हिन्दी भाषा की पहचान: इतिहास, विकास और आधुनिक समय में भाषाई बदलाव

नोएडा।साक्षी चौधरी

मातृभूमि और मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की पहचान होती हैं। मगर ये बड़ी शर्म की बात होगी, जब कोई व्यक्ति अपने ही वजूद पर शर्मिंदा हो जाए। हिन्दुस्तान जैसा देश, जहाँ लगभग 150 करोड़ की आबादी बसती है, जहाँ आम तौर पर अलग-अलग संस्कृति और रिवाज की नुमाइश देखने को मिलती है, वहाँ हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है।

साल 2011 में की गई जनगणना के अनुसार, भारत की 43.63% आबादी ऐसी है, जिनकी मातृभाषा हिन्दी है। बावजूद इसके, आज की युवा पीढ़ी द्वारा हिन्दी के अलावा अन्य भाषाओं को महत्त्व देना अपने आप में बेहद दुखदायी है। हालांकि, साल 2001 में यह संख्या 41.03% से बढ़कर साल 2011 में 43.63% हो गई है।

चलिए, आपको बताते हैं हिन्दी शब्द का इतिहास और कब हुई इसकी शुरुआत।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अनुसार, हिन्दी शब्द की उत्पत्ति ईरान से हुई है। ईरान के सम्राट (500 ई.पू.) द्वारा अभिलेखों में “हिन्दु” शब्द आया है। उन अभिलेखों में “हिन्दु” शब्द का प्रयोग “सिन्धु” शब्द के स्थान पर किया गया है। “हिन्दु” शब्द वास्तव में “सिन्धु” का फ़ारसी रूप है। फ़ारसी में “स” का उच्चारण “ह” होता है, और “सिन्धु” बन गया “हिन्दु”। आगे चलकर “हिन्दु” का “उ” गायब हो गया और बच गया “हिन्द”।

शुरुआती दिनों में ईरानी लोग सिन्धु नदी के किनारे बसे इलाके को हिन्द कहते थे। धीरे-धीरे पूरे भारत के लिए हिन्द शब्द का प्रयोग होने लगा। आगे चलकर “हिन्द” में “ईक” प्रत्यय लगने से “हिन्दीक” शब्द बना, और फिर “हिन्दीक” से “क” के गायब हो जाने पर “हिन्दी” बना। हिन्दी शब्द का मतलब भारत का निवासी, वस्तु और भारत में बोले जाने वाली तमाम भाषाओं से था। मगर समय के साथ-साथ हिन्दी खुद एक भाषा के रूप में परिवर्तित हो गई, जिसकी लिपि देवनागरी हुई।

समय के साथ गायब होती गई हिन्दी भाषा की बिंदु और चन्द्र-बिंदु।
समय के साथ-साथ भारत निवासियों की प्राथमिकता अन्य भाषाएं बनती गईं। लोगों का झुकाव अन्य भाषाओं की तरफ इतना बढ़ गया कि अंग्रेजी, जो पश्चिमी भाषा थी और जिसकी गुलामी से निकलने के लिए हमने घोर युद्ध लड़े और आज़ाद हुए, मगर अफ़सोस है कि आज भी हम अपनी बोली की सुंदरता बढ़ाने के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल मेकअप की तरह करते हैं।

समय के साथ अंग्रेजी हम भारतवासियों के मन में ऐसा घर कर गई कि आज हम हिन्दुस्तानी अभिभावकों की पहली प्राथमिकता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भेजने की होती है। अंग्रेजी की तरफ बढ़ते झुकाव के साथ-साथ हिन्दी की आत्मा कहे जाने वाले बिंदु और चन्द्रबिंदु तो आज गायब ही हो गए हैं। जहाँ “हैं” को “है” लिखा जाता है, तो वहीं “बच्चें” शब्द “बच्चे” कब बन गया, पता भी नहीं चला। और हमने हिन्दी की सुंदरता को ही खो दिया।


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