Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें उसने अपनी सजा पूरी होने के बाद भारत से निर्वासन को चुनौती दी थी। अदालत ने साफ कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां हर देश से आए शरणार्थियों को बसाया जाए। कोर्ट ने कहा कि देश पहले ही 140 करोड़ की आबादी से जूझ रहा है।
यह मामला एक ऐसे श्रीलंकाई तमिल नागरिक का है जिसे 2015 में एलटीटीई से जुड़ा होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। उसे UAPA कानून के तहत दोषी करार देते हुए 10 साल की सजा हुई थी। बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी सजा घटाकर तीन साल कर दी और कहा कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि उसे श्रीलंका वापस भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है।
सुनवाई के दौरान वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता की पत्नी और बच्चा भी भारत में हैं और कई बीमारियों से पीड़ित हैं। इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि भारत में बसने का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत आता है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो किसी अन्य देश में शरण ले सकता है, लेकिन भारत उसे यहां नहीं रख सकता।
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