अपने ही दामन में आग लगाने को अभिशप्त कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी

हमेशा जींस-टी शर्ट या फिर पैजामा-कुर्ता में नजर आने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लंदन में बंद गले के सूट में देखकर ऐसा लगा कि वे स्वयं को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल बंद गला सूट अध्ययन, अनुशासन और मर्यादा का प्रतीक है। राहुल उसका अनुपालन करने में बुरी तरह विफल हुए। उन पर जींस-टी शर्ट जैसे कैजुअल ड्रेस ही फबते हैं। पार्ट टाइम पालिटिक्स, फुल टाइम एंटरटेनमेंट। हैरानी की बात है कि कई लोगों ने उनमें राजीव गांधी की छवि भी देखी।
भूतपूर्व प्रधानमंत्री की उसी कलर के सूट में फोटो भी इंटरनेट मीडिया पर साझा की गई, लेकिन जब राहुल ने मुंह खोला तो यह विश्वास और गहरा हो गया कि उनके रहते कांग्रेस का कुछ नहीं हो सकता है। जब तक वे दूसरों के लिखे भाषण देते रहेंगे, उनकी खिल्ली उड़ाई जाती रहेगी। राजीव गांधी भी नौसिखिए के रूप में आए थे, लेकिन उन्होंने कभी उस स्तर को नहीं छुआ, जहां राहुल गांधी पहुंच चुके हैं।
लंदन में भारत विरोधी फोरम में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर पूरे देश में केरोसिन छिड़कने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘केवल चिंगारी लगाने की जरूरत है।’ अब उन्हें कौन बताए कि वे जिसे केरोसिन समझ रहे हैं, वह देश की बहुसंख्यक जनता के लिए गंगाजल है। यह सदियों के अपमान को धोने के लिए है। इसलिए चिंगारी लगाने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा। अगर यह केरोसिन साबित होगा तो केवल राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लिए। मुसलमानों को रिझाकर वे कोई राजनीतिक फसल नहीं काट सकते हैं। वे कांग्रेस से बहुत दूर जा चुके हैं। बंगाल में ममता बनर्जी से लेकर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव तक कांग्रेस के इस वोट बैंक को उससे अलग कर चुके हैं। यह बात सिर्फ राहुल गांधी को समझ में नहीं आ रही है कि वे कितने हिंदू विरोधी होते जा रहे हैं। उनकी पार्टी के बड़े नेता भी यह जानते हैं, लेकिन कह नहीं सकते हैं। विडंबना देखिए कि उन्हीं राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है। दूसरी तरफ, उन पर अक्षमता का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ने वाले संभावनाशील युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने की सूची लंबी होती जा रही है।
ताजा मामला गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल का है। लंबे इंतजार के बाद आखिरकार उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ने का फैसला किया। उनकी भी वही शिकायत कि राहुल गांधी के पास उन जैसे नेताओं से मिलने का समय नहीं है। बकौल हार्दिक, राहुल से ज्यादा ‘अप्रोचेबल और कम्युनिकेबल’ तो प्रियंका गांधी हैं। प्रियंका को राहुल से ज्यादा काबिल मानने वाले पार्टी के अंदर ही नहीं बाहर भी मिल जाएंगे। ये तो पुत्र मोह है जिसके वश में सोनिया गांधी ऐसा होते हुए नहीं देखना चाहती हैं। दूसरी तरफ स्थिति ये है कि केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ विरोधी दलों की तरफ से होने वाले प्रयासों में कांग्रेस कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। विपक्षी धुरी के नेता बनने की कोशिश कर रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलते हैं। कृषि कानून विरोधी आंदोलन में मारे गए पंजाब के किसानों को तीन-तीन लाख रुपये देने की घोषणा करते हैं। वे अखिलेश यादव से भी मिलते हैं, लेकिन राहुल गांधी से मिलने में उन्हें कोई रुचि नहीं है।


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