सरकार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को कथित तौर पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए पुनर्वास और उत्थान केंद्र बनाना चाहती है क्या? प्राधिकरण के महत्वपूर्ण पदों पर लगभग तीन दर्जन सेवानिवृत्त अधिकारी और कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। हाल ही में सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए नई भर्ती निकाले जाने की खबर ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है।
स्थानीय युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार अस्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए ठोस कदम नहीं उठा रही, जबकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बार-बार नियुक्त किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, इन कर्मचारियों को शुरुआत में छह महीने के लिए नियुक्त किया गया था, लेकिन उनका कार्यकाल लगातार बढ़ाया जा रहा है। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है, जब पूर्व में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कुछ सेवानिवृत्त कर्मचारियों को प्राधिकरण से हटाया गया था। सेवानिवृत्त कर्मचारियों की कार्य करने की क्षमता, आयु ज्यादा होने के कारण बेहद कम हो जाती है ज़्यादातर सेवानिवृत्त हो चुके लोग कंप्यूटर पर कार्य करने में असमर्थ है और फील्ड में भी ये लोग ज्यादा कार्य नहीं कर पाते हैं। सेवानिवृत्त कर्मचारियों की ज्यादा संख्या होने से प्राधिकरण की विकास योजनाओ पर भी फर्क पड़ेगा।
भ्रष्टाचार की आशंका और बेरोजगारी का संकट
विशेषज्ञों का मानना है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति से न केवल भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ती है, बल्कि यह युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों को भी सीमित करता है। जबकि पढ़े-लिखे नौजवान नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं, तब सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बार-बार मौका देना अन्यायपूर्ण है। यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। जबकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों की नियुक्ति अनुभव और कार्यकुशलता के आधार पर की जाती है।
हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में 2025 में 2 लाख सरकारी नौकरियों की घोषणा की थी, जिसमें पुलिस, लेखपाल, और आंगनबाड़ी जैसे पद शामिल हैं। फिर भी, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में कर्मचारियों की स्थायी और अस्थायी नियुक्ति की बेहद जरूरत है।
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