नोएडा की ई-साइकिल परियोजना असफल, गलत योजना और संचालन में खामियों के कारण दूसरा चरण अब भी अटका

नोएडा।दिव्यांशु ठाकुर

प्राधिकरण की ई-साइकिल परियोजना गलत योजना के कारण असफल हो गई है। इसमें प्राधिकरण और संबंधित एजेंसी की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसका दूसरा चरण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है जबकि पहला चरण भी घाटे में चल रहा है। संचालन करने वाली कंपनी ने परियोजना में सुधार के लिए पत्र लिखा है।

सेक्टर-62 के टॉट मॉल में एक साइकिल स्टैंड बनाया गया है। यहां एक पिंजरेनुमा जगह पर साइकिलें रखी गई हैं, लेकिन यह पिंजरा कभी नहीं खुलता। साइकिल एजेंसी से पता चला कि यह दूसरे चरण की योजना का हिस्सा है और इसे अभी शुरू होना है। इस जगह पर पहले बाइक रखी जाती थीं, लेकिन अब एजेंसी ने यहां पिंजरा लगा दिया है। इसी तरह सेक्टर-58 थाने के पास बने स्टैंड पर अभी साइकिलें नहीं आई हैं। यहां थाने पर आने वाले लोग अपने चारपहिया वाहन खड़ा कर देते हैं। सेक्टर-21ए नोएडा स्टेडियम के पास भी साइकिल स्टैंड बंद है। सेक्टर-29 में भी साइकिल स्टैंड सक्रिय नहीं है, वहां साइकिलें रखी हुई हैं। सेक्टर-51 मेट्रो से शुरू हुई यह परियोजना परवान नहीं चढ़ रही है। इस ई-साइकिल के बारे में अभी ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। स्टैंड संचालक भी हर जगह से गायब हैं।

जहां सवारी नहीं मिलती, वहां स्टैंड बना दिए गए हैं
नोएडा प्राधिकरण ने जल्दबाजी में ऐसे स्थानों पर ई-साइकिल के स्टैंड बना दिए, जहां से कोई सवारी नहीं मिलती। इस बारे में ई-साइकिल एजेंसी टर्बन मोबिलिटी के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सीईओ से लोकेशन बदलने की अनुमति मांगी है और वे अपने पैसे लगाकर इन्हें बदलेंगे। उनका कहना है कि सेक्टर-101 मेट्रो स्टेशन के दूसरी ओर नाले के पास दो स्टैंड बनाए गए हैं, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। सेक्टर-58 थाने के पास साइकिल स्टैंड का कोई मतलब नहीं है। मेट्रो स्टेशनों से दूर साइकिल स्टैंड बनाए गए हैं। उनका कहना है कि प्राधिकरण को सुझाव दिए गए हैं कि मेट्रो स्टेशन, बस स्टैंड, बड़ी सोसाइटियां, कॉलेज, स्कूल आदि स्थानों पर स्टैंड होने चाहिए, जहां से आने-जाने के लिए इसका उपयोग हो सके। साइकिल का किराया भी सही तरीके से तय नहीं किया गया।

दूर-दराज के इलाकों में साइकिल नहीं भेजी जा रही है
पहले चरण में शुरू किए गए ई-साइकिल स्टैंड से लोगों ने साइकिल किराए पर ली और ग्रेटर नोएडा वेस्ट और इंदिरापुरम छोड़ आए। कई साइकिलें गायब हो गईं। ऐसे में अब एजेंसी साइकिलों को दूर-दराज के इलाकों में नहीं भेजती। हालांकि उन्होंने इस बारे में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से भी बातचीत की थी, लेकिन उन्होंने ग्रेटर नोएडा वेस्ट में इसके निर्माण की अनुमति नहीं दी।

हर महीने पांच से सात लाख रुपए का नुकसान
इस परियोजना में एजेंसी को हर महीने पांच से सात लाख रुपए का नुकसान हो रहा है। एजेंसी को साइकिल स्टैंड से प्रति माह करीब डेढ़ से दो लाख रुपए का राजस्व मिलता है। विज्ञापनों से भी पैसे आते हैं, लेकिन खर्च बहुत ज्यादा है। परियोजना में एजेंसी ने अब तक 4.5 करोड़ का निवेश करते हुए साइकिलें मंगाई हैं। हर स्टैंड पर दस-दस साइकिलें होनी चाहिए, लेकिन दो-तीन से ज्यादा नहीं दिखतीं।

15 रुपये प्रति घंटा है किराया
ई-साइकिल का किराया 15 रुपए प्रतिघंटा है, जबकि अगले प्रत्येक आधे घंटे का किराया 15 रुपए है। वहीं, प्रति माह 999 रुपए किराया है जिसमें अनलिमिटेड राइडिंग शामिल है। ई-साइकिल का दूसरा चरण अभी शुरू नहीं हुआ है। पहले चरण में भी घाटा हो रहा है। लोकेशन बदलने के लिए सीईओ से बातचीत हुई है।


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