लड़किया क्यों बनती जा रही हैं , एक प्रोडक्ट

KAPIL KUMAR : क्या आप ऑटो एक्सपो देखने गये ? यदि हा तो फिर अपने क्या क्या देखा वहा पर, लड़कियों को भी एक प्रोडक्ट के रूप में प्रस्तुत क्या गया है हर एक कार के साथ लड़की है जैसे मानो की हर कार के साथ लड़की भी प्रोडक्ट के रूप में मिलेगी। हमारे देश में ये परम परा नहीं थी लकिन हमने मॉर्डन होने के नाम पे अपना बहुत कुछ दांव पर लगा दिया हैं।
हमारे बुजुर्ग कहते हैं, एक स्त्री का सौन्दर्य उसके पति के लिए होता है, फिर मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि ये स्त्रियाँ अपना अर्ध नग्न शरीर अपने पति के अलावा किस को और क्यूँ और किस लिए दिखाती हैं हमारे समाज में तो अपने पति परमेश्वर के अलावा गैर पुरुष के लिए प्रेम होना या सोचना भी पाप माना जाता है।

लड़कियो के पास अनावश्यक नग्नता वाली पोशाक में घूमने पर तर्क है, इन कपड़ो के पीछे कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे, पुरुष नहीं, ये अच्छी बात है, आप ही तय करे, लेकिन कुछ पुरुष भी कहते है हम किस लड़कियों का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रियाँ नहीं, और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे।

फिर कुछ लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की, बिल्कुल आज़ादी है, ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो, मांस खाने की आज़ादी हो, वैश्यालय जाने की आज़ादी हो, हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।
लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगी, की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे।
क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है, जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की हमें माँ/बहन की नज़र से देखो, कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे अंग प्रदर्शन करती है, भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था। सत्य ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है। और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करती है।

मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता भी है। चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है। अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती,
गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।

हमारा मकसद किसी को ठेस पहुँचाना नही है सिर्फ सच्च से पर्दा उठाना हैं। हमारे देश में सभी को अपना जीवन अपने तरीके से जीने का अधिकार है पर हमे या बात याद रखनी चहिये, कि एक्शन के बाद रिएक्शन होता हैं। और गलत तरीके के साथ इज्जत और सम्मान की आशा नहीं कि जा सकती। और इस विषय आप खुद विचार करें।


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