ग्रेटर नोएडा। कपिल तोंगड़
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में अपने काम से आने वाले लोग एक बात की चर्चा करते नजर आते हैं कहते हैं कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। कामों की रफ्तार कछुआ चाल से भी धीमी हो गई है। अधिकारी निर्णय लेने से बचते नजर आते हैं फाइलों पर साइन करने से पहले बहुत बार टालमटोल की जाती है और जब साइन करना मजबूरी ही बन जाता है तभी किसी फाइल पर साइन करते हैं।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की स्थिति इस समय ऐसी लगती है जैसे आपने टेलीविजन में देखा होगा बच्चों के सीरियल में एक सुपर हीरो सभी की शक्तियों को छीन लेता है ऐसे ही ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के बड़े बड़े अधिकारी आजकल नजर आते हैं लगता है की यह शक्ति विहीन हो गए हैं। इनकी शक्तियां किसी और के पास चली गई हैं निर्णय लेने की क्षमता है इन से छीन ली गई है। अब यह सिर्फ रूटीन वर्क ही करेंगे। प्राधिकरण के इस रवैया से प्राधिकरण में आने वाले रोजाना हजारों लोग निराश ही लौटते हैं।
निचले अधिकारियों पर बड़ा काम का बोझ
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के बड़े अधिकारियों के निर्णय न लेने के कारण और फाइलों पर अपनी राय न देने के कारण निचले अधिकारियों पर काम का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके कारण एक -एक अधिकारी को दर्जनों लोग अपने कामों के लिए घरे खड़े रहते हैं। लेकिन उन्हें भी निराशा लेकर ही लौटना पड़ता है।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा पिछले कुछ समय से ना तो कोई भूमि अधिग्रहण किया गया है ना ही अवैध निर्माणों पर कोई रोक लगी है। गावों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। रूटीन वर्क भी प्रभावित होने लगे हैं जो सेक्टर से पहले साफ-सुथरे नजर आते थे अब उनमें जगह-जगह कूड़े के ढेर नजर आते हैं। गावों में गंदगी के अंबार लगे हैं बड़े-बड़े आदेश दिए जाते हैं लेकिन धरातल पर कहीं नजर नहीं आते। किसान, बिल्डर, उद्यमी, अलॉटी सभी लोग अपनी परेशानियां लेकर के प्राधिकरण में आते हैं लेकिन ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की कार्यशैली के कारण उन्हें खाली ही लौटना पड़ता है। जब तक अधिकारियों को उनकी शक्तियां नहीं लौटाई जाएंगे तब तक प्राधिकरण की काम करने की चाल धीमी ही रहेगी। एक अधिकारी इतनी बड़ी संस्था को अकेले नहीं चला सकता।
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