Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर करेगा विचार, छह सप्ताह बाद होगी सुनवाई

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Supreme Court: देशभर में लागू Anti-Conversion Laws को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब Supreme Court विचार करेगा। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक की मांग करने वाली याचिकाओं को एक साथ सुना जाएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह एक गंभीर मुद्दा है, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा है।


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि कई राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोधी कानून संविधान द्वारा प्रदत्त Right to Freedom of Religion और Right to Privacy का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि ये कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करते हैं और धार्मिक मान्यताओं को बाधित करते हैं। याचिकाओं में इन कानूनों पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई थी।


इस पर Supreme Court ने सभी संबंधित राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि सभी राज्यों का पक्ष सुने बिना अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकता। इसके साथ ही पीठ ने मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद तय की है। यह कदम देशभर में चल रही कानूनी बहस और सामाजिक चर्चाओं को नया आयाम देने वाला माना जा रहा है।


कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट इन कानूनों पर कोई ठोस दिशा-निर्देश जारी करता है, तो इसका असर न केवल मौजूदा Anti-Conversion Laws पर पड़ेगा, बल्कि आगे बनने वाले कानूनों की संरचना पर भी होगा। फिलहाल, इस मामले पर देशभर की निगाहें टिकी हुई हैं। आने वाले हफ्तों में यह स्पष्ट होगा कि अदालत नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य सरकारों के हितों के बीच संतुलन कैसे साधती है।

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