नोएडा। कपिल कुमार
जीवन एक रास्ता हैं जिसमें कई उतार चढ़ाव हैं। कठिनाई हैं, उस बीच में हम सुकून खोजते हैं। वो सुकून संगीत, साहित्य, और प्रेम का साथ हमें देता है। आत्मा को सुकून देने वाली उन एलिमेंट्स या तत्व को एक साथ हम ले आए तो उसे ही सूफी कहते हैं। इसमें संगीत भी है,साहित्य का अनूठा संगम भी हैं और प्रेम भी है।
सूफी संतों ने भारत के बिखरे आत्मा को एक किया था, जब धर्म की दुकान चलाने के लिए शांति, इश्क और भक्ति के दुश्मनों ने हमारे मन में लकीर खींच दी तो सूफी संगीत ने उसे मिटाया।
तभी तो ख्वाजा मीर दर्द लिखते हैं
है ग़लत गर गुमान में कुछ है, तुझ सिवा भी जहान में कुछ है
जिसमें मीर साफ कहते हैं सिर्फ खुदा ही तो नहीं इस दुनिया में और भी बहुत कुछ है पाने को। ये सपाट बात सिर्फ सूफी में ही कहीं जा सकती है, जहां आप ईश्वर को अपना यार मानते हैं और यार के सामने आप कुछ कहने से घबराते नहीं है।
अमीर खुसरो लिखते हैं,अपनी छवी बनाय के जो मैं पी के पास गई जब छवी देखी पीहू की तो अपनी भूल गई। छाप तिलक सब छीन ली री मो से नैना मिला के।
ईश्वर के करीब बैठने का उसको महसूस करने का रास्ता सूफी से निकलता है। सूफी की जब हम बात करते हैं तो एक रूमानी प्यार का चेहरा हम सबके सामने आता है। सूफी कोई धर्म या जाति की लकीरों में नहीं बंटी, सूफी इन सब से परे है। जब राधा और कृष्ण की बात करते हैं तो वहां भी सूफी रंग ही दिखाई देता है। जब सूरदास लिखते हैं औचक ही देखी तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिये रोरी ।नील बसन फरिया कटि पहिरे, बेनी पीठि रुलति झकझोरी। संग लरिकिनी चलि इत आवति, दिन-थोरी, अति छबि तन-गोरी।सूर स्याम देखत हीं रीझे, नैन-नैन मिलि परी ठगोरी। ये ईश्वर,खुदा, भगवान के दर्शन या झलक पाने की ही तो बात है जो राधा को देखने के बाद कृष्ण ने महसूस कर रहे हैं।


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