जिस निर्माण को अवैध बताकर प्राधिकरण तोड़ता है, क्या कभी सोचा है कि यह निर्माण हो क्यों रहा है?

ग्रेटर नोएडा। कपिल चौधरी

शहर में सबसे ज्यादा बात आज किसी चीज की हो रही है तो वह है अवैध निर्माण और यह प्राधिकरण के नियमों के अनुसार अवैध निर्माण भी है। लेकिन सोचने वाली बात यह भी है आखरी अवैध निर्माण की परिभाषा है क्या? अगर कोई किसान अपनी जमीन पर निर्माण करता है क्या वह अवैध निर्माण है? या अगर किसान अपनी जमीन को किसी को बेच देता है और वह उसे पर निर्माण करता है क्या वह अवैध निर्माण है? और आखिर किसान अपनी जमीन पर निर्माण करें भी क्यों नहीं, क्या उसे अपनी जमीन पर निर्माण करने का हक नहीं है। जिस निर्माण को अवैध बताकर प्राधिकरण तोड़ रहा है और अपनी पीठ थपथपा रहा है आखिर यह अवैध निर्माण हो क्यों रहा है और इसके पीछे क्या कारण है प्राधिकरण के अधिकारी इस पर कभी सोचते क्यों नहीं? आखिर गलती किसकी है किसान या प्राधिकरण।

प्राधिकरण अधिग्रहण कब करेगा?

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की स्थापना को लगभग 30 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं। स्थापना के साथ ही प्राधिकरण ने सैकड़ो गांव को अपने अधिसूचित क्षेत्र में ले लिया। साथ ही उनका विकास करने का बीड़ा उठाया। लेकिन प्राधिकरण की योजनाएं फेल होती नजर आ रही है क्योंकि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अपने सबसे महत्वपूर्ण 130 मी रोड के नजदीकी गांव का भी अधिग्रहण नहीं कर पाया है। तो ऐसे में किसान कब तक प्राधिकरण का इंतजार करें। आखिरकार किसान की भी मजबूरियां है या तो वह अपनी जमीन पर निर्माण करें। या अपनी किसी जरूरत के लिए जमीन को किसी दूसरे व्यक्ति को बेच और अगर वह अपनी जमीन पर निर्माण करता है तो उसे अवैध बता दिया जाता है।

जिन्हें प्राधिकरण अवैध बता रहा है वह गरीबों के आशियाने

प्राधिकरण के ढुलमुल रवैया के कारण किसान या तो खुद निर्माण कर रहे हैं या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को बेच रहे हैं। आखिर हजारों लोग इन जमीनों पर अपने सपनों के आशियाने की आस क्यों लगाए हुए हैं। ग्रेटर नोएडा शहर बहुत महंगा शहर हो चुका है जबकि यहां बाहर से आने वाले 30- 40 प्रतिसत लोगों की मंथली आय 30 हज़ार तक ही है। ऐसे में यह लोग प्राधिकरण द्वारा विकासशील सेक्टर या सोसाइटी में घर नहीं खरीद सकते हैं। तो ऐसे में वह रुख करते हैं कच्ची कॉलोनी का, यहां उन्हें सस्ते दामों पर अपने सपनों का आशियाना मिल जाता है। जबकि प्राधिकरण की इस वर्ग के लिए कोई योजना नहीं है।

गांव में कालोनियां बननी तब शुरू हुई जब किसान को मुआवजे की राह देखते हुए दशक को बीत गए। लेकिन प्राधिकरण उनके पास तक नहीं पहुंचा। ऐसे में किसान को बच्चों की शिक्षा के लिए, मकान बनाने के लिए और बच्चों की शादी के लिए पैसों की जरूरत है तो पैसों का इंतजाम कैसे करें और प्राधिकरण से मुआवजा मिल नहीं रहा है। तो उसके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचता है अपनी जमीन को किसी प्राइवेट व्यक्ति को बेचना और वह प्राइवेट व्यक्ति किसान को उसकी जमीन का प्राधिकरण से ज्यादा पैसा देता है यही कारण है निर्माण बढ़ाने का।


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