डा. शिशिर कुमार (एम.बी.बी.एस., एम.एस., एम.सीएच., डी.और्थो) नॉएडा स्तिथ मेट्रो हॉस्पिटल में ऑर्थपीडिक्स तथा रीड की हड्डी के विशेषज्ञ हैं। डा. शिशिर कुमार ने पुणे के सेना के चिकिसा विद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक परीक्षाएँ पास की हैं। सेना के 24 साल के कार्यकाल में 20 साल उन्होंने शल्य चिकित्सा में गुज़ारे और हर प्रकार की शल्य चिकित्सा में कुशलता हासिल की। जोड़ों के प्रत्यारोपण तथा रीढ़ की सर्जरी का उन्हें 18 सालों का अनुभव है।
उन्होंने सेना में न्यूनतम इन्वेसिव रीढ़ शल्य की शुरुआत की, और वे कूबड़पन तथा ‘एडवान्स्ड डिफॉर्मिटी करेक्शन’ के लिए सेना में एकमात्र शल्य चिकित्सक थे तथा एशिया के सबसे बड़े, खिड़की, पुणे में स्थित, फ़ौजी अस्पताल के ‘मेरुदंड अभिघात केंद्र’ के प्रमुख रहे हैं।
डा. शिशिर का मेरुदंड संबंधित प्रारंभिक प्रशिक्षण, सायन अस्पताल के प्रो. ए.बी. गोरेगांवकर के अधीन हुआ, तत्पश्चात उन्होंने कोरिया, सिंगापुर तथा जर्मनी में प्रशिक्षण ग्रहण किया।
की होले स्पाइन सर्गेर रीड की हड्डी के इलाज में क्रांतिकारी प्रगति
पीठ दर्द वह मूल्य है जो मनुष्यों को खड़े होने और चलने के लिए भुगतान करना पड़ता है । मानव रीढ़ की हड्डी जिसमें 33 अलग अलग हड्डियां शामिल हैं, आपस में डिस्क यानी मनके और फ़ैसेट जोड़ो से बंधी हुयी हैं। इसके साथ साथ रीड की हड्डी में चार घुमाव होते हैं हो इंसान को सीधा खड़े होने में मदद करते है। यह अनूठी रचना रीड की हड्डी पर जबरदस्त भार डालती है जिसकी वजह से मनुष्य को कमर का दर्द और इसके साथ जुड़े हुए कायी प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है।। यह अनुमान लगाया गया है कि 40-60% लोगों को अपने जीवनकाल में कमर दर्द का अनुभव होता है और उनमें से लगभग आधों को डॉक्टर से सलाह लेनी पड़ेगी । सदाबहार जीवन शैली, शारीरिक व्यायाम की कमी, गैर-सुविधायुक्त रूप से डिजाइन किए गए कार्यस्थल और मोटापा, युवाओं में पीठ दर्द में योगदान देता है। पीठ दर्द बुजुर्गों में वृद्धावस्था का एक अभिन्न हिस्सा है। बुज़ुर्गों में यह पीठ दर्द अगर नज़रंदाज किया जाए तो इससे सम्बंधित जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
कमर दर्द के साथ कयी और जतलताएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। जवान और माध्यम आयु के लोगों को, जिस बीमारी में रीड की हड्डियों की बीच का मानक खिसक जाता है और यह मनका पैर में जाने वाली नसों पर दबाव डाल सकता है और इसी वजह से पैरों में दर्द भी हो सकता है। इस दर्द को ‘सायऐटिका’ कहते है। इसका उचित इलाज ना करवाने से पैरों में कमज़ोरी और किसी किसी व्यक्ति में संडास और पेशाब भी बन्द हो सकता है। बुज़ुर्गों में रीड की हड्डियों की जोड़ों की अतिवृधि होने से पैर में जाने वाली सारी नसें दब जाती हैं। इस वजह से मरीस को चलने में पैरों में दर्द हूता है। इसमा उचित तरीक़े से इलाज ना करवाने से कायी जटिलताएँ आ सकती हैं।
अधिकांश पीठ के साथ आराम, दवाओं, जीवनशैली में संशोधन, अभ्यास और फिजियोथेरेपी के साथ इलाज किया जा सकता है। इन सब उपचार के बावजूत भी एक मरीजों का एक उप-समूह है जिनको इनमें से किसी भी उपचार का आराम नहीं आता। इन मरीसों में शल्य चिकित्सा का हस्तशेप करना ज़रूरी हो जाता है।
परम्परागत सर्जरी के लिए पीठ में एक बड़ी चीरा की आवश्यकता होती है। इस चीरे से रीड की हड्डी की मसपेशियाँ काटी हैं और इससे इसके परिणामस्वरूप बहुत सी रीढ़ की हड्डी की मांसपेशियों में फ़ायब्रोसिस होती है जिसकी वजह से आरोग्यलभ का वक़्त काफ़ी बढ़ जाता है और मरीज़ को काफ़ी वक़्त तक कमर दर्द रहता है। इन वजहों के परिणामस्वरूप, सामान्य आदमी रीड की हड्डी का ऑपरेशन करने से घबराता है और ऑपरेशन करवाने में देर कर देता है, जिसकी वजह से उससे ओपेरतटीयों का पूर्णताय लाभांश नहीं होता है। इस तरह की समस्याओं को पाने के लिए ‘की-होल स्पाइन सर्जरी’ विकसित की गई थी। इस कीहोल स्पाइन सर्जरी में पीठ में एक छोटा सा छेद करके उसके द्वारा दूरबीन या माइक्रोस्कोपी डालकर और सूक्ष्म औज़ारों का इस्तेमाल काके इन बीमारियों का सफलता से इलाज कर सकते हैं। इस तकनीक से न्यूनतम कमर का दर्द हूता है और हॉस्पिटल में भी एक या दो दिन से ज़ायद भर्ती हूने की ज़रूरत नहीं हूटि है। ऑपरेशन के बाद मरीज़ अगले ही दिन पुर्णे रूप से चलने फिरने लगता है और अपनी सारी दिनचर्या आराम से कर सकता है।
रीड की हड्डी के अत्यधिक ऑपरेशन सायऐटिका का इलाज करने हेतु होता हैं। इस ऑपरेशन में हम वो मनका, जो पैरों की नस पर दबाब डाल रहा है उससे निकल देते हैं। इस सर्जरी में कमर में एक छोटा छेद बनाया जाता है। इस छेद के द्वारा एक पथ बनाने के उपरांत 12 मिमी ट्यूबलर रिट्रैक्टर डाला जाता है। उस रेट्रकटोर के द्वारा वह मनका निकला जा सकता है। डिस्क को निकालने में माइक्रो माइक्रोस्कोप या एंडोस्कोप का उपयोग किया जाता है। सर्जरी की अवधि 20-25 मिनट है और व्यक्ति उसी दिन चल सकता है और शाम तक घर जा सकता है।
रीढ़ की हड्डी में स्टेनोसिस की वजह से रोगी पीठ में दर्द और चलते वक़्त पैरों में दर्द महसूस करता है। समय के साथ यह दोनों निचले अंगों की कमजोरी का कारण बन सकता है, और गतिशीलता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर सकता है। इस बीमारी के लिए सर्जरी भी पीठ में एक कीहोल चीरा का उपयोग करती है और 12 मिमी ट्यूब, माइक्रोस्कोप और माइक्रोस्कोर्जरी उपकरणों का उपयोग करती है।इस तकनीक से , नसों पर सभी दबाव से राहत प्राप्त होती हैं। इस तकनीक से रीड की हड्डी में पेंच और रोड भी डाले जा सकते हैं।
ओस्टियोपोरोसिस से रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर की सम्भावना बढ़ जाती है। यह वृद्धावस्था में बहुत आम होता है। इससे गंभीर दर्द और गतिशीलता का नुकसान हो सकता है। इसका मुकाबला करने के लिए स्थानीय संज्ञाहरण (कैफोप्लास्टी) के तहत हड्डी में सीमेंट का इंजेक्शन दिया जाता है और रोगी तुरंत घर जा सकता है। दर्द का निवारण तुरंत हूता है और इस इंजेक्शन के बाद मरीज़ पूरने रूप से अपनी दिनचर्या कार सकता है।
कीहोल रीढ़ सर्जरी ने रीढ़ की हड्डी के रोगों के इलाज में क्रांति की है, जिससे इसे सुरक्षित, प्रभावशाली और अपेक्षाकृत दर्द रहित बना दिया गया है।
Dr (Lt Col) Shishir Kumar
MS(Surg), MCh(Ortho), D Ortho, Pdf (Trauma Surgery)
Senior Consultant Orthopedics and Spine Surgery
Metro Group of Hospitals
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