बाप के होते हुए भी अनाथ है बेटा, न्यायालय से गुहार लगाई है कि उनका तथा उनके पिता का डीएनए कराया जाए ताकि सच्चाई सामने आ सके।

गाजियाबाद। कपिल कुमार

जमाना बदल चुका है। कहा जाता है कि पिता बेटे के लिए हर सुख देने के लिए जान लगा देता है। लेकिन आज के जमाने में कुछ लोग पूरी तरह बदल चुके हैं। आज पिता अपने खून को अपना बेटा मानने से मना कर रहा है। अपने बेटे को ही अपना नाम नहीं देना चाहते। जबकि बेटा लगातार कोशिश कर रहा है हर दरवाजे पर जा रहा है कि उसको उसका हक मिल सके। उसका भी हक है अपने बाप के नाम का इस्तेमाल करने का। इस चौंका देने वाले मामले में 40 सालों से बिना पिता के रह रहा एक बेटा व पति के जिंदा रहते हुए भी विधवा का जीवन बिता रही एक पत्नी ने निरदई पिता व पति से अपना हक मांगा है।

गाजियाबाद शहर की वसुंधरा कालोनी के मकान नं. 3/1180 में रहने वाले संजय सिंह ने गाजियाबाद के न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया है। यह मामला अतिरिक्त सिविल जज की अदालत में दायर किया गया है। इस मामले में 48 वर्षीय संजय सिंह ने अपने पिता से पिता का नाम व माता श्रीमती बालेश्वरी देवी के लिए पति का नाम मांगा है। अदालत में दायर इस अनोखे मामले में संजय सिंह का कहना है कि वह सदर तहसील गाजियाबाद में पिछले 25 वर्षों से वकालत कर रहा है। उनके तीन बच्चे हैं जिनके नाम जतिन चौधरी, कनिष्का चौधरी व गरिमा सिंह हैं। मेरी मां का नाम श्रीमती बालेश्वरी देवी (70 वर्ष) है। मेरी मां मूलरूप से ग्राम सादोपुर जनपद गौतमबुद्ध नगर की रहने वाली है। उनका विवाह 53 वर्ष पूर्व महेन्द्र सिंह चौधरी पुत्र स्व. सरजीत सिंह निवासी म.नं. 1346 गुलजारी गली, ग्राम कोटला मुबारकपुर, नई दिल्ली के साथ हुआ था।

संजय सिंह आगे कहते हैं कि मेरे नाना फौजी थे और उन्होंने अपनी हैसियत के मुताबिक शादी के समय खूब दान-दहेज दिया था। मेरी मां की शादी 8 मई 1970 को हुई थी। उसके दो साल बाद गौना हुआ। संजय बताते हैं कि 1975 में मेरा जन्म हुआ। जब में महज सवा महीने का था तो मेरे पिता ने दूसरी शादी कर ली। क्योंकि मेरी मां कम पढ़ी-लिखी थी। मेरे पिता ने कॉलेज में अपने साथ पढऩे वाली आशा नामक महिला से दूसरी शादी की थी। आशा के पिता एक रसूखदार अफसर थे और वह कस्टम विभाग में बड़े अधिकारी थे। दूसरी शादी के बाद मेरे पिता ने मात्र सवा महीने की उम्र में उन्हें घर से निकाल दिया। समाज के सम्मानित व्यक्तियों के समझाने के बावजूद भी मेरे पिता ने मां को अपने साथ नहीं रखा। जिसके चलते मेरी परवरिश ननिहाल में हुई। मेरी मां ने बेहद विपरीत परिस्थितियों में कष्ट भरा जीवन व्यतीत करते हुए मुझे बड़ा किया है।

अपनी मां को न्याय दिलाने के लिए तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए मैंने वकालत की पढ़ाई की। अब अपना हक पाने के लिए मैंने न्यायालय की शरण ली है। मेरे इस कदम को उठाते ही मेरे पिता ने न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया कि उन्हें झूठी योजना के तहत फंसाकर परेशान किया जा रहा है। इसलिए याचिका को खारिज कर दिया जाए। उन्होंने याचिका की सुनवाई दिल्ली में कराने की अदालत से प्रार्थना की। जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी याचिका को स्वीकार नहीं किया गया।

संजय सिंह ने अदालत को बताया कि मेरे पिता की दूसरी पत्नी से तीन बच्चे हैं जो काफी रसूखदार हैं। दूसरी पत्नी से दो बेटे भूपेन्द्र सिंह व धर्मेन्द्र सिंह और बेटी वर्षा सिंह हैं। संजय सिंह ने न्यायालय से गुहार लगाई है कि उनका तथा उनके पिता का डीएनए कराया जाए ताकि सच्चाई सामने आ सके।

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