गाजियाबाद। आउट-आफ टर्न प्रमोशन के लिए एटा में पुलिसवालों ने पहले बेगुनाह बढ़ई राजाराम की हत्या कर उसका हंसता-खेलता परिवार तबाह कर किया। उसके बाद न्याय की लड़ाई में भी खाकी ने खूब हनक दिखाई। खाकी के दबाव के कारण सीबीआइ की विशेष अदालत में ज्यादातर सभी गवाह बयान से मुकर गए थे।
सीबीआइ के लोक अभियोजक ने बताया कि मामले की वादी मृतक की पत्नी भी पहले अदालत में गवाही देने नहीं आई थी और बाद में मुकर गई थी।
मेडिकल व विशेषज्ञ की रिपोर्ट के आधार पर हुई सजा
फर्जी एनकाउंटर के मामले में मेडिकल रिपोर्ट व केंद्रीय फारेंसिंक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) की जांच रिपोर्ट बेहद अहम साबित हुई। मेडिकल रिपोर्ट में बढ़ई राजाराम को तीन गोली लगने की पुष्टि हुई। एक माथे में व दो पीठ पर। मुठभेड़ के दौरान जब राजाराम की पीठ पर पुलिस की दो गोली लग गईं थीं तो माथे पर गोली क्यों मारी गई। माथे में लगी गोली सिर के पार हो गई थी जबकि पीठ पर लगी गोली शरीर में फंसी रह गई थी।
इस तथ्य ने पुलिस के फर्जी एनकाउंटर की पोल खोली। मृतक का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर नरेश सिंह तोमर ने भी अदालत ने इसकी पुष्टि की। वहीं सीएफएसएल की रिपोर्ट में राजाराम को माथे से सटाकर गोली मारे जाने व कांस्टेबल राजेंद्र सिंह को आवंटित सरकारी रिवाल्वर .38 बोर से गोली मारने जाने की पुष्टि हुई।
सीएफएसएल रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञ संजय खरे ने इसकी पुष्टि की। इसके अलावा परिस्थिति जन्य साक्ष्य भी मामले में अहम साबित हुए। इन तीनों आधार पर ही अदालत ने सजा सुनाई।

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