ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की नीतियां: आम आदमी के लिए आवास की राह मुश्किल, गरीबों के आशियाने पर अवैध का ठप्पा

Greater Noida

ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश का एक तेजी से विकसित हो रहा औद्योगिक और आवासीय केंद्र, अपनी आधुनिक बुनियादी सुविधाओं और नियोजित शहरीकरण के लिए जाना जाता है। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण (GNIDA) की नीतियां आम आदमी और गरीब वर्ग के लिए आवासीय अवसरों को सीमित करती हैं। प्राधिकरण की ओर से किफायती आवास योजनाओं का अभाव और अवैध निर्माणों पर सख्ती ने गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए अपने आशियाने का सपना पूरा करना मुश्किल कर दिया है। इस खबर में हम इस मुद्दे की गहराई से पड़ताल करते हैं।

आम आदमी के लिए आवास योजनाओं का अभाव

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण समय-समय पर आवासीय भूखंड और फ्लैट योजनाएं लॉन्च करता है, लेकिन ये योजनाएं ज्यादातर उच्च और मध्यम-उच्च आय वर्ग को लक्षित करती हैं। नीलामी के दुवारा प्राधिकरण प्लॉट अलॉट करता है जिसमे भाग लेना आम आदमी के बसकी बात नहीं है। GNIDA की आवासीय भूखंड योजना इसका उदाहरण है, जिसमें 51 वर्ग मीटर से 500 वर्ग मीटर तक के भूखंडों की कीमत 27 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये तक थी। इसके बाद इन कीमतों पर बोली लगनी थी। ये कीमतें आम आदमी, खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग के लिए असहनीय हैं।

प्राधिकरण की योजनाओं में किफायती आवास (affordable housing) की कमी साफ दिखती है। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन ग्रेटर नोएडा में इसका प्रभाव सीमित रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राधिकरण की प्राथमिकता बड़े बिल्डरों और निवेशकों को भूखंड आवंटित करने पर है, जिससे आम आदमी के लिए सस्ते आवास की संभावनाएं कम हो जाती हैं। ग्रेटर नोएडा के सेक्टरों जैसे अल्फा, बीटा, डेल्टा, सिग्मा आदि में जमीन की कीमतें इतनी अधिक हैं कि एक सामान्य आय वाला व्यक्ति वहां घर खरीदने का सपना भी नहीं देख सकता।

अवैध निर्माण: गरीबों का आशियाना, प्राधिकरण की नजर में गैरकानूनी

ग्रेटर नोएडा में अवैध निर्माण एक गंभीर मुद्दा है, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब और निम्न आय वर्ग पर पड़ता है। प्राधिकरण के नियमों के अनुसार, बिना स्वीकृत लेआउट मैप के कोई भी निर्माण अवैध माना जाता है। लेकिन सस्ते आवास की कमी के कारण गरीब लोग और प्रवासी मजदूर हिंदन और यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्रों या अधिसूचित क्षेत्रों में सस्ती जमीन खरीदकर छोटे-मोटे घर बना लेते हैं। ये निर्माण प्राधिकरण की नजर में अवैध हैं, और इनके खिलाफ नियमित रूप से कार्रवाई की जाती है। जोकि प्राधिकरण के नियम के अनुसार अवैध निर्माण है।

आम आदमी और गरीबों की चुनौतियां

1. उच्च जमीन की कीमतें: ग्रेटर नोएडा के सेक्टरों में जमीन की कीमतें लाखों रुपये प्रति वर्ग मीटर तक पहुंच चुकी हैं, जो आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं।
2. किफायती आवास की कमी: प्राधिकरण की योजनाएं ज्यादातर निवेशकों और उच्च आय वर्ग के लिए हैं, जिससे निम्न आय वर्ग उपेक्षित रहता है।
3. अवैध निर्माणों पर कार्रवाई: गरीबों के छोटे-मोटे घरों को अवैध बताकर तोड़ा जाता है, लेकिन उनके लिए कोई वैकल्पिक आवास व्यवस्था नहीं की जाती।

ग्रेटर नोएडा में आम आदमी और गरीबों के लिए आवासीय समस्या को हल करने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:

किफायती आवास योजनाएं: प्राधिकरण को PMAY के तहत सस्ते फ्लैट और भूखंड योजनाएं लानी चाहिए, जो निम्न और मध्यम आय वर्ग के लिए सुलभ हों।
अवैध निर्माणों के लिए नीति: गरीबों के छोटे निर्माणों को नियमित करने के लिए एक नीति बनाई जा सकती है, ताकि उन्हें बेघर होने से बचाया जा सके।
जागरूकता अभियान: लोगों को बाढ़ क्षेत्रों या अधिसूचित क्षेत्रों में जमीन न खरीदने के लिए जागरूक करना, ताकि वे धोखाधड़ी से बच सकें।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की मौजूदा नीतियां और योजनाएं आम आदमी और गरीब वर्ग के लिए आवास के अवसरों को सीमित करती हैं। उच्च जमीन की कीमतें, किफायती आवास की कमी, और अवैध निर्माणों पर सख्ती ने गरीबों के आशियाने को खतरे में डाल दिया है। यदि प्राधिकरण और प्रशासन सस्ते आवास और समावेशी नीतियों पर ध्यान नहीं देते, तो ग्रेटर नोएडा का विकास केवल अमीरों और निवेशकों तक सीमित रह जाएगा, और आम आदमी का अपने घर का सपना अधूरा ही रहेगा।


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