कांग्रेस ने भगत सिंह के मामले में भी किया शहीदे -आजम -भगत सिंह की शहादत को भुनाया।
अशफ़ाक़ यह पहले से ही जानते थे कि उनकी शहादत के बाद हिन्दुस्तान में लिबरल पार्टी यानी कांग्रेस ही पावर में आयेगी और उन जैसे आम तबके के बलिदानियों का कोई चर्चा नहीं होगा; सिर्फ़ शासकों के स्मृति-लेख ही सुरक्षित रखे जायेंगे। तभी तो उन्होंने ये क़ता कहकर वर्तमान हालात की भविष्य-वाणी बहुत पहले सन् 1927 में ही कर दी थी।
“जुबाने-हाल से अशफ़ाक़ की तुर्बत (समाधि )ये कहती है, मुहिब्बाने-वतन ने क्यों हमें दिल से भुलाया है?
बहुत अफसोस होता है बडी़ तकलीफ होती है, शहीद अशफ़ाक़ की तुर्बत है और धूपों का साया है.
”
अशफाक उल्ला खान की मजार पर कांग्रेसियों ने श्रद्धा सुमन तो दूर उस पर छत भी नहीं डलवाई थी… जो पार्टी जिसकी राष्ट्रीय अध्यक्षा आज मुस्लिमों की हितेषी बन रही है… बाद में….
महान क्रांतिकारी, पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी ने 200 रुपये का मनीआर्डर भेजकर शहीद अशफ़ाक़ की मजार पर छत डलवा कर उसे धूप के साये से बचा लिया। नियति का क्रूर खेल तो देखिए जिहादी मुस्लिम भीड़ ने चाकू से गोदकर भरे बाजार कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या कर दी.
जो हुआ सो हुआ लेकिन भारत के मुसलमानों का आदर्श जिन्नाह ओवैसी अफजल गुरु तथाकथित सेकुलर कांग्रेस के नेता या जिहादी मौलवी देश तोड़ने वाले संगठन नहीं होने चाहिए। भारत के मुसलमानों का आदर्श शहीद अशफाक उल्ला खान ही हो सकते हैं. मैं भारतीय मुस्लिमों से अनुरोध करता हूं अफवाहों पर ध्यान ना दें नागरिकता संशोधन विधेयक व नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन को लेकर बेवजह परेशान ना हो यह राष्ट्र हित में लिए गए कदम है भारत जो हजारों वर्षों से पीड़ित शरणागत को शरण देने की जिसकी संस्कृति रही है उसी संस्कृति की रक्षा के लिए संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए भारत की संसद ने नागरिकता संशोधन कानून को पारित किया है यह किसी दल विशेष की ही नहीं भारत के निर्माताओं संविधान निर्माताओं का भी सपना था… जिसे 70 वर्ष पूर्व ही पूरा हो जाना चाहिए था खैर देर आए दुरुस्त आए इन महान फैसलों का सभी को स्वागत करना चाहिए।
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