गोंद , औषधि भी और आभूषण भी।

वनस्पति जगत में बहुत से ऐसे वृक्ष है जब उनके तने व शाखाओं की सबसे बाहरी परत जिसे वार्क कहा जाता को छीला जाता, वृक्ष को चोट पहुंचाई जाती है या वृक्ष को क्षति पहुंचती है तो वृक्ष चिपचिपा गाढ़े विशेष गंध युक्त द्रव का स्त्राव करते हैं। वृक्ष द्वारा स्रावित इस विशेष द्रव को रेसीन अर्थात गोंद कहा जाता है। यह वृक्ष द्वारा निर्मित प्राकृतिक मलहम होता है जो वृक्ष के घाव को तेजी से भरता है तथा वृक्ष को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य कीट इंसेक्ट व फंगस आदि को ट्रैप कर उसे नष्ट कर देता है वृक्षों में भी जीवन है आत्मा का निवास है वृक्षों का भी इम्यून सिस्टम होता है वृक्षों का इम्यून रिस्पांस गोंद का निर्माण करता है। एक सुर में सभी वनस्पति शास्त्री इस पर सहमत है। भारत में लाखों वर्षों से विविध वृक्षों की गोंद का औषधीय इस्तेमाल होता रहा है देसी कीकर की गोंद का इस्तेमाल जच्चा बच्चा नव प्रसूता कमजोरी से ग्रस्त महिलाओं को दी जाती थी खाने के लिए। नीम की गोद ऐसे ही त्वचा रोगों में इस्तेमाल की जाती है। कतीरा के पेड़ की गोंद जिसे गोंद कतीरा कहा जाता है प्रोटीन फोलिक एसिड का जबरदस्त स्रोत है ठंडी होती है भारत जैसे गर्म जलवायु देश के लिए बहुत अनुकूल है इसका सेवन। झाड़ी नुमा गूगल के वृक्ष की गोद जिसे गूगल ही कहा जाता है उसका जबरदस्त औषधीय लाभ है अग्नि में हवन में जलाने पर गूगल जबरदस्त कीटाणु रोग नाशक है. गूगल का वृक्ष मरूभूमि पहाड़ी ढलान युक्त रेतीली मिट्टी में होता है। आजकल शुद्ध गूगल नहीं मिलता शुद्ध गूगल 1500 से ₹2000 किलो बिकता है। हमारे देश में गूगल की धूनी मानव रोगों से लेकर पशु रोगों में दी जाती रही जबरदस्त लाभ है आयुर्वेद में आधा दर्जन से अधिक औषधि केशोर गूगल, चंद्रप्रभा गूगल इसी से बनाई जाती है। प्रत्येक वृक्ष की अपनी खूबियां हैं उसकी खूबियां उसकी गोद में भी आती है। चीड़ की गोंद का इस्तेमाल वार्निश बनाने में कुछ सुगंधित वृक्षों की गोंद का इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है। चिपकाने की सामग्री एडिटिव के तौर पर तो गोंद का हजारों वर्षों से इस्तेमाल हो रहा है| ईश्वर ने वृक्ष वनस्पतियों को असंख्य खूबियों से लैस किया है वृक्ष अर्थात जिसमें परोपकार की पराकाष्ठा है। अब बात करते हैं गोंद के दूसरे पक्ष की जो इसे बेशकीमती एंटीक बना देता है। लाखो वर्ष पुराने वृक्ष जो भूगर्भिक गतिविधियों से पृथ्वी की कोख में समा जाते हैं, हजारों वर्षों के दाब ताप की प्रक्रियाओं से ऐसी वृक्षों की गोंद कठोर और चमकदार हो जाती है बेशकीमती पदार्थ जिसे अंबर बोला जाता है उस में रूपांतरित हो जाती है। समुद्रों की खुदाई से यह अंबर निकलता है कमाल की बात तो यह है इस अंबर में लाखों वर्ष पुरानी जीव कीट सरीसृप भी कैद रहते हैं जिनका यथावत ज्वेलरी में इस्तेमाल किया जाता है। गोंद की बदौलत ही लाखो वर्ष पुरानी कीटों व जीवो के अध्ययन की भी नहीं राह खुल जाती है अंबर जो ना धातु है ना ही खनिज है उसका मूल्य अन्य कीमती धातु खनिजों सोना चांदी हीरे जवाहरात आदि से भी अधिक है।

सचमुच दुनिया का बनाने वाला कितना कुशल कारीगर, अतिशय बुद्धिमान है। कुछ मूर्ख जय विज्ञान तो बोलते हैं लेकिन जय भगवान बोलते उनकी जिह्वा को लकवा मार जाता है. वह मूर्ख नहीं जानते जहां नियम है वहां नियंता भी जरूर होता है विज्ञान है तो उस विज्ञान को जीवो के लिए प्रकट प्रयोग करने वाला आदि वैज्ञानिक ईश्वर भी जरूर होता है. ऐसे मूर्खों के लिए आर्य समाज का यह नियम जो महर्षि दयानंद ने बनाया दर्शनीय है उन्होंने कहा “सब सत्य विद्या जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेश्वर है।

अर्थात साइंस की जितनी भी ब्रांच डिसिप्लिन है जो अब तक जानी गई है या भविष्य में जानी जाएंगी उन सब का मूलाधार केवल और केवल ईश्वर ही है।

लेखक : आर्य सागर खारी

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