बांस के पौधों में फूल आना शुभ संकेत नहीं माना जाता, क्योंकि फूल खिलने के बाद बांस का जीवन समाप्त हो जाता है। पूर्वोत्तर भारत में बांस में फूल खिलने की इस चक्रीय घटना को ‘मौतम’ कहा जाता है, जो क्षेत्र में अकाल का संकेतक है। मिजोरम सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 50 साल के अंतराल पर राज्य में अकाल पड़ा है—पहली बार 1911 में, फिर 1959 में और 2007 में, और ये सभी घटनाएं बांस के फूलने के समय के साथ मेल खाती हैं।
मिजोरम में मुख्यतः मेलोकाना बैक्सीफेरा नामक बांस की प्रजाति है, जिसे स्थानीय लोग मौतुक कहते हैं। यह प्रजाति हर 48-50 साल में एक बार फूल खिलाती है और भारी मात्रा में बीज उत्पन्न करती है, जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। इस दौरान काले चूहों की आबादी में अचानक वृद्धि हो जाती है, जो बांस के बीज खाकर तेजी से बढ़ते हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे अकाल की स्थिति उत्पन्न होती है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009 में इस घटना के बाद मिजोरम के लाखों लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे। बांस के फूलने का यह चक्र 40 से 120 साल के बीच होता है, जो क्षेत्रीय जनजीवन पर गहरा असर डालता है।
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