Greater Noida: ग्रेटर नोएडा में आयोजित दो दिवसीय मनु महोत्सव के दूसरे दिन के द्वितीय सत्र में विद्वान वक्ताओं ने मनुस्मृति और मनुवाद को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों का तार्किक खंडन किया। वक्ताओं ने कहा कि जिस प्रकार कोई छात्र नीट परीक्षा पास कर डॉक्टर बनने की योग्यता प्राप्त करता है और चिकित्सा के अधिकार के साथ आजीविका भी अर्जित करता है, ठीक वैसे ही मनु की वर्ण व्यवस्था योग्यता, गुण और कर्म पर आधारित थी। यह किसी व्यक्ति को जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी प्रतिभा के आधार पर सामाजिक अधिकार प्रदान करती थी। मनुस्मृति व्यक्ति के विकास में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है, जैसे भारत का संविधान। आइए एक नज़र डालते है पूरी खबर पर। अधिक जानकारी के लिए खबर को अंत तक जरूर पढ़े।
Greater Noida: मनु के बारे में स्पष्ट हुई ये बाते
द्वितीय सत्र में वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि मनु ने कभी भी किसी वर्ण को जन्म के आधार पर विशेषाधिकार नहीं दिया। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र – कोई भी हो, सबको समाज में अपनी योग्यता से स्थान प्राप्त करने का अवसर था। मनु ने शूद्रों के अधिकारों का हनन नहीं किया, जैसा कि कुछ विकृत विचारधाराएं प्रचारित करती हैं। वक्ताओं ने कहा कि आज जो जातिवादी विकृतियां देखने को मिलती हैं, वह मनु के सिद्धांतों का परिणाम नहीं, बल्कि बाद में समाज में स्वार्थ के कारण आई विकृतियों का नतीजा हैं।
विद्वानों ने मनु के सहयोग में कही ये बातें
बता दे कि Greater Noida आयोजित महोत्सव में विद्वानों ने कहा कि विश्व के जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं, वहां योग्यता का सम्मान किया जाता है और यही “मनुवाद” का मूल स्वरूप है – योग्यता आधारित समाज। उन्होंने कहा कि मनु निर्दोष थे, हैं और रहेंगे। भारतीय संस्कृति को बदनाम करने के लिए मनु पर लगाए गए आरोप निराधार हैं, जिन्हें सशक्त शोध और विवेक से नकारा जाना चाहिए।
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