नोएडा। दिव्यांशु ठाकुर
हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर मस्तिष्क और तंत्रिका संबंधी बीमारियों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसमें अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारियां प्रमुख हैं। अल्जाइमर रोग की वजह से व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है और संवाद करने में कठिनाई होने लगती है। अगर समय रहते इस पर ध्यान न दिया जाए तो यह समस्या डिमेंशिया का रूप ले सकती है।
डिमेंशिया के कारण स्मृति, भाषा, सोचने की क्षमता और समस्याओं के समाधान में परेशानी हो सकती है। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 55 मिलियन (5.5 करोड़) से अधिक लोग डिमेंशिया से प्रभावित हो सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ, विशेष रूप से 60 वर्ष के बाद, इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हमारी दिनचर्या की कुछ खराब आदतें भी इस बीमारी का कारण बन सकती हैं, इसलिए कम उम्र से ही बचाव के प्रयास करना जरूरी है।
हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि 55 साल की उम्र में भी कई लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं। डिमेंशिया के 40 प्रतिशत मामलों के लिए 12 प्रमुख जोखिम कारक जिम्मेदार माने गए हैं, जिनमें कम शिक्षा, सुनने की समस्या, उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, मोटापा, अवसाद, शारीरिक निष्क्रियता, मधुमेह, अत्यधिक शराब का सेवन, मस्तिष्क की चोट, वायु प्रदूषण और सामाजिक अलगाव प्रमुख हैं।
नवीनतम अध्ययनों में दृष्टि हानि और उच्च कोलेस्ट्रॉल को भी डिमेंशिया के जोखिम कारकों में जोड़ा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन जोखिम कारकों पर ध्यान देकर लगभग आधे मामलों को रोका जा सकता है। हालांकि, डिमेंशिया का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है, इसलिए बचाव ही सबसे बेहतर उपाय है।